हसीन लम्हें।
साहित्य संगम संस्थान मध्यप्रदेश इकाई।
नमस्कार। वणक्कम।
विषय :हसीन लम्हें।
१-२-२०२१
विधा : अपनी भाषा अपनी शैली अपने विचार छंद।
हसीन लम्हें १९५० से १९७० तक।
वह सम्मिलित परिवार,
परिवार में दादा दादी,
माँ -बाप, बुआ सुखिन।
चाचा-चाची,काकी काका।
एक बहुत बड़ा सम्मिलित परिवार।।
आय कैसे कमाते, कौन कमाते,
कितना खर्च कोई हिसाब किताब।
न आमदनी का भेद भाव।
सभी को स्कूल समान
पारिवारिक वर्दी।
घर की औरतें अति खामोश।
पुरुष घर में हो तो शांति।
दादा की आज्ञाकारी।
हम पिता की आज्ञाकारी।
दादा का निर्णय ही कोई
चर्चा नहीं।
एक दूसरे पर
आत्मीय अनुराग।।
हसीन लम्हें वो दिन।
आज के बच्चों में
नाते रिश्ते का मोह नहीं।
परिवार क्या?
माँ बाप मैं
तीन साल के बच्चे का मनोभाव।
खेद है बच्चा न चाहने के दिन।
आएगा एक दिन,
हम दो, हम दो जीवानंद।
स्वरचित स्वचिंतक एस अनंतकृष्णन चेन्नै तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक
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