संतोष और आनंदप्रद जीवन जीने केलिए संसार है.
वास्तव में विश्व ऐसा है/? नहीं .क्यों?
मनुष्य जो कुछ सहज रूप में प्राप्त करता है उससे संतोष नहीं होता. वह अपने कठोर प्रयत्न द्वारा और नया
जीवन जीना चाहता है.आगे वह हमेशा दूसरों की प्रगति,दूसरों की बहुमूल्य वस्तुएं ,आधुनिक सुविधाएं आदि
सुनकर या देखकर उन्हें हासिल करने के लिए तड़पता है.
परिणाम स्वरुप अपनी मिली सहज सुख का ध्यान ही नहीं रहता.
अपनी शक्ति के विपरीत आशा में उसको कैसे शान्ति मिलेगी.
वास्तव में विश्व ऐसा है/? नहीं .क्यों?
मनुष्य जो कुछ सहज रूप में प्राप्त करता है उससे संतोष नहीं होता. वह अपने कठोर प्रयत्न द्वारा और नया
जीवन जीना चाहता है.आगे वह हमेशा दूसरों की प्रगति,दूसरों की बहुमूल्य वस्तुएं ,आधुनिक सुविधाएं आदि
सुनकर या देखकर उन्हें हासिल करने के लिए तड़पता है.
परिणाम स्वरुप अपनी मिली सहज सुख का ध्यान ही नहीं रहता.
अपनी शक्ति के विपरीत आशा में उसको कैसे शान्ति मिलेगी.
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