तटस्थता
(न्याय)
किसी अपराधी को दंड देते समय न्यायाधीश को अपराधी के अपराध पर ही ध्यान देकर सजा देनी चाहिये
यह देखना नहीं चाहिये कि वह दोस्त है या दुश्मन,अपना है या पराया .अपने मन को गवाह बनाकर तटस्थता
से फैसला देना ही उचित धर्म है.
२.
सच्चे न्यायाधीश की संपत्ती और यश कभी नाश नहीं होगा.वह कई पीढी को यश दिलात रहेगा.
३.
फैसला झूठा सुनाकर धन जोडकर सुखी जीवन जीने से .उन सुख को त्यागकर आदर्श मन के साक्षी
बनाकर जीने में ही भलाई है.
4.
किसी एक को सज्जन या दुर्जन जानना हो तो उसको मिलनेवाले यश या अपयश के द्वारा जान सकते है.
5.
मनुष्य का जीवनोनुन्नति होना और अवनती होना तो सहज बात है.लेकिन वही मनुष्य श्रेष्ठ है,जो अपने मन को
गवाह बनाकर किसी भी हालत में न्याय से न हटकर दृढ रहता है.
६.
मनुष्य को यह महसूस करना है कि न्याय से हटने पर उसका सर्वनाश हो जायेगा.जो न्याप्रिय है,उसकी तटस्थता उसको गरीबी के गड्ढे में धकेल देने पर भी संसार उसकी प्रशंसा ही करेगा
किसी एक को सज्जन या दुर्जन जानना हो तो उसको मिलनेवाले यश या अपयश के द्वारा जान सकते है.
5.
मनुष्य का जीवनोनुन्नति होना और अवनती होना तो सहज बात है.लेकिन वही मनुष्य श्रेष्ठ है,जो अपने मन को
गवाह बनाकर किसी भी हालत में न्याय से न हटकर दृढ रहता है.
६.
मनुष्य को यह महसूस करना है कि न्याय से हटने पर उसका सर्वनाश हो जायेगा.जो न्याप्रिय है,उसकी तटस्थता उसको गरीबी के गड्ढे में धकेल देने पर भी संसार उसकी प्रशंसा ही करेगा
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