नमस्ते वणक्कम।
साहित्य संगम संस्थान, गुजरात इकाई।
१३-२-२०२१.
शीर्षक - मेरी यात्रा।
विधा अपनी शैली अपनी भाषा अपनी भावाभिव्यक्ति।
हर मनुष्य की अपनी विशेष यात्रा।
जीवन की प्राकृतिक यात्रा अलग।
ईश्वर की यात्रा भक्ति यात्रा अलग।
उल्लास यात्रा अलग।
वैज्ञानिक यात्रा अलग।।
मानसिक यात्रा अलग।
मन है तो काल्पनिक यात्रा।
काल्पनिक यात्राके लिए,
पैसे की जरूरत नहीं।
मिस्र के पिरामिड,
अमेरिका का नया घिरा।
वायुयान उड़ान,
३६००० की ऊँचाई,
कितना आनंद, कितना संतोष।
काल्पनिक यात्रा अति सुलभ।
बुढ़ापा, अंतिम यात्रा न जाने कैसा हो?
समझ में नहीं आता मेरी यात्रा।
मरी यात्रा नाते रिश्तेदारों के बीच में हो या
सुनामी लहरों में लापता हो।
कोराना या किसी संक्रामक रोग
भयभीत शव का दफना जाता हो।
जैसा भी हो मेरी यात्रा ईश्वर पर निर्भर।
स्वरचित स्वचिंतक एस अनंतकृष्णन चेन्नै तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक
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