Thursday, March 21, 2013

moodurai

तमिल कवयित्री  अव्वैयार निम्न और उच्च कुल्वालों  के गुण भेद को दूध और शंख से करते हैं।
दूध को गरम करो;दूध तो कम होगा पर उसका रंग सफेद ही रहेगा। रंग नहीं बदलेगा।वैसे ही
 शंख को   आग  में डालने पर भी रंग नहीं बदलेगा। सफेद ही रहेगा।दूध और शंख के गुण और रंग
 उबालने और गरम करने पर भी  परिवर्तन नहीं होगा।
 वैसे ही सज्जन को दुःख और गरीबी सताने पर भी अपने अच्छे
गुणों पर अडिग रहेंगे।उनकी चाल-चलन अच्छी ही रहेगी।पर निम्न गुणवाले बुरे ही होंगे।

अट्टालूम  पाल सुवैयिल कुनरातु। अलवलवाय
नट्टा लुम  नन्बु  अल्लार नन्बल्लर
केट्टालुम मेन  मक्कल में मक्कले शंगु
चुट्टालुम  वेन्मै  तरुम।।

उबालो दूध,नहीं होगा स्वाद में कमी!
मित्रता निभाओ सज्जनों से
फिर भी निम्नों के गुण सुधरेगा नहीं ;
दुर्दशा में भी श्रेष्ठ श्रेष्ठ ही रहेंगे;
शंख गरम करो,फिर भी सफेदी देगा ही;



मूदुरै -तमिल कवयित्री अव्वैयार --मूदुरै மூதுரை --ஔவையார்



मूदुरै -तमिल कवयित्री अव्वैयार --मूदुरै  மூதுரை --ஔவையார் 

இன்னா இளமை வறுமை வந்து எய்தியக்கால் 
இன்னா அளவில் இனியவும் --இன்னாத 
நாள் அல்ல நாள் பூத்த நன்மலரும் போலுமே 
ஆள் இல்லா  மங்கைக்கு அழகு.

गरीबी की जवानी,
अमीरी बुढापा,
मौसम के बाद खिले फूल 
विधवा की सुन्दरता  आदि
  दुःख प्रद है ही .

Tuesday, March 19, 2013

हमारे देश का कलंक है

भारत में बलात्कार बढ़ रहा है. बलात्कारियों की उम्र  अठारह साल निर्णय हुआ है;
अपराध करनेवाले क्या कम उम्र में कर सकते है. सोलह साल का लड़का पिता बन सकता है कि नहीं।।
लडकी माता बन सकती कि नहीं .
अपराध देखना है या अपराधी की उम्र. नौवीं कक्षा का छात्र वर्ग में अध्यापिका की हत्या की है;
मंत्री या एम.एल.ए पुलिस को मारता है. ये सब अपराध नहीं है. क्योंकि अगले चुनाव में वह जीतता है मतलब जनता उनको अपना अमूल्य वोट देती है;
अब विदेशी यात्रियों से बलात्कार; सबको दिन-बा-दिन भय के बदले प्रोत्साहन मिलता है या साहस;
यह तो हमारे देश का कलंक है; 

Monday, March 11, 2013

हिंदी सीखना,बोलना आसान है।  ஹிந்தி கற்றுக்கொள்ளுதல்,பேசுதல் எளிது.

Thursday, March 7, 2013

   १ ४. ऊधो -- ----लगावत सार.

सन्दर्भ----सूरसागर  के "भ्रमर गीत " अंश से यह व्याख्या दी गयी है।  कृष्ण गोपियों की  पीड़ा दूर करने अपने मित्र  उद्धौ  को भेजते हैं।  वह  गोपियों को निर्गुण ईश्वर का सन्देश सुनाता है। तब गोपियाँ  उद्धव से कहती है----

learn tamil -hindi.

