साहित्य संगम संस्थान तेलंगाना इकाई।
नमस्कार। वणक्कम।
२७-२-२०२१.
विषय दर्पण क्या बोलता है।
विधा --अपनी भाषा शैली अपनी भावाभिव्यक्ति।
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दर्पण बोलता है ,
तुझे बचपन से देख रहा हूँ।
काले घने बाल,
तेरे बाल सँवारती।
चालिस साल में गंजा शुरू।
अब बहत्तर साल के बूढ़े,
मैं देखता हूँ,
बाल सूक्ष्मदर्शी से देखने पर भी नहीं सिर पर।
तेरे मन में अब भी जवानी,
चेहरे पर मुस्कराहट,पर
भगवान एक एक कर
हर अंग को कांती
हीन कर रहा है,पर
मन तुम्हारे हँसी खेल
अपने को जवान
समझ कर रहे हो।
दिल्लगी के पात्र न बनो।
है,मेरा गंजापन नहीं देखो।
नकली बाल
बीस हजार का लिया है।
देखो जवानी आ गयी।
काली मूँछ बड़ी अति मोहक।।
दर्पण!न मैं दिल
लगी का पात्र।
यथा राजा तथा प्रजा।
मेरे नेता को विग देखो।
विदेशी का चमकीला।
नकली सूरत नकली वादा,
मैं पिछलग्गू उनका,
नकट्टा संप्रदाय सा आज
विग संप्रदाय। मन की जवानी
सिर पर भी।
पैसे का करामत ,
बनाव श्रृंगार की दूकानें
कदम कदम पर।
मैं नहीं बूढ़ा,मन की जवानी,
बाल की जवानी,
मूँछ की जवानी।
अभिनेता सत्तर साल का,
नायिका बीस साल का।
वहीं अभिनेता नेता।
दर्पण चुप चुप चुप
बोला दशरथ चक्रवर्ती नहीं को
सफैद बाल के देखते ही
पद तजने।
कलियुग में प्लास्टिक सर्जरी।
दर्पण मैं खुद ठग जाता हूँ।
स्वरचित स्वचिंतक एस अनंतकृष्णन चेन्नै तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक
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