पट्टी नत्तार =तमिल संत की कवितायें
भावार्थ.
नारी के कान तक के नेत्र
स्त्री के कटी प्रदेश,ये हैं ,कलह कारक;
बाधक है ईश्वर भक्ति के.
पंचेन्द्रिय चोर हैं,कलह्प्रद,दुःख प्रद.
दुखप्रद जंगल यह देह;
है जल-मूत्र से भरे संदूक;
वाद-पित-कफ के आवास.
गन्दगी के त्वचा,रक्त संचार का यन्त्र.
दुर्गन्ध का घडा.चार गज की लम्बाई,
नौ-द्वार की लकड़ी का टुकड़ा.
अस्ति से ढका श्मशान का चबूतरा.
इच्छा की रस्सी से चक्कर काटनेवाला लट्टू,
असाध्य रोगों का घर
.माया का भद्दा रूप;
अन्न से भरा थैली मरण कोठरी;
हवा में उडनेवाला पतंग
;कर्म फल के अनुसार यम के
हाथ की लकड़ी नर
जवानी में शादी का बंधन का पिंड ;
अंत में शव-सा अचल पिंड;
शव होने के बाद बस्ती में अस्थिर शोक;
हवा के सामने के सूखे फूल;
सबेरे सूरज के निकलते ही,
ओझल होनेवाले ओस की बूँद;
आकाश के इन्द्र धनुष.
मेघ गर्जन की छाया.
जल का भ्व्वर ;जल पर के लिखे अक्षर;
जागृति और स्वप्ना के बीच का प्रतीक;
उस में भी अस्थिरता का माया जाल.
यही है जीवन नर का.माया से भरा संसार.
ऐसे शरीर के रक्षक है ईश्वर;
शिव की स्तुति करते हैं
पर्वत राज की पुत्री,
उमाम्हेश्वरी करती यशो गान
करती तेरे .
आनंद नर्तन करके दास पर ;
करें कृपा.यही मेरी विनीत प्रार्थना.
No comments:
Post a Comment