Thursday, October 27, 2022

तिरुक्कुरल तमिल ग्रंथ २५० कुरलों का सार

 हिंदी व्याख्या :---एस .अनंत कृष्णन , हिंदी प्रेमी ,हिंदी प्रचारक ,अनुवादक 

अवकाश प्राप्त प्रधान अध्यापक ,हिंदू उच्च माध्यमिक विद्यालय ,त्रिवल्लिक्केनी ,चेन्नै
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तिरुक्कुरल में तीन खंड हैं। 133 अध्याय है ।एक अध्याय में दस तिरुक्कुरल है ।कुल 1330 कुरल हैं ।
तीन खंड है–1.धर्म 2.अर्थ 3.काम ।
इन सब का सार रूप देने का प्रयास है  हिंदी में ।
आशा  है  अतमिल लोगों को समझने आसान होगा ।
पाठकों से निवेदन है  कि 

इस अनुवाद के गुणों-दोषों को
अभिव्यक्ति कीजिए  जिससे मेरा प्रोत्साहन बढ़ेगा और मेरी अपनी ग़लतियाँ समझ में आएगी।
और भी सुचारु रूप से लिखने में समर्थ बनूँगा ।

  मेरे तिरुक्कुरल ग्रंथ का अनुवाद notion press में प्रकाशित  ग्यारह भागों  में प्रकाशित  हुआ है ,जो अमेजान और notion प्रेस में मिलेगा ।
मेरा सम्पर्क –8610128658


             धर्म   

प्रार्थना 

1.अनंत शक्तिमान ईश्वर की प्रार्थना  करना है। वही इस भवसागर  पार करने का मार्ग है। भगवान तटस्थ है।समरस सन्मार्ग दर्शक हैं।धर्म रक्षक है।

वर्षा 

2. वर्षा के अनुग्रह और कृषि नहीं तो जीना दुश्वार है ,जितना भी औद्योगिक और तकनीकी प्रगति हो ,अंतरिक्ष पर मानव पहुँच जाए ,पर कृषि  ही प्रधान माना जाएगा । भूखा  भजन न गोपाल ।इधर उधर घूमकर अगजग को  किसान के सामने‌ नत्मस्तक करना ही पड़ेगा। 

पूर्वजों का सम्मान 

3. ईश्वर के अनन्य भक्त ,अनासक्त ,धर्म प्रिय ,तटस्थ ,संयमि महात्माओं  की  स्तुति कर ।
अधर्मियों को मृत्यु होने पर प्रशंसा  सही नहीं है ।
धर्म 

4.   धर्म सबल है। धर्म धन ,यश ,श्रेष्ठता सब देगा ।काम ,क्रोध ,मद लोभ आदि अधर्म है ।
गृहस्थ :-

5. गृहस्थ  धर्म  तभी श्रेष्ठ है जब गृहस्थ अपने पिता,माता ,पत्नी ,नाते रिश्ते ,साधु -संतों और पूर्वजों की आत्मा सबकी धर्म पूर्ण सेवा करता है।
अर्द्धागनी 

6. ज़िंदगी  की सहायिका  जीवन संगिनी अर्द्धांगि्नि‌ग्नी पति की आर्थिक स्तिथि के अनुकूल अपने ससुराल की सेवा न करेगी ,पतिव्रता  और सहनशील न रहेगी तो  गृहस्थ का जीवन  में आत्मानंद और संतोष दूभर होगा।पत्नी ही  पति के सुखी जीवन का  आधार  स्तम्भ है।
संतान भाग्य 

7.  मानव जीवन की बहुत बड़ी असली सम्पत्ति सुपुत्र ही हैं । कुल की मर्यादा रक्षक है। सुपुत्रों का आलिंगन,चुंबन,

तुतली बोली,  शिशुओं के लघु करों  से मिश्रित भोजन आदि ब्रह्मानंद सम स्वर्ग तुल्य है। वही अन्य चल अचल संपत्तियों से  बढ़ी है।
प्यार 

8.प्यार की संपत्ति के लिए कोई  कुंडी नहीं है।प्यार में त्याग ही है।प्यार ही धर्म है। निस्वार्थ प्रेम में लेन -देन की बात नहीं है। प्रेमहीन लोगों को धर्म देवता वैसा जलाएगा,जैसा धूप हड्डी हीन जीवों को जलाता है।


