भारत का भाग्यवाद
आदि काल से आज तक भारतीय इतिहास में भारतीय आम जनता शासक और भाग्यवानों का समर्थक ही है।
देश समृद्ध है;ईश्वरीय शक्ति देश को आगे कर रही है।
देश के उत्थान के बाधक हैं स्वार्थ शासक.
शासकों के समर्थक कुछ स्वार्थ अधिकारी गुण।
अन्याय और अधर्म के समर्थक दोस्ती;कृतज्ञता के नाम पर सार्वजनिक
न्याय के विपक्ष अन्याय और अत्याचार के समर्थक स्वार्थ लोग;
रामायण में राम अपने अधिकार जो उत्तराधिकार के रूप में मिला ,
उसे अपने पिता की प्रतिज्ञा के लिए छोड़ देता है।
उसका परिणाम ? पितृ-भक्ति का फल क्या हुआ ?पिता की मृत्यु ।
माताएं विधवाएं बनकर दुखी बनीं।
भरत को सन्देश देना एक राजा के लिए क्यों असंभव रहा ? पता नहीं।
माता-पिता का अन्धानुकरण चतुर और कल्याण
चाहनेवाले राम-राज्य के लिए उचित नहीं।राम ने जो अनुचित कार्य किया ,उसका परिणाम ,उस पाप का परिणाम सीता का अपहरण;उर्मिला का विरह;लक्ष्मण का वनवास;अनावश्यक युद्ध ;
रावण का वध ऐसा हुआ कि बकरी को दिखाकर चीता पकड़ना।
सीता बली की बकरी बनी;आग में जलकर भी पति-त्याज्या बन गयी;जनता को सुपथ पर लाने केलिए
पत्नी को जंगल में छोड़ना कितना पागलपन है।निम्न जातिवालों अर्थात नीच कुल का पहला शस्त्र है स्त्रियों पर कलंक लगाना।
तमिलनाडु के प्रसिद्ध नेता ने पंडित नेहरु परअपने सज्जित भाषण पर दोष लगाया कि नेहरु विधुर हैं;
श्री लंका के प्रधान पंडारा नायिका विधवा है,दोनों क्यों अकेले मिलते है;यही कलंक लगाने शस्त्र है।
नरसिम्ह अवतार में भक्त प्रहलाद पिता की बात मानना अनुचित समझा।लेकिन राम अवतार में अनुचित उदाहरण प्रजा के सामने रखा गया है।
भगवान कार्तिकेय ने भी पिता को उपदेश दिया।पिता के अन्याय को न सहकर कैलाश पर्वत से सुदूर दक्षिण के
पलनि पहाड़ आ गए; अतः माता-पिता को अक्षरसः अनुसरण करना ठीक नहीं हैं।
समाज और देश की भलाई बड़ों के अन्धानुकरण में नहीं है।
100%धर्म पथ रामायण और महा भारत में नहीं है।अतः शासक अधर्म को अपनाकर चलते है और प्रजा विधिवाद को अपनाकर दुखी और सहन शीलता का मार्ग अपनाती है।
इस गोपनीय ज्ञान -शिक्षा भारत की प्रगती का बाधक है।
भारत का प्रारम्भिक इतिहास राजा को ईश्वर का स्वरुप कहता है;अतः एक सुन्दर लड़की के अपहरण
केलिए हजारों वीर जवानों की पत्नियां विधवाएं बनीं।
इस स्वार्थता के कारण देश-द्रोही ने विदेशों के लिए द्वार खोला। सिकंदर के कारण विदेश लड़की भारत की बहू
बनी।राजीव के कारण इटली सोनिया भारत की सूत्रधारी बनी।
अब्दुल कलम ईमान्दारी राष्ट्रपति को जो तमिल भाषा के कवि और लेखक है उनको विश्व तमिल सम्मलेन में भाग लेने का निमंत्रण-पत्र भी नहीं मिला।
यह भी भाग्यवाद मानना स्वार्थ और धन की लालची,पद के पागल नेता का ,भ्रष्टाचार नेता के भाग्यवाद है।
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