वणक्कम। नमस्कार।
भगवान से सृष्टित संसार।
भगवान की प्रार्थना अनिवार्य।
हमारे ऋषि मुनियों को ,पैगम्बरों को
अगजग की एकता के लिए के
शान्ति के लिए ,
भाईचारा बढ़ने -बढ़ाने के लिए
प्रेम से रहने के लिए ,
दान धर्म, सहानुभूति, परोपकार,फँ
निस्वार्थ समाज कल्याण, विभाग
संक्षेप में इन्सानियत,संयम,
भगवान के प्रति भक्ति भाव।
जितेन्द्रियता, ईमानदारी,
वचन का पालन,सत्यव्रत।
सोचिए,मनुष्य सद्य:फल के लिए मनुष्यता
छोड़ देता तो वह मृगतुल्य।
लौकिक मृगतृष्णा की मिथ्या दौड़।
माया/शैतान/सामान के चंगुल में
फँस जाता है।
भगवान को मालूम है,
मनुष्य जानवर है।
हम ज्ञान देते हैं,
मनुष्यता अपनाने वालों को सुखी रखेंगे।
बाकी को बदनाम देंगे।
सबको मृत्यु दंड निश्चित।
ऐसा कानून ईश्वर का हर पापी को दंड/सजा।
अतः हर किसी को संसार में
कोई न कोई कष्ट विविध प्रकार के
भोगता है। गहराई से विचार करेंगे तो
समझेंगे कि यह भूमि ही स्वर्ग नरक।
यह धरती ही जन्नत जहन्नुम।
असाध्य रोग,साध्य रोग, दरिद्रता,
लाभ नष्ट,कीर्ति अपकीर्ति, ज्ञानी अज्ञानी।
अंग हीनता,पदोन्नति पदोअवनति
अल्पायु पूर्णायु, आत्महत्या,हत्या
काम क्रोध मद लोभ में सद्गुण भी ईश्वरीय देन है
अतः देवेन मनीष्यरूपेन।
अन्यायी न्यायी, दोनों ही सुख दुख भोगते हैं।
दोनों को दंड पुरस्कार देते हैं।
अंतिम सजा मृत्यु स्वर्ग नरक भोगने के बाद।
संसार में रहकर सौ प्रतिशत तटस्थ रहना असंभव।
अतः सिद्ध पुरुष जंगलों में पहाड़ों में दुर्गम
स्थानों में बस जाते हैं।
कोई सज्जनों को अपनी दिव्य शक्ति द्वारा
मिलवाकर दिव्य संदेश देते हैं।
वह दिव्य पुरुष की नसीहतें सुनकर
समाज में पाप पुण्य के डाँवाडोल में
मनुष्य सुख दुख भोगते हैं।
इन दिव्य पुरुषों में समाजिक संक्रामक रोग
माया पकड़ लेती है।
पर जल्दी ही उसका भंडा फोड़ जाता है।
वह अपमानित होकर छिप जाता है या जेल का दंड भोगता है।
भगवान सृष्टियां समाज। पाप पुण्य का भंडार घर।
जैसा लेते हैं वैसा ही स्वर्ग नरक भेज गया है मनुष्य
स्वरचित स्वचिंतक एस अनंतकृष्णन चेन्नै तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक
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