अतिथि सत्कार 

9. .अतिथि सत्कार  ग‌हस्थ जीवन का बड़ा लक्ष्य होता है। अतिथि सत्कार करने वालों पर  सदा अष्टलक्ष्मियों की कृपा की वर्षा होगी।
मीठी बोली 

10.मधुर बोली का महत्व सर्वोपरी है। मीठी बोली सुखप्रद है। कल्याणकारी है।मधुर फलप्रद हैं।
    शत्रु को मित्र ,मित्र को शत्रु बनाने  की शक्ति  मधुर बोली में है ।

कृतज्ञता 

11. कृतज्ञता मानव जीवन का श्रेष्ठ गुण होता है।कृतघ्नता की मुक्ति नहीं है।वक्त पर की लघु मदद ब्रह्माण्ड से बडी है।
तटस्थता 

12. तटस्थता अति उत्तम धर्म है , श्रेष्ठ है ;अनासक्त जीवनप्रद है ।स्वार्थ से परे हैं।तराज़ू  समान तटस्थ रहना ही ज्ञानी का लक्षण है ।
नम्रता /आत्म नियंत्रण 

13. नम्र रहना ही ज्ञानी का लक्षण है।कछुआ समान पंचेंद्रियों को क़ाबू में रखकर विनम्र रहनेपर साथों  जन्मों  में श्रेष्ठ रहेंगे ।जीभ को क़ाबू में रखना अति अनिवार्य है।आग से लगी चोट भर जाएगी ,पर शब्दों की चोट कभी नहीं भरेगी ।
संयम  ही सज्जनता है।
अनुशासन 

14. अनुशासन का पालन करना मान -मर्यादा का आधार है । कुल गौरव रखना अनुशासन पर ही निर्भर है।चालचलन और चरित्र ही सदा मानव मर्यादा का संरक्षक है ।
परायी पत्नी की इच्छा पाप 

15. परायों की पत्नी से इच्छा करना , सम्भोग करना  बेवक़ूफ़ी  है । इससे  होनेवाला अपयश , पाप ,दुश्मनी स्थायी कलंक होगा । बदनाम कभी नहीं मिटेगा ।

 

 16 – सब्रता
      मानवता का श्रेष्ठ  गुण सब्रता याने  सहनशीलता है।हमें निंदा करनेवाले ,अहित करनेवाले ,हम पर क्रोध 

दिखानेवाले ,दुःख देनेवाले  आदि  सबको क्षमा करना और सहन शीलता दिखाना स्थायी यशों के मूल या आधार स्तंभ है। सहनशील मानव का यश अमर हैं। इस संदर्भ में रहीम का दोहा स्मरणीय है।
“ 

छिमा बड़न को चाहिए, छोटेन को उतपात। का रहिमन हरि को घट्यो, जो भृगु मारी लात।।


 17 – ईर्ष्यालू न होना
        ईर्ष्या  आजीवन मानव के लिए दुखप्रद है ।ईर्ष्यालु आमरण शांतिरहित  और असंतोषी  रहता है।उसके घर में वास करने लक्ष्मी देवी  कभी नहीं चाहती ।अपनी बड़ी बहन ज्येष्ठा देवी को छोड़कर जाती है। ईर्ष्यालु कंजूसी होने से बदनाम और अपयश स्थायी बन जाता है ।दानी  व्यक्ति से ईर्ष्या करनेवाले का उद्धार कभी न होगा ।

18 – लालच में न पड़ना
    धर्म पथ पर जाकर सुखी जीवन बिताना है तो लालच में पड़ना नहीं चाहिए ।लोभ वश दूसरों की चीजों को चोरी करने पर लोभी ज्येष्ठा देवी का प्यार बनजाएगा ।ज्ञानी लोभ से दूर रहेंगे ।लोभी मूर्ख ही बनेगा ।
काम ,क्रोध ,मद ,लोभ ,जब मन में लगै खान ।

तब पंडित -मूर्ख एक समान ,क़हत तुलसी विवेक ।

19 – चुग़ली करना / पीठ पीछे निंदा करना
        चुग़ली करना अधर्म है। किसी एक के सामने निंदा करना सही है पर पीठ के पीछे अपयश की बातें करना बूरों का काम है। अपने निकट दोस्त को उसकी अनुपस्तिथि में निंदा करता है तो अन्यों के बारे में क्या करेगा। अपने दोषों को पहचानकर सुधरना उत्तम गुण है।
कबीर –

"बुरा जो देखन मैं गया ,बुरा न मिलिया कोय ।

जो दिल खोजा आपना मुझसे बुरा न कोय।।
        अतः वल्लवर के अनुसार चुग़ल करना मूर्खता है। 

