नमस्ते वणक्कम।
११-२-२०२१
कलमकार कुंभ।
शीर्षक जन्नत।
विधा। भावाभिव्यक्ति ।अपनी शैली
जन्नत जहन्नुम के
डराने धमकाने से
न्याय का शाश्वत शासन।
धर्म राज्य की अनश्वरता
स्वर्ग का लोभ,नरक का भय।
सचमुच नश्वर जगत में ही
जन्नत और जहन्नुम।।
पद राज पद अलग-अलग।
जन्नत जहन्नुम नहीं अलग-अलग।।
दशरथ चक्रवर्ती, राम, धर्म पुत्र
सब की जीवनी ही इसका प्रमाण।।
प्रधान मंत्री इंदिरा का
व्यक्तित्व विख्यात।पर
व्यक्तित्व जीवन शोक प्रधान।
पति अलग,बड़े पुत्र की आकस्मिक मृत्यु
एकांत में अति दुखी ।
जयललिता देवी तुल्य नेत्री।
एक समय आत्म हत्या तक चली।
समाज में कइयों को देखा,
नपुंसक की नरक वेतना।
अंधे,बहिरों की वेदनाएँ।
धनी भी असाध्य रोगों में।
गरीबों की मीठी-मीठी नींद।
अमीरों की निद्रा गोली नींद।
करवटें बदलना।
पियक्कड़ अमीर के फुटपाथ नींद।
जान समझ मन कहता है--
स्वर्ग/जन्नत जहन्नुम नरक यहीं
भूलोक पर न अन्य लोक में।
स्वरचित स्वचिंतक एस अनंतकृष्णन चेन्नै तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक
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