दुःख चालीसा
तमिल संघ साहित्य के अंतिम संघ के
कील गणक्कू के कवि कपिलर रचित
ग्रन्थ है इन्ना नार्पतु. ..
अर्थ है दुःख चालीसा.
कील गणक्कू के कवि कपिलर रचित
ग्रन्थ है इन्ना नार्पतु. ..
अर्थ है दुःख चालीसा.
हनुमान चालीसा भक्ति और मुक्ति का है.
अलौकिकता के लिए
दुःख चालीसा;
लौकिक जीवन के दुखों से
बचने के लिए.
दुःख चालीसा;
लौकिक जीवन के दुखों से
बचने के लिए.
कवि का काल ५० ईसवी पूर्व से १२५ ईसवी पूर्व माना जाता है.
१.
त्रि नेत्र शिव भगवान् के चरण स्पर्श करके
प्रार्थना नहीं करनेवालों को दुःख होगा.
सुन्दर बलराम जिसका झंडा ताड़ का है,
शोभायमान है,उसकी प्रार्थना न कर ना दुखप्रद है.
चक्रधारी विष्णु को भूल्नेवालों को दुःख ही शेष है.
वैसे ही वेलायुध धारी कार्तिक को
प्रार्थना न करनेवालों को दुःख ही होगा.
संक्षेप में कवि का कहना है कि ईश्वर की प्रार्थना न करना दुःख देनेवाला है
२.
बिन बंधू के गृहस्थ जीवन की संपत्ति दुखदायक है
.
बिन बाप के अशिक्षित पुत्र का जीवन दुखदायक है.
साधू-संत को घर में रहकर भोजन करना दुखदायक है.
वेद-मंत्र निष्फल है तो दुःख दायक है.
३.
ब्राह्मण के घर में मुर्गी और कुत्ता घुसना दुःखप्रद है
.
विवाहित स्त्री पति की बात न मानना दुखप्रद है.
बिन किनारे की साडी पहनना दुखप्रद है.
प्रजा की रक्षा न करनेवाले नरेश के राष्ट्र को दुःख है.
४.
अत्याचारी ,हत्यारे राजा के अधीन जीना दुःखप्रद है.
अति बाढ़ की धरा में
तैरना दुःखप्रद है.
तैरना दुःखप्रद है.
कठोर बोली बोलनेवालों के
संघ में रहना दुःखप्रद है
संघ में रहना दुःखप्रद है
.
अस्थिर चित्त वालों का
जीवन दुखप्रद है.
जीवन दुखप्रद है.
५
.
किसान को जोतने के लिए
बैल न होना दुखप्रद है.
बैल न होना दुखप्रद है.
सेना का पीठ दिखाकर
भागना दुखप्रद है.
भागना दुखप्रद है.
अति धनी के क्रोध के
पात्र बनना .दुखप्रद है.
पात्र बनना .दुखप्रद है.
अति बलवानों को अहित
करना दुखप्रद है.
करना दुखप्रद है.
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