नमस्ते वणक्कम।
नव साहित्य परिवार ।
विषय -- माँ परमात्मा है ,जन्नत है
विधा
मौलिक रचना मौलिक विधा।
तीन दिन की प्रतियोगिता।
१-६-२०२१.
माँ जननी है,
हमारे रूप ,
उसके गर्भ गृह के
कारखाने में
सूक्ष्मदर्शी बिंदुओं को
अरूप से रूप मिला है।
दस महीने स्वचालित यंत्र,
अंधेरे में पलकर,
हम नादान शिशु बनकर
भूमी पर आते हैं।
आने के बाद,
स्तनपान,भोजन,
पालन पोषण
समय पर पोषण।
मल -मूत्र सफाई।
मातृभूमि मातृभाषा
दृश्य श्र्व्य सामग्रियाँ।
हमें सिखाती माँ
परमात्मा।
सोने लोरी गाती।
आजकल की माँ अलग।
मोबाइल अंग्रेज़ी लुल्लबि।
कौपीन डयफर बाँध
छोड़ देती।
वह कौपीन का बदबू
सह लेती।
हर क्षण माँ की देखरेख में।
हर माँग माँ ही पूरी करती।
पिता का ध्यान कमाई पर,
माँ ही बच्चों के साथ सदा।
पिता विदेश में,
माँ स्वदेश में
बच्चे की देखरेख।
बच्चे का अच्छा या बुरा
माँ के पालन पोषण पर निर्भर।
कुंती जैसे कुमाता भी है।
क्या करें वह कर्मफल।
पाश्चात्य देश की माँ
पता नहीं ,पति बदल लेती।
फिर भी बच्चे की देखरेख करती।
कबीर की माँ फेंककर चली गई।
हर बात में अपवाद।
समाज में अखबारों में
खबर आई, अवैध पति की बाधा
अपने बच्चे को मार डाला।
सबहिं नचावत राम गोसाईं।
पूजनीय माँ
खुद भूख सह लेती।
तमिल में कहेंगे,
माँ खाने बैठेगी तो
बच्चा रोएगा।
तुरंत खाना छोड़
बच्चे को शांत करती।
माँ ही जन्नत है।
खेद की बात है
बूढ़ी माँ को अनाथालय में छोड़ना।
माँ का देख देख न करेंगे तो
संतानों को नरक वेदना जान।
स्वरचित स्वचिंतक एस अनंतकृष्णन चेन्नै तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।
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