तमिल-हिंदी सीखो

नान रूपाय  कोदुक्किरेन ==मैं रूपये देता हूँ।--i give rupees.
2. naan roopay koduppen= i will give rupees.=नान रूपाय कोदुप्पेन .=मैं रूपये दूँगा।

३. नान रूपाय कोदुत्तेन =मैंने रूपये दिये। naan roopay koduththen. maine rupye diye.

1.i speak tamil=naan tamil pesukiren.२.   i will speak tamil =naan tamilil pesuven.
१. मैं तमिल बोलता हूँ।=मैं तमिल में बोलता हूँ।२.    मैं तमिल में बोलूँगा।=नान तमिलिल पेसुवेन .

३. नान तमिलिल पेसिनेन .=मैं तमिल में बोला। naan tamilil pesinen= main tamil men bolaa.

७.  जसोदा----पावै.

सन्दर्भ:---   सूरदास इस पद में श्री कृष्ण की बाललीला का स्वाभाविक रूप में वर्णन किया है। वात्सल्य रस झलकता  है।

व्याख्या :--सूरदास माँ  यशोदा की लोरी यों गाते हैं  कि  हे निद्रा!तुम को श्री कृष्ण बुला रहा है;जल्दी आकर उसको सुला दो। यशोदा बालक को पालने में लिटाकर दुलारती है;पुचकारती है;पालना जुलती है।
बालक सोने का अभिनय करता है। आँखें बंद करता है;ओंठ फटकता है; यह देखकर यशोदा लोरी बंद करती है।सो जाने का इशारा करती है। बालक जग उठता है तो फिर गाने लगती है।बड़े-बड़े तपस्वीं मुनियों को भी जो सुख दुर्लभ  है,वह यसोदा को सहज प्राप्त हो रहा है।

विशेष:--बाल -लीला और्  वात्सल्य का सूक्ष्म अध्ययन कवी सूर ने किया है।

८. कर पग---पग ठेलत।।

सन्दर्भ:--सूरदास ने  इस पद में श्री कृष्ण की बाललीला का सूक्ष्म आध्यायन के द्वारा वर्णन किया है।

व्याख्या:--श्री कृष्ण अपने पैर के अंगूठे को लेकर मुख में रखकर पालने में   लेट  रहे है। आनंद का नजारा दीख रहा है। उस दृश्य को देखकर शिवजी सोचते हैं कि  वाट-वृक्ष बढ़ गया है और समुद्र के प्रलय जल को सहते है। बादल के बिखेरने से प्रलय की सूचना है। श्रीकृष्ण के उस रूप को दिक्पाल  विस्मय से देख रहे है। मुनियों के मन में आतंक छा  जाता है। धरती कांपने लगी।शेषनाग अपने सहस्र -फन को संकुचित कर लेते हैं।इतना होने पर भी व्रजवासियों को पता नहीं लगता;वे निर्भय रूप में घूम रहे हैं;वहाँ  ऐसा लगता है कि  श्री कृष्ण ने अपने अंगूठे को मुख में रखकर व्रज के संकटों को दूर कर लेते हैं।
विशेष:- सूर ने अंगूठे को मुख में देखकर विभिन्न विचारों को प्रकट किया है।
९. सोभित कर -----कल्प जिए।।
सन्दर्भ :--इस पद में सूरदास बाल रूप  और बाल  लीला का ह्रदय-स्पर्शी वर्णन करते हैं।

व्याख्या :--बालक कृष्ण हाथ में मक्खन लेकर चलते हैं।  वह दृश्य अत्यंत शोभायमान है।घुटने के बल चलने से उसका शरीर धूल -धूसरित है। उसके मुंह में मक्खन का लेपन है। उसके कपोल अति सुन्दर है तो नेत्र चंचल हैं। उसके माथे पर गोरोचन का तिलक भव्य है;उसके लत भ्रमरों के समूह-सा हैं। गले में बहुमूल्य सोने का बघनखे जुड़े माल है;वह कठुले की चमक और बघनख अधिक कामकीला और मनमोहक है। सूरदास कहते हैं कि उस सुन्दर रूप को एक पल निहारने से मनुष्य धन्य हो जाते हैं;उस भव्य रूप को बिना दर्शन किये कल्पों तक जीने से भी कोई लाभ नहीं है।

