दिनांक ३१-१-२०२१.
विषय। मन माना। स्वेच्छा।
विधा। मनमाना।३१-१-२०२१.
प्रणेता साहित्य संस्थान दिल्ली।
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स्वेच्छा से प्यार किया।
स्वेच्छाचारी पता न चला।
संयम जितेन्द्र भर चला।
न माता पिता नाते रिश्ते का विचार।
बाद में पता चला,
वह तन धन का चाहक।
जवानी दीवानी,
अब दिवाला बन गया जीवन।
चित्र पट सा जीवन समझा।
छिन्न भिन्न हो गयी मैं।
पागल जवानी,पगली मैं।
प्यार का पहलू न जाना।
रोने बिलखने से लाभ नहीं।
अनुभवी बताती हूँ,
पाश्चात्य नहीं भारत।
पति बदलना पत्नी बदलना
प्रेमी बदलना प्रेमिका बदलना,
भारतीय अंतर्मन अपमानित ही समझता।
सावधान मनमानी न करना।
मन अंतर मन पछताएगा जरूर।
मन माना प्यार किया,
पता चला बाद में
मनमाना करनेवाला।
तितली समान भिन्न भिन्न
फूलों का रस चखनेवाला।
तड़पती जवानी,मंडराता वह।
मेरा मन मंडराने लगा।
वह भ्रमर चख लिया उड़ गया।
मन माना ग़लत विचार
जिंदगी भर लो रही हूँ।
सावधान! सोचो विचारो।
काम करो ,न तो जिंदगी भर
मनमानी पछताओगी।
स्वरचित स्वचिंतक एस अनंतकृष्णन चेन्नै तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक
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