स्वरचित स्वचिंतक एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई, तमिलनाडु
शीर्षक कुम्हार
2-1-2021
विधा अपनी भाषा अपनी शैली
चित्र पर आधारित।
माह जनवरी
पहला सप्ताह।
हम रंग नींव के संयोजक, समन्वयक,सदस्य,पाठक, प्रशासक,
सब को वणक्कम। नमस्कार।।
भगवान की सृष्टि में,
मानव ही कलाकार।।
वो धरती कितना देती है,
अनाज,सोना,चांदी,हीरा,
वही धरती की मिट्टी,
कुम्हार के जीविकोपार्जन के लिए,
मिट्टी के बर्तन, खिलौने,घड़ा वाद्य
आधुनिकता के कारण
कुटिर उद्योग में जरा पतन।।
पाठकों से निवेदन है,
कम से कम एक
मिट्टी के बर्तन लेना।
चक्र का पता चला,
चीन से यह चक्र कला
भारत आती।
लाल मिट्टी,काली मिट्टी के बर्तन।।
कलाकार अति ध्यान से बर्तन
कच्ची मिट्टी से, फिर सुखाना।।
मिट्टी के बर्तन का खाना,
आजकल पाँच नक्षत्र होटल में
विशेष विज्ञापन के साथ प्रसिद्ध है।
मिट्टी के बर्तन की रसोई ,
स्वास्थ्य प्रद, आयु वृद्धि।
मिट्टी के घड़े का पानी में
प्राकृतिक धातु शक्ति।।
और अनेक लाभ।।
मिट्टी वातानुकूलित बर्तन
तरकारियाँ ताजा रखते।
स्वास्थ्य लाभ ही नहीं
भारतीय हस्त कला की सुरक्षा।
कुम्हार का प्रोत्साहन।।
अनेक भारतीय खोज में
मिट्टी के बर्तन ही प्रमाण।
बड़े बड़े बर्तन में,
शव रख भूमि में गाढ़कर रखते।
मिट्टी की ईंटें भी
आदी काल से आजतक।।
श्मशान में अंतिम क्रिया के समय
चिता में शव रख,
शव के बेटे या आग लगाने वाले,
घड़े कंधे पर रख प्रदक्षिणा,
प्रदक्षिणा के समय घड़े में
छेद कर पानी निकालते
अंत में घडा फेंकते।
शादी में कच्चे घड़े में
चूना लगा कर,
नागवल्ली घड़ा अति पवित्र।।
मंगल अमंगल संस्कार में
जिंदा है यह कला।।
कुम्हार की जय हो।।
स्वरचित स्वचिंतक एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई तमिलनाडु
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