विशेष;-कवी की कल्पना और सूक्ष्म वर्णन युग-युगों तक स्मरणीय है।

१० . मैया ----जोटी ।।

सन्दर्भ :--एक दिन यशोदा ने बालक कृष्ण से कहा--काली -गाय के दूध पीने से तुम्हारी चोटी  बड़े भाई बलराम की चोटी  से लम्बी होगी; पर चोटी न बढी  तो बालक अपनी माँ  से शिकायत करता है। इसमें बाल मनोविज्ञान का  सहज चित्रण मिलता है साथ ही माँ  की चतुराई भरी सांत्वना का पता लगता है।
व्याख्या:--श्री कृष्ण ने माम से पूछा ---हे माँ ! मेरी चोटी कब बढेगी?  तुम तो मुझे दूध पिलाती रहती हो।मैं तो पीता रहता हूँ ; पर मेरी चिती बड़ी नहीं हुईं।लेकिन बलराम की चोटी बड़ी और मोटी होती जाती है।तुमने कहा किमेरी चोटी नागिन के सामान बड़ी होकर धुल में लोटेगी। तुम  तो मुझे केवल कच्चा दूध पिलाती है। मक्खन-रोटी नहीं खिलाती।श्री कृष्ण की चतुराई भरी बातें सुनकर कवी सूरदास कहते हैं कि श्री कृष्ण और बलराम की जोड़ी भाकों के मन में चिरंजीवी रहें।
विशेष:--बाल लीला का सहज वर्णन मिलता है।


१३ .  मैया-------कंठ लगायो!!

सन्दर्भ:--सूरदास इस पद में बालक कृष्ण के वाक्-चातुर्य का सुबोध भाषा में व्यक्त करते हैं।गोपियाँ बार-बार यशोदा से शिकायत करती हैं कि कन्हैया उनके घर में मक्खन चोरी करता है।एक दिन यशोदा ने  कृष्ण के मुख में मक्खन देखा तो डाँटने लगी।तब बालक कृष्ण ने यों बताया।
व्याख्या:- मेरी माँ! मैंने मक्खन नहीं खाया।तुम ने   मुझे सबेरे ही गायें चराने मधुवन  भेजा  था।मैं सबेरे से शाम तक गायें चराता रहा। शाम को ही लौट आया था। मैं तो छोटा बालक हूँ। मेरे हाथ छोटे हैं।मक्खन तो ऊंचे  छींके पर हैं।मैं कैसे मक्खन ले सकता हूँ।सब ग्वाल बालक मेरे दुश्मन बन गए ;  मेरे मुंह में बालकों ने मक्खन को लपेट दिया है।माताजी!ठुम भोली-भाली हो।तुम समझ रही हो कि  मैं तेरा पुत्र नहीं हूँ। अतः तुमको  मुझ पर भेद-भाव आ गया है। मैं आगे से गायें चराने नहीं जाऊंगा।
तुम ने   बहुत नचाया है।ये लकुटी और कम्बल ले लो।कृष्ण की  चुतुराई से भरी बातें सुनकर यशोदाने उसको अति प्यार से गले लगाया।
विशेष:--इस पद में वात्सल्य रस झलकता है।

