भगवद गीता -3
अर्जुन ने दुखी होकर कृष्ण से पूछा---यहाँ रण -क्षेत्र में भीष्म -पितामह और गुरु द्रोण जैसे बड़ों पर तीर
चलाना उचित है क्या?ये तो पूजनीय हैं।
श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा-रण में बड़ों को मारना ही चाहिए।नहीं तो भीख मांगना अच्छा हैं।
गुरु को मारकर हमारे सुख खून में होना ही चाहिए।
- जिनको मारकर हम ज़िंदा रहना चाहते हैं,वे धर्म -राष्ट्र हमारे सम्मुख है।
- जिनको देखकर दुखी होना उचित नहीं है,
जिन पर दया होना नहीं चाहिए ,
उनपर दया का भाव प्रकट कर रही हो।
मैं अमर हूँ ,तुम भी अमर हो।हम हमेशा केलिए जियेंगे;
- आत्मा में बचपन,यूवावस्था और बुढापा आदि तीन अवस्थायें हैं।
इसलिए वीरों को अस्थिर नहीं होना चाहिए.
- ,गर्मी ठंडा ,सुख,दुःख प्राकृतिक नियम है ;
ये बदल-बदलकर जीवन में आयेगा; स्थायी नहीं है।
सब्रता से रहो।
धीर तो वही है,जो सुख-दुःख में एक सामान दृढ रहता है।
उसको मृत नहीं है।
- जो नहीं है वह सत्य नहीं होगा।
जो है वह असत्य नहीं होगा।
जो सत्य ज्ञानी है,वे दोनों का अंतर जानते है।
- सत्यार्थ कभी नाश नहीं होगा।
कोई सत्य का नाश नहीं कर सकता।
- आत्मा अनश्वर है;नित्य है;
आत्मा के रूप बदल सकते हैं।अतः युद्ध करो।
- आत्मा अजर-अमर है।उसे मारना या मरवाना ऐसी कोई बात नहीं है।
- पुराने -जीर्ण वस्त्र को फेंककर नए वस्त्र पहनते हैं ,वैसे ही शिथिल शरीर को छोड़कर
आत्मा नए शरीर को धारण करती है।
- शरीर एक नीड़ है।
आत्मा की चिड़िया पुराने नीड़ शरीर को छोड़कर नए नीड शरीर में घुस लेता है।
- आत्मा को तलवार नहीं काट सकती।
आग जला नहीं सकता।
पानी डुबो नहीं सकता।
हवा सुखा नहीं सकती।
- आत्मा स्थायी है।दृढ़ है।
जो जन्म लेता है,वह मरता है।
जो मरता है,वह जन्म लेता है।
इस केलिए रोना ठीक नहीं है।
- जीवो का जन्म और मरण अस्पष्ट है।
यह सच्चाये जानकर भी अज्ञान में मनुष्य रहता है।
- आत्मा को कोई मार नहीं सकता।
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