Wednesday, October 2, 2019

पट्टिणत्तार गीत --1.

 भक्तों के भक्ति भरे
 कीर्तन के चाहक।
तिल्लै क्षेत्र के प्रेमी निवासी।
दाण्डव मूर्ति शिव,
जिनके सिरको
कमलासन के ब्रह्मा न दर्शन कर सके।
ऐसे श्वेत छत्रधारी शिव की कीर्ति
साधारण कवि कैसे कर सकते?
वर्णनातीत है ही।

    हे कांचीपुर के एकनाथ  शिव !
      तू  तो मनुष्य मन में
       एक के बाद एक चाह को बढ़ा रहा है। ।
       वह मनुष्य के अंत तक बढ़ती रहती है।
        पहले भूख ,भूख मिटाने नाना प्रकार के भोजन।
       भूख मिट गयी तो स्वर्ण की चाह।
       कांचन के बाद कामिनी की चाह
      कितनी इच्छाएँ ! क्यों ईश्वर ?

  मेरी गलतियाँ इस जीवन  में अधिक !
  तेरी कीर्ति को पढ़ा नहीं ,
तेरे पंचाक्षर मंत्र को न जपा।
  न प्रार्थना की  ,
न सोचा न विचारा।
मेरी सभी गलतियाँ 
और अपराधों को माफ कर देना। 

2 .
 जन्म लेते समय न लाते कुछ भी।
 मरते समय न ले जाते कुछ भी।
जो कुछ इस जान ें मिला वह ईश्वर की देन।
फिर भी उन्हें दान न देते लोग !
हे कांचीपुर के शिव !
इनके बारें में क्या कहूँ मैं ?

3 .हे शिव !  मैंने कई जीवों को मारकर
   उन्हें खाया भी !और जीवों को भी सताया है.
 अपने पापों के प्रायश्चित के लिए आया हूँ।
हे कांची के एकंबेश्वर !तेरे सामने खड़ा हूँ !
 मेरे पापों को माफ कर मुक्ति देना !












पट्टिणत्तार गीत

पट्टिणत्तार गीत। परिचय।

तमिल के  सिद्ध और संत में
प्रसिद्ध हैं श्वेतारण्यर।
तमिल में तिरुवेण्काडर है।
अब पट्टिणत्तार के नाम से प्रसिद्ध हैं।
उनको भगवान शिव के अवतार मानते हैं।
वे बचपन से अनासक्त जीवन बिताते थे।
  उनके पद्यों का सरल हिन्दी अनुवाद आज से।
  श्री गणेश करता हूँ,
श्री गणेश के नाम से ,
अनुग्रह करें ,अनुवाद हो पूरा।
  पहला भाग
1.कोयिल नान मणि मालै।
   मंदिर चतुर्मणि माला।
   चार तरह के छंदों से लिखे ग्रंथ।
१.वेण्पा =चौपाई। चार चरण का छंद।
२.कट्टलैक्कलित्तुरै.=आठ चरण का छंद
३.आसिरियप्पा=आठ चरण यण्सीर,
   इणैक्कुरल     चार/पाँच चरण
    नेरिसै =चार चरण।
 जारी....