Monday, March 4, 2013

११ .  मैया  ---------तू पूत।।

सन्दर्भ :--मैया  मोहिं -------मत तू पूत।।
व्याख्या:---सूरदास इस पद में  बालकों के बीच के झगड़े का सूक्ष्म निरीक्षण करके वर्णन करते हैं।
व्याख्या:- बालक कृष्णन अपनी माँ  से अपने बड़े भाई बलराम के बारे में शिकायत  करता है --माँ ! बड़े भाई ने मुझे बहुत खिझाया  है ;वह मुझसे कहता है---तूने मुझे कहीं से खरीद लाई  है;मुझे तूने जन्म नहीं दिया है;इस गुस्से के कारण मैं खेलने नहीं जाता।वह बार-बार पूछता है कि  तेरे माता -पिता कौन हैं?तू काला है।  यशोदा और नन्द गोरे  हैं।  वह इस बात को एनी गो बालकों को भी सिखा देता है। सब चुटकी दे-देकर हँसी  उड़ाते है। तू तो मुझे मारती है ।भाई पर अपना क्रोध नहीं दिखाती।
श्री कृष्ण के क्रोध भरी बातें सुनकर यशोदा ने कृष्ण से कहा--हे कन्हैया!मेरी बातें सुन।बलराम तो  अपने जन्म से धूर्त  है। मैं अपने गो धन पर कसम खाती हूँ --मैं माँ  हूँ।तू पुत्र  है। उसने ऐसा नहीं कहा कि तू मेरा पुत्र है। इसमें कवी की चतुराए मालूम होती है।यशोदा झूठ नहीं बोली।कसम भी खाया।
विशेष ;-बाल लीला का सहज वर्णन के साथ कवी के अनुभव् जन्य मौलिक ज्ञान अभिव्यक्त होता है।
५.  प्रभु -----जात टरो।

सन्दर्भ :-  सूरदास इस पद में अपने अवगुणों को माफ करके अपने को उद्धार  करने  की प्रार्थना अपने इष्ट देव से करते हैं।

व्याख्या:-  सूरदास ईश्वर से प्रार्थना करते हैं --हे प्रभु! मेरे अवगुणों को क्षमा कर दो। अपने मन में मेरे  अवगुणों को स्थान मत दो। तुम तो सब को सामान दृष्टी से देखते हो। अतः मेरा उद्धार करो।
मैं गंदे नाले का पानी हूँ। तुम तो पवित्र गंगा हो। नाले का पानी नदी में संगम होने पर दोनों ही पवित्र हो जाता है।
वैसे ही तुम में मैं मिल्जाऊँ,तो पवित्र हो जाता। एक ही लोहा तलवार के रूप में वध करता है;वहीं लोहा पूजा का भी काम आता है। इसी लोहे को पारस मणि सोना बना देता है। वैसा ही मेरा उद्धार करो। मेरे उद्धार न करने का मतलब है,तुम समदर्शी  अर्थात सब का उद्धारक नहीं हो।
विशेष :-- सूरदास ईश्वर से अपना अधिकार माँगते  हैं। उनका कहना है कि  पापियों की रक्षा करना समदर्शी ईश्वर के अद्भुत गुण है.
६. सरन--------कंस प्चार्यो।
सन्दर्भ:- इस पद में सूरदास ईश्वर के शरानागात्वत्सलता  की महिमा गाते हैं।
व्याख्या:-  भगवान तो अपने सच्चे भक्तो की पुकार  तुरंत सुनकर उद्धार करते हैं। जो उनकी पूर्ण शरणागति में आ जाते हैं, वे उनके रक्षक हैं।
व्याख्या:--सूरदास कहते हैं  कि  भगवान कृष्ण  ने  उनके शरण में आये सभी भक्तों का उद्धार किया है। किसका उद्धार उनहोंने नहीं किया? वे  कृष्ण की शरणागत वत्सलता के कई उदाहरण देते हैं। कवी सूर कहते हैं कि  भक्तों की रक्षा के लिए भगवान श्री कृष्ण सुदर्शन चक्र के साथ दौड़ आये हैं। श्री कृष्ण ने दुर्वासा मुनि के क्रोध से उनके भक्त अम्बरीश को बचाया था। गोवर्धन  गिरी को अपनी उंगली से उठाकर गोपियों की रक्षा की और इंद्र के गर्व का नाश किया। अपने भक्त प्रहलाद  की रक्षा के लिए नरसिम्हावतार  लेकर उसके पिता हिरण्य काशीपु  का वध किया था। गजेन्द्र के भक्ति  भरी पुकार सुनकर अपने चक्र से मगर-मच्छ को मारकर बचाया
था। कंस  को पछाड़ने की शक्ति श्री कृष्ण के सिवा किसमें  हैं?
विशेष:-भगवान की भक्तवत्सलता और शरागत वत्सलता का वर्णन सरल शैली में प्रकट करने की क्षमता सूर को छोड़कर अन्य  कवी में हो ही नहीं सक्ति।




