आँखें
नमस्ते वणक्कम।
२-२-२०२१
आँखें नहीं तो
साहित्य संगम उत्तराखंड
इकाई की
सूचना कैसे ?जानता।
नजर से नजर न मिलें तो
प्यार कैसा?
अंधेरे में जुगुनू के प्रकाश कैसा?
अंधेरे में उल्लू कैसे देखता?
निशाचरियों का जीवन कैसे?
सूर दास अंधे, पर ज्ञान चक्षु मिले।
कामांधता अलग,
रत्नावली से तुलसी की कामांधता मिटी।
अज्ञानांधकार काली के वर से
कालीदास का अज्ञानांधकार मिटा।।
अंध भक्ति से ज्ञानचक्षु भक्ति बड़ी।।
आँखें नहीं तो जीना दुश्वार।।
स्वरचित स्वचिंतक एस अनंतकृष्णन चेन्नै तमिलनाडु हिंदी प्रेमी।
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