नमस्ते वणक्कम।
न अपनी गरीबी की चिंता।
न अपने भविष्य की चिंता।
हाथ में राष्ट्रीय झंडे।
देश के नामोच्चारण।।
भगवान की क्रूर लीला।।
धनलक्ष्मी देकर
संतान लक्ष्मी से वंचित।
संतान भाग्य देकर,
धन लक्ष्मी से वंचित।।
सुंदर आँखों की चमक।।
स्वस्थ ह्रृष्टपृष्ठ शरीर की संतान।
निर्मल हँसी,गरीबी में आनंद।।
लक्ष्मी पुत्र अपनी आलीशान महल में।
संतान लक्ष्मी पुत्र फुटपाथ पर।।
ईश्वरीय लौकिक लीला,
अगजग को पता नहीं।
आदर्श देश भक्ति यहाँ।
भ्रष्टाचारी रिश्वत खोरी
छल कपटी दल
सत्ता के लिए
समाधियाँ,
मूर्तियाँ बनाते।
लाखों करोड़ों की इमारतें।।
लाखों करोड़ों झोंपडियाँ,
मतदाता वे ही।
३५% मतदाता अमीरी शिक्षित
नहीं देते ओट।
गरीबों के वोट में
जीते संसद विधायक।
असुरों को वर देकर
देवों को कारावास ।
फिर वध के लिए अवतार।
यह लौकिक लीला समझ में न आती।
राजा महाराजा के प्रेम मिलन में
हजारों विधवाएँ,
उन स्वार्थी कामांधकारी राजाओं की प्रशंसक कवि।
पद्मावत के शासकों को
वीरों के अनाथ बच्चों पर दया नहीं।
उन अनाथ बच्चों का
शाप राज परंपरा नहीं।
विविध विचार,
ईश्वर की लौकिक लीलाएँ।
समझ में आती नहीं।
पाषाण युग से
आधुनिक शिक्षित युग तक।
जिसकी लाठी उसकी भैंस।
भस्मासुर को वर देकर
शिव का भागना समझ में नहीं आता।
मोहिनी अवतार कामदहन
शिव के आकर्षण
समझ में आता नहीं।।
स्वरचित स्वचिंतक एस.अनंतकृष्णन,चेन्नै
नमस्ते वणक्कम।
न अपनी गरीबी की चिंता।
न अपने भविष्य की चिंता।
हाथ में राष्ट्रीय झंडे।
देश के नामोच्चारण।।
भगवान की क्रूर लीला।।
धनलक्ष्मी देकर
संतान लक्ष्मी से वंचित।
संतान भाग्य देकर,
धन लक्ष्मी से वंचित।।
सुंदर आँखों की चमक।।
स्वस्थ ह्रृष्टपृष्ठ शरीर की संतान।
निर्मल हँसी,गरीबी में आनंद।।
लक्ष्मी पुत्र अपनी आलीशान महल में।
संतान लक्ष्मी पुत्र फुटपाथ पर।।
ईश्वरीय लौकिक लीला,
अगजग को पता नहीं।
आदर्श देश भक्ति यहाँ।
भ्रष्टाचारी रिश्वत खोरी
छल कपटी दल
सत्ता के लिए
समाधियाँ,
मूर्तियाँ बनाते।
लाखों करोड़ों की इमारतें।।
लाखों करोड़ों झोंपडियाँ,
मतदाता वे ही।
३५% मतदाता अमीरी शिक्षित
नहीं देते ओट।
गरीबों के वोट में
जीते संसद विधायक।
असुरों को वर देकर
देवों को कारावास ।
फिर वध के लिए अवतार।
यह लौकिक लीला समझ में न आती।
राजा महाराजा के प्रेम मिलन में
हजारों विधवाएँ,
उन स्वार्थी कामांधकारी राजाओं की प्रशंसक कवि।
पद्मावत के शासकों को
वीरों के अनाथ बच्चों पर दया नहीं।
उन अनाथ बच्चों का
शाप राज परंपरा नहीं।
विविध विचार,
ईश्वर की लौकिक लीलाएँ।
समझ में आती नहीं।
पाषाण युग से
आधुनिक शिक्षित युग तक।
जिसकी लाठी उसकी भैंस।
भस्मासुर को वर देकर
शिव का भागना समझ में नहीं आता।
मोहिनी अवतार कामदहन
शिव के आकर्षण
समझ में आता नहीं।।
स्वरचित स्वचिंतक एस.अनंतकृष्णन,चेन्नै
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