४.छांडी --------दूजो रंग।।

सन्दर्भ :- सूरदास  इस पद में अपने मन को संबोधित करते है। मनुष्य  मन को सत्संगति की ज़रुरत है।
बुरी संगती से भजन में भंग होता है। इस पद में सोदाहरण सत्संगति और ईश्वर भक्ति का महत्त्व समझा  रहे  हैं।

व्याख्या :--   सूरदास अपने मन को संबोधित करते हैं  कि  हे मन!तू बुरा संग  छोड़ दो। बुरे संग के  कारण बुद्धि भ्रष्ट  हो जाती है। ईश्वर भजन में अडचनें आ जाती है। ऐसेबुरे संग छोड़ने में ही भलाई है;बुरे संग में पड़कर फिर अच्छे विचार आना असंभव है। कौआ काला है;क्या उसको कपूर खिलाने पर सफेद होगा?कभी नहीं।
कुत्ते को गंगा में नहाने से क्या वह पवित्र बनेगा?कभी नहीं। क्या गधे पर सुगन्धित द्रव्य लगाने से कोई परिवर्तन होगा? उसको तो धुल में लोटने में आनंद होता है। बन्दर को आभूषणों से सज्जित करने से उसके गुण में बदलाव होगा ?नहीं। हाथी को नदी में नहाने से क्या लाभ होगा?वह तो अपने सर पर धुल डालकर आनंद का अनुभव करेगा। पत्थर पर तीर चलने से क्या कोई असर होगा?तरकस ही खाली होगा। काले कम्बल पर दूसरा रंग नहीं चढेगा। कवी के कहने का तात्पर्य है--बुरे संग में पड़ने पर सुधारना-सुधारना असंभव है।

विशेष :-  मन अपवित्र हो तो भजन में बाधाएँ  होंगी। अतः मन को कुसंग और कुविचार से दूर रखना चाहिये।




Sunday, March 3, 2013

सूरदास 

हिंदी  साहित्य  गगन के सूर्य  है  सूरदास .उन्होंने  अपने को कुदृष्टि  से बचने के लिए  अँधा बना लिया . कुछ लोगों  का  कहना है कि  सूरदास जन्मांध थे। 

सूरदास के  गुरु श्री वल्लभाचार्य थे. सूरदास अपने गुरु के अष्ट छाप कवियों में एक  थे. वे अपने गुरु की प्रेरणा से कृष्ण के अनन्य भक्त बने।कृष्ण लीलाओं का वर्णन व्रज भाषा में अत्यंत मधुर शैली में किया .
उनकी रचनाओं में 'सूरसागर" अत्यंत प्रसिद्ध  है. राधा-कृष्ण के प्रेम में मानव ह्रदय का सूक्ष्म भाव मिलते हैं .पाठक श्री कृष्ण के हँसने  के साथ हँसता है,रोने के साथ रोता है और उनकी शृंगारिक चेष्टाओं  में रागात्मिकता वृत्ति का अनुभव करता है. 
उनके रचित ग्रन्थ २५ से ज्यादा है. उनके लाखों पद हैं ;उनके अन्य उपलब्ध  ग्रन्थ हैं -साहिय लहरी,सूर सारावली .उनके ग्रंथों में वात्सल्य रस और शृंगार रस प्रधान  है।
उनकी शैली सुबोध और सरल है. उनका मन जहाज के पक्षी के समान  केवल श्री कृष्ण-भक्ति को ही चाहता है. 
उनका जन्म सं०१५४० हुआ  और मृत्यु सं .१६२० हुई .
मृत्यु के समय उनके मुख से निकला था--"चकई री,चली चरण-सरोवर,जहँ  नहिं  प्रेम-वियोग".
"सूर-सूर,तुलसी शशी ,उडुगन केशवदास। अब के कवी खद्योत सम ,जहँ -तहँ  करहिं  प्रकास।।"--यह पद हिंदी संसार में बहुत प्रसिद्ध  है।

