नमस्ते।
मैं पतंग। भगवान डोर।
भगवान चढ़ाएगा तो सर्वोपरी मैं।
शिथिल करेगा तो अतल पाताल।।
मैं पतंग, भगवान दीप।
प्रेम भक्ति में मंडराकर ,
आत्मा परमात्मा ज्योति में मिलन।
पतंग वायु भगवान में डाँवाडोल।।
मन जैसे उड़ाने वाले की चतुराई।
जीवनाधार डोर ईश्वर।
मैं पतंग उड़ाना गिरना उनके हाथ।।
स्वरचित स्वचिंतक एस.अनंतकृष्णन,चेन्नै।
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