Tuesday, August 14, 2012

नीति ग्रन्थ

नीति ग्रन्थ

नीति ग्रन्थ हमेशा मानव समाज को जीने के उपदेश देते है

.जीना तो जन्म लेने वाले सब जीव- रासियों केलिए प्राकृतिक देन है

.पर मनुष्य अन्य जीवों की तुलना में कृत्रम जीवन जीना श्रेष्ठ समझता है.

वह अपने बुद्धि बल से सब से सर्वोत्तम जीव है.

इतना होने पर भी वह सुखी नहीं है.क्यों?

वह एक नयी चीज़ का पता लगाकर संतोष नहीं हो रहा है


.एक नयी चीज़ खरीदकर संतोष नहीं हो रहा है.

उसके असंतोष में ही उन्नति है.

जो अपने प्राप्त जीवन से या वस्तु को पर्याप्त मानता है ,

वह चंद दिनों में ऊब जाताहै.

निष्क्रिय बनता है.जीने से मरना बेहतर मानता है.
ताज़ी हवा में उसकी जान है

.वैसे ही नयी चीज़ में ही आनंद है.

एक कन्या नए पुरुष से शादी करके बहुत खुश होती है,

क्या वह स्थायी है, नहीं.

एक बच्चे के जन्म लेते ही अपने पति से बढ़कर

नए बच्चे पर प्यार की वर्षा करती है.


अपना ज्यादा वक्त तो अपने नवजात शिशु से बिताती है.

यही आनंद नयी चीजों और आविष्कारों का सम्बन्ध है.
को जीने के उपदेश देते है


.जीना तो जन्म लेने वाले सब जीव- रासियों केलिए प्राकृतिक देन है

.पर मनुष्य  अन्य जीवों की तुलना में कृत्रम जीवन जीना श्रेष्ठ समझता है.

वह अपने बुद्धि बल से सब से सर्वोत्तम जीव है.

इतना होने पर भी वह सुखी नहीं है.क्यों?

वह एक नयी चीज़ का पता लगाकर संतोष नहीं हो रहा है


.एक नयी चीज़ खरीदकर संतोष नहीं हो रहा है.

उसके असंतोष में ही उन्नति है.

जो अपने प्राप्त जीवन से या वस्तु को पर्याप्त मानता है ,

वह चंद दिनों में ऊब जाताहै.

निष्क्रिय बनता है.जीने से मरना बेहतर मानता है.
ताज़ी हवा में उसकी जान है

.वैसे ही नयी चीज़ में ही आनंद है.

एक कन्या नए पुरुष से शादी करके बहुत खुश होती है,

क्या वह स्थायी है, नहीं.

एक बच्चे के जन्म लेते ही अपने पति से  बढ़कर 

 नए बच्चे पर प्यार की वर्षा करती है.


अपना ज्यादा वक्त तो अपने नवजात शिशु से बिताती है.

यही आनंद नयी चीजों और आविष्कारों का सम्बन्ध है.

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