नमस्ते वणक्कम।
नव साहित्य परिवार
१७-६-२०२१.
विषय: प्रकृति के उपहार।
विधा :
निज रचना निज शैली।
मौलिक रचना मौलिक विधा
यही माँग सही माँग।
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प्रकृति की श्रृंगार
भावना बग़ैर,
चाहे वनस्पति जगत हो,
या पशु-पक्षी जगत हो
सृष्टियाँ हैं असंभव।।
नर- नारी सहज आकर्षण
माया महा ठगनी।
न तो सृष्टियाँ है ही नहीं।
रंग-बिरंगी तिलियाँ,
रंग-बिरंगे फूल न तो
मकरंद मिलनानंद नहीं।।
विविध प्रकार के चावल दाल,
विभिन्न औषधियों के पेड़ पौधे
एंटी बूटियाँ मानव तन को
स्वास्थ्य प्रद,मन को आनंदप्रद।।
विभिन्न पक्षियों के मधुर स्वर।
मधु मक्खियों का शहद।।
खट्टे मिट्ठे विविध फल।
नदी जल, झील जल, जलप्रपात। गर्म फँवारे।
लहरों वाले खारे पानी का सागर।
समुद्र का पानी भाप बनना।
छे ऋतुओं के चक्कर।।
काले बादल, वर्षा।
बर्फ की वर्षा।
कदम कदम पर आनंद।।
प्रकृति का उपहार।।
मेहनत करने सूर्योदय,
विश्राम के लिए चंद्रोदय।।
विभिन्न प्रतिभावाले मनुष्य।।
गुरु, वैज्ञानिक,वैद्य, अभियंता
अभिनेता, अभिनैत्री,खल नायक विदूषक ईश्वर की अद्भुत देन।
बाज का ऊंचा उड़ान।
गौरैया निम्न उड़ान।
बंता का अति सुन्दर नीड़।
जुगुनू की चमक , रंग-बिरंगी मछलियाँ।
कदम कदम पर प्रकति का उपहार।
ईश्वरीय सृष्टियों की
अद्भुत माया।
सबहिं नचावत राम गोसाईं।।
स्वरचित स्वचिंतक एस अनंतकृष्णन चेन्नै तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।
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