आज मेरा अपना शीर्षक
तकदीर और तदबीर।
अर्थात
भाग्य और प्रयत्न।
आप प्रचारक अपनी कल्पना दौड़ाइए कि
भाग्य भला। या कोशिश ।
स्वरचित और स्वचिंतक एस अनंतकृष्णन चेन्नै तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।
भाग्य भला या प्रयत्न
विधि की विडंबना ,
भाग्य बल सही है ,
रामराम जप परावलंबित भक्त।
उनके तपोबल,
भविष्यवाणी के सामने
बड़े बड़े सम्राट,करोड़पति, उद्योगपति,
निदेशक, अभिनेत्री सब को देखा।
पऴनी में "चाक्कडै चित्तर" ।
बड़े-बड़े सम्मानित लोग,
उनके दांत मार की प्रतीक्षा में
घंटों खड़े रहते।
दूसरे नग्न स्वामी उनके काटे जूठे केले
खाने खड़े रहते।
सबको सद्यफल प्राप्त करने की अभिलाषा।
तभी मुझे रामायण का प्रसंग
शबरी का राम को जूठे बेर खिलाना
प्रत्यक्ष सामने आया।
भाग्य भला?
हम नहीं कह सकते।
यूं चाक्कडै चित्तर,नग्न स्वामी,शबरी
भाग्यवान या प्रयत्नशील।
इनकी अचंचल भक्ति ध्यान, दृढ़ भक्ति
एकाग्रता प्रयत्न है कि नहीं।
वाल्मीकि , तुलसीदास की कठोर साधना ईश्वर नाम ही।
भक्त त्याग राज केवल
ईश्वर ध्यान ही और कुछ नहीं,
भगवान बुद्ध महावीर की कठोर
ध्यान ही प्रयत्न।
एकाग्रता ही परिश्रम ध्यान।
तदबीर बगैर तकदीर असंभव।
पेग़बर मुहम्मद की तपस्या फल पैगाम।
भाग्य और प्रयत्न उनका ईश्वर ध्यान।
हर एक कर्म फल के अनुसार
प्रयत्न शील और भाग्यवान।
अभियंता बनना, डाक्टर बनना अध्यापक बनना भाग्य।
अपने अपने भाग्य पर चमकना प्रयत्न जान।
स्वरचित स्वचिंतक एस अनंतकृष्णन चेन्नै हिंदी प्रेमी प्रचारक तमिलनाडु
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