सन्दर्भ सहित व्याख्या-
सूर-सौरभ-
१. चरण-----पाई।

सन्दर्भ:--यह पद सूरदास का है। इसमें कवी ने श्री कृष्ण की महिमा गाई है।

व्याख्या :---सूरदास श्री कृष्ण-भक्ति का महत्त्व यों बताते हैं:-श्री कृष्ण की कृपा से लंगड़ा पहाड़ पर चढ़ सकता है;अँधा सब कुछ देख सकता है;बहरा सुन सकता है;गूंगा बोल सकता है;गरीब राजा बन सकता है।अतः सूरदास श्री कृष्ण के चरण-कमल को बार-बार वंदना करते हैं;उनके कृष्ण करुणामूर्ती है;करुणा  से पूर्ण है।
विशेष :--संसार के दीन -दुखी लोगों के शरण-दाता  ईश्वर ही है।ईश्वर की शक्ति अतुलनीय और वर्णनातीत है।


२.  अबिगत----------पद गावै।।

सन्दर्भ:--  सूरदास इस पद में सगुण -भक्ति के ब्रह्मानंद का वर्णन करते हैं।

व्याख्या:--ईश्वर भक्ति और प्रार्थना-भजन से प्राप्त आनंद का प्रकट करना अत्यंत कठिन है।वह तो अनुभव-जन्य  सुख है। उदहारण के रूप में कवी सूर बताते है कि  गूंगा मीठे फल का स्वाद महसूस कर सकता है;पर उसका प्रकट कर नहीं सकता। वैसे ही भगवान के दर्शन और भजन जो संतोष्प्रद  है,उस आत्म-संतोष व्यक्त नहीं कर सकते। सगुण  भक्ति निर्गुण भक्ति की तुलना में सर्वश्रेष्ठ  है;आनंदप्रद है। भक्ति को निर्गुण में रूप नहीं;रंग नहीं;आकार  नहीं ;ऐसे भक्ति-मार्ग के पीछे दौड़ना बेवकूफी है।अतः सूरदास सगुण-भक्ति को अपनाकर  सगुण  ब्रह्म के पद गाते हैं।
विशेष:--निर्गुण से सगुण  का महत्त्व बताया गया है।

३. मेरो ------दुहावै.

सन्दर्भ:- सूरदास इस पद में कहते हैं कि इधर-उधर भटकने के बाद भी उनका मन सिर्फ भगवान श्री कृष्ण को ही मानता है।

व्याख्या:-सूरदास कहते हैं कि  श्री कृष्ण की भक्ति में ही उन का मन लगता है। समुद्र के बीच जहाज में जो पक्षी रहता है,वह इधर-उधर उड़ने के बाद समुद्र के जहाज को ही वापस आता है। वैसे ही कवी का मन अन्य  देवी-देवतावों के  पीछे भटककर  फिर भगवान श्री कृष्ण का ही समर्थन करता है। पवित्र गंगा -जल को छोड़कर प्यास बुझाने अति मूढ  ही कुआ खोदने लगेगा। भ्रमर कमल का रस रहते कडुवे फोल का रस नहीं चखता।कामधेनु के रहते कोई भी बकरी का दूध नहीं दुहता।
विशेष: कवी सूरदास कई उदाहरणों के द्वारा अपने आराध्य देव की महिमा गाते है।