दोष देखना गैरों का बंद कीजिए --नूतन साहू वाह।
बुरा जो देखन मैं गया ,बुरा न मिलिया कोय। जो दिल खोजा अपना मुझसे बुरा न कोय --कबीर।
हर कोई अपने को सही रखें तो
देश स्वर्ग तुल्य मान।
हमेशा यह याद रखना ,
बार बार जानी हुई बात दोहराना
सही या गलत।,
दोहराने में मजबूर मनुष्य।
धन न रोक सकता जवानी।
धन न रोक सकता श्वेत बाल।
धन न रोक सकता बुढ़ापा।
फिर भी भ्रष्टाचारी ,रिश्वतखोरी ,ठग
आदि काल से पनपते जग में।
वाल्मीकि से पाठ न सीखा।
तुलसी से पाठ न सीखा।
भर्तृ हरी से पाठ न सीखा।
बुद्ध से पाठ न सीखा।
अंगुलिमाल से पाठ न सीखा।
छत्रपति शिवाजी से पाठ न सीखा।
इंदिरागांधी ,संचय , राजीव से पाठ न सीखा।
खांन गांधी ठग से न सीखा।
आज तमिलनाडु के पहाड़
हिन्दू मंदिर छिपाकर
ईसाई गिरिजा घर , मुग़ल दरगा।
सहने तैयार ,पर वे तो भारतीय संस्कृति ,भाषा मिटाने तैयार।
बगैर दोष देखे बताये ,समझाए जीना
स्वाभिमान है क्या ?
जिओ जीने दो।
हम हैं तो
अन्यों का नाश करो ,जड़ मूल नष्ट करो
खुद जीओ तब न सोचे मरना
सार्थक कहाँ तक ?
सोचो ,मीन मेख देखना सही
आत्माभिमान और स्वरक्षा के लिए।
स्वरचित स्वचिंतक एस। अनंतकृष्णन। चेन्नै हिंदी प्रेमी
No comments:
Post a Comment