मनुष्य और धन
मनुष्य अपनी प्रतिष्ठा बनाये रखने केलिये धन ही प्रधान मानता है
.एक जमाने में वह ईमान्दारी से कमाने के प्रयत्ने में कठोर मेहनत करते थे
.ऐसे भी लोग थे ,जो धनी लोगों से लूटकर गरीबों में वितरीत करते थे. लोगों में
अपने आडम्बर पूर्ण आनंद मय लौकिक जीवन के लिये लूट ने वाले भी हैं .
अपने अहं की इच्छा पूर्ती के लिये देश द्रोही बनकर विदेशियो के हाथ अपने को बेचनेवाले भी है
.लोभी हैं,जो धन जोडने के लिये धन के पीछे पागल हो जाते है.
वे खुद भी खाते पीते है,दूसरो को भी खिलाते हैं .कई लोग अपने भविष्य केलिये,अपनी संतानो के लिये
धन बचत करते हैं.जब इन सब की मृत्यू हो जाती हैं, धन उन्हें जिंदा नहीं ला सकता.वाह! तिजोरियों और
लाकरों में बंद रहकर ,जो उनसे संबंध नहीं रखते,वे अनुभव करते हैं.
धन को लेकर कोई भी शाश्वत रूप में संसार में अमर नहीं हो सकते।.
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