Monday, August 6, 2012

भगवद गीता -3



भगवद  गीता -3


अर्जुन  ने दुखी होकर कृष्ण से पूछा---यहाँ रण -क्षेत्र  में भीष्म -पितामह और गुरु द्रोण जैसे बड़ों पर तीर

चलाना उचित है क्या?ये तो पूजनीय हैं।

श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा-रण  में बड़ों को मारना ही चाहिए।नहीं तो भीख  मांगना अच्छा हैं।

गुरु को मारकर हमारे सुख खून में  होना ही चाहिए।
  1. जिनको मारकर हम ज़िंदा रहना चाहते हैं,वे धर्म  -राष्ट्र   हमारे सम्मुख   है।

  2. जिनको देखकर दुखी होना उचित नहीं है,

    जिन पर दया होना नहीं चाहिए ,

    उनपर दया का भाव प्रकट कर रही हो।

    मैं अमर हूँ ,तुम भी अमर हो।हम हमेशा केलिए जियेंगे;

  3. आत्मा में बचपन,यूवावस्था  और बुढापा आदि तीन अवस्थायें हैं।

    इसलिए वीरों को अस्थिर नहीं होना चाहिए.

  4. ,गर्मी ठंडा ,सुख,दुःख प्राकृतिक नियम है ;

    ये बदल-बदलकर जीवन में आयेगा; स्थायी नहीं है।

    सब्रता से रहो।

    धीर तो वही है,जो सुख-दुःख में एक सामान दृढ रहता है।

    उसको  मृत नहीं है।

  5. जो नहीं है वह सत्य नहीं होगा।

    जो है वह असत्य नहीं होगा।

    जो सत्य ज्ञानी है,वे दोनों का अंतर जानते है।

  6. सत्यार्थ कभी नाश नहीं होगा।

    कोई सत्य का नाश नहीं कर सकता।

  7. आत्मा अनश्वर है;नित्य है;

    आत्मा के रूप बदल सकते हैं।अतः युद्ध करो।

  8. आत्मा अजर-अमर है।उसे मारना या मरवाना ऐसी कोई बात नहीं है।

  9. पुराने -जीर्ण वस्त्र को फेंककर नए वस्त्र पहनते  हैं ,वैसे ही शिथिल शरीर को छोड़कर
     आत्मा नए शरीर को धारण करती है।

  10. शरीर  एक नीड़  है।

    आत्मा की चिड़िया  पुराने नीड़  शरीर  को छोड़कर नए नीड  शरीर में घुस लेता है।

  11. आत्मा को तलवार नहीं काट सकती।
    आग जला नहीं सकता।
      पानी  डुबो नहीं सकता।
    हवा सुखा नहीं सकती।

  12. आत्मा स्थायी है।दृढ़ है।

     जो जन्म लेता है,वह मरता है।

    जो मरता है,वह जन्म लेता है।

     इस केलिए रोना ठीक नहीं है।

  13. जीवो का जन्म और मरण अस्पष्ट है।

    यह सच्चाये जानकर भी अज्ञान में मनुष्य रहता है।

  14. आत्मा को कोई मार नहीं सकता।

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