वक्त से डरो।
संगम संस्थान गुजरात इकाई।
नमस्ते वणक्कम।
शीर्षक वक्त वक्त से डरो।
वक्त से डरना क्यों?
वक्त तो चलता रहता है।
वक्त की चिंता में
जीवन अपना बहूमूल्य या अमूल्य
या मूल्य रहित पता नहीं।।
बुरे वक्त बुरे विचार के कारण।
सद्कर्म हमें बदमाश कर देता।
सुदर्शन जी ने अपनी कहानी में लिखा--
जब बुरा समय आता है,तब पहले
बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है।
मौसमी वक्त में पतझड़ भी है।
कोशिश करनेवाले सब के सब
कामयाबी प्राप्त नहीं करते।।
सफलता प्राप्त करनेवाले सब
कोशाश नहीं करतें।
काल चक्र काल तक।
वक्त पर अपने कर्तव्य निभाने वाले
सिर्फ प्रकृति।
सूर्योदय होता है समय पर।
सूर्य सा वक्त निभाने वाले
सूर्य सा चमकते अपने जीवन में।।
उनके जीवन में चाँदनी ही चाँदनी।
चंद्र के जीवन में घटा बढ़ का शाप।
वह भी करता वक्त पर।
सूर्य देता सबको चुस्ती।
जागने वाले जगमगाते।
सोने वाले के भाग्य में
अमावाश्य अंधकार।।
वक्त दशरथ को रुलाया।
वक्त जूते को गद्दी पर लिटाया।
वक्त राम को वनवास भेजा।
अग्नि प्रवेश फिर भी सांता वनवासिनी।।
वक्त अपना काम करता है,
वह जीवन को
वसंत या पतझड
बना ही देता ।।
स्वरचित स्वचिंतक एस.अनंतकृष्णन,चेन्नै।
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