Monday, August 6, 2012

भगवद गीता -4




भगवद गीता -4

एक राजा केलिए धर्म युद्ध से बढ़कर कोई बड़ी बात नहीं है।

धर्म युद्ध अपने आप  स्वर्ग का द्वार है।

ऐसे युद्ध से राजा अति प्रसन्न होंगे।
  1. ऐसे धर्म युद्ध नहीं करेंगे तो  राजा धर्म और कीर्ति के हत्यारे है।

     संसार के लोग धर्म के पक्ष  में भूपति नहीं लडेगा तो निंदा करेंगे।

    नामी राजा को अपकीर्ति होगी तो उसको जीने से मरना बेहतर हो जाएगा।

    लोग यही कहेंगे कि  राजा कायर है।

    भय  के कारण युद्ध को छोड़ दिया है।

    राजा दूसरों की दृष्टी में नीच हो जाएगा।
  2. युद्ध में वीर गति मिलेगी   तो  देवगण  प्रसन्ना होंगे।

    अतः साहस  के साथ लड़ो।

    ऐसे युद्ध करने से पाप नहीं होगा।

    ऐसा ही समझ लो कि सुख-दुःख,सम्प्पत्ति ,जीत-हार आदि सहज है;प्राकृतिक है।

  3. जो योग मार्ग पर चलता है,वह बुद्धिमान है;कर्म की बाधाओं को तोड़ देगा।
  4. दृढ़ता  जिसमें है,उसकी बुद्धि में एकाग्रता हो जायेगी।अस्थिरों की बुद्धि चंचल  होगी।
  5. कुछ लोगों में केवल वेदों की व्याख्या  में आनंद  होगा।

    उनके शब्द सुन्दर होंगे। वे केवल अपने सिद्धांतों को ही मानेंगे।

    बाकी बातों में दोष ही उनको मालूम होगा;
  6. वेदों के ज्ञाता की बात मानकर  बुद्धि बिगड़कर भोग और शासन में आसक्त होते हैं।
  7. ऐसे लोगों का मन और बुद्धि समाधी में स्थित नहीं होगी।
  8. वेदों में जो तीन गुणों की व्याख्या है,उवे तुम जानते हो।तुम अपने आत्मा को वश में कर लो।
  9. उच्च-कुल में जो पैदा होते हैं,वे अनुशासन,सत्य,लज्जा आदि तीन बातों पर दृढ़ रहेंगे।

    अर्थ सहित वेद  का ज्ञाता ब्राह्मण है।
  10. एक मनुष्य का एकमात्र अधिकार कर्म करना है।

    उसके परिणाम का अधिकारी मनुष्य नहीं हैं।कर्म करो।
  11. कर्म के फल का विचार मत करो।
  12. अनासक्त योग और कर्म सफल असफल पर सोचेगा नहीं।तटस्थता ही योग है।
  13. बुद्धि पर दृढ़ रहो।फल या परिणाम पर विचार मत करो।
  14. बुद्धिमान सद्कर्म और दुष्कर्म दोनों को तजता है।योग साधना ही कौशल पूर्ण है।
  15. मेधावी कर्म-फल तजकर जन्म संकट स मुक्ति होकार आनंद पद प्राप्त करते हैं।
  16. बुद्धि मोह-वश की परेशानी से मुक्ति दिलाती है।वह दुःख से छुड़ाती है।
  17. तभी मन एकाग्र होता है।
  18. बुद्धिमान मन की इच्छानुसार नहीं चलेगा।मन को काबू में कर लेता है।
  19. दुःख,सुख,भय,क्रोध आदि की परवाह न करना --मनुष्य को आदरणीय बनाएगा।
  20. पंचेंद्रियों की इच्छाओं को दमन करना श्रेयष्कर है।इनसे बचना हो तो धन -संचय को तजना है।
  21. सुदृढ़ बुद्धिवाले संसार में रहकर भी अनासक्त रहेगा।

    कछुए के सामान वह अपने पंचेंद्रियों को वश में  रख लेगा।

  22. ब्रह्म- ज्ञान सांसारिक मोह से मनुष्य को बचता है।

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