Friday, August 3, 2012

शांति का मार्ग


                       शांति  का  मार्ग 


मनुष्य हमेशा शांति की खोज में रहता है?ऐसा कहना साधू संतों के लिए तो ठीक हो सकता है.


केवल साधू संतों की बात मानना संसार की उन्नति में बाधाएं  हैं


.अतः भगवद  गीता में   कर्तव्य  और  निष्काम सेवा पर जोर दिया गया है.


यह संसार में न्याय,धर्म,ईमानदारी ,सहानुभूति,परोपकार,आत्मनिर्भरता,


आत्मविश्वास ,शान्ति आदि को प्राथमिकता देकर विश्व कल्याण के मार्ग 


केलिए अलौकिकता को भी स्थान देना है.


बड़े-बड़े वैज्ञानिक संसार के आर्थिक प्रगति के लिए कितना चमतकार पूर्ण


 काम कर चुके हैं ,कर रहे हैं,करेंगे,उतना आध्यात्मिक लोग नहीं कर 


सकते.


कारण  क्या है?


साधू हो या सन्यासी सब के जीवन में धन की आवश्यकता


 कम से कम  होती ही है.


शिक्षा तो आदि काल से आज तक अर्थ के आधार पर ही स्तरीय 
 होती है.


मनुष्य सद्यः फल चाहता है.अतः उसका मन चंचल होता है.


ईश्वर ने  ही  तो संसार में प्रतिभाशाली और मंद बुद्धि के लोगों की स्रुस्टी की है.


दुर्बलों और सबलों की स्रुस्टी की है.भक्तों और र्षी-मुनियों की सृष्टी की है.

डाकू-लुटरों की स्रुस्टी की है.


पर संतोषऔर शान्ति किसको मिलती है/?सब की मृत्यु  होती है.


 क्षण -क्षण में मृत्यु का भय है.


इसी को प्रधानता देकर मनुष्य तटस्थ रहकर


मनुष्यता निभाने पर ही शांति होगी.


मनुष्य को हमेशा यह याद रखनी है क़ि  यह दुनिया 


नश्वर है.इस के आधार पर जियेगा तो शांति निश्चित है

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