 20 बेकारी बातें न करना 

 बोलना है तो कल्याणकारी बातें ही करनी चाहिए।

घृणा प्रद  बातें करनेवाले बड़े होने पर भी नफ़रत के पात्र बनेंगे ।अनुपयोगी बुरी  बातें करनेवाले ,हानी प्रद बातें करनेवाले अनादर की बातें हैं ।

21 – बुराई करने से डरना चाहिए।

बुराई करने से होनेवाली हानीयों का भय  हमेशा ही सज्जनों के दिल में रहेगा  । दुर्जन ही बुराई करेंगे ।जो अपना कल्याण चाहते हैं ,उनको दूसरों की बुराई करनी नहीं चाहिए ।   बुराई करने पर उसका दुष्परिणाम छाया की तरह साथ आएगा ।   

 

 22 – समाज की  सेवा /निष्काम कर्तव्य करना
      मानव जो कुछ कमाता है ,वह दीन दुखियों की सेवा केलिए  है ।ग़रीबों की सेवा करके समरस आनंद का अनुभव ही मानव को महान बनाता है।परायों की मदद करने का गुण आदर्श लोगों में ही रहेगा। 

वे अपने लाभ -हानी पर विचार न करके परोपकार में ही लगेंगे।
         

 23 –दानशीलता –
    दूसरों की मदद करने कुछ देना दान शीलता है। निष्काम दान देना श्रेष्ठ सज्जन का लक्षण है। ग़रीबों की भूख मिटाना भी दान शीलता है। देना ही बड़ा धर्म है।


 24 – यश
      दान देकर यश कमाना ही शाश्वत यश है ।मानव जीवन में यश ही प्रधान है ।यश रहित पैदा होने से जन्म न लेना ही अच्छा है। मानव जन्म की सार्थकता यश कमाने में है।

 

 25 – सहानुभूति /करुणा

 मानव की श्रेष्ठ सम्पत्ति ही करुणा है ।सहानुभूति  जिसमें है ,वही  श्रेष्ठ है  ।करुणा जिसमें  है , उसको किसी प्रकार का दुःख नहीं है। 

धन नहीं तो सांसारिक सुख नहीं है ,करुणा /दया नहीं तो ईश्वर के यहाँ स्थान नहीं है।

Sunday, October 16, 2022

तमिलनाडु और हिंदी प्रचार।

 मैं कल एक हिंदी प्रचारक से मिला। पलनी के पास।

 हिंदी  सभा के Praveen aur मैंसूर विश्वविद्यालय के एम.ए।

एक स्कूल में हिंदी अध्यापक। 8000महीने वेतन।   ऐसे हजारों प्रचारक। गरीब मंदिर के पुजारी तरह राष्ट्र भाषा हिंदी की सेवा।

शासक हिंदी के विरोधी।

इनके प्रोत्साहन के लिए कोई कदम नहीं उठा रहे हैं। उनको कोई महत्व नहीं। तरुतले बैठे   रैदास भक्त समान।

 आप के नवीकरण पाठ्यक्रम सम्मेलन आदि की जानकारी इनको नहीं। केवल कालेज के प्राध्यापक। पाँच पन्ना लिखने से हिंदी का प्रचार नहीं

सभा की परीक्षार्थी 200000/दो लाख।

 प्रचारकों के लिए सरकार या सभा क्या करती है। 100करोड रुपये  शताब्दी वर्ष का खर्च।

कालेज उच्च शिक्षा के लिए  हर महीने सरकारी खर्च   । केवल  

बारह से बीस छात्रों को ज्ञान रहित स्नातक बनाने के लिए।

थीसिस इनसब डाक्ट्रेट का पाठक कोई नहीं।

इधर उधर नकल करके निर्धारित नियम पालन करके प्राध्यापक का बेगार बनकर डाक्टर।

अब ये थीसिस भी रेडिमेड।

 भरत नाट्यम की तरह दस साल की उम्र में बी.ए स्तर का प्रवीण।

 सातवीं कक्षा में प्रवीण उपाधीधार।    उनको हिंदी अध्यापक की नायुक्ति कैसे?

 पांच पन्ने  नहीं एक पन्न तत्काल शीर्षक देकर बोलना या लिखना

अपनी सीखी हिंदी से,

तभी असली ज्ञान। 

आजकल ऐसे एजेन्सी है

एम.ए तैयार बीएड तैयार। नियुक्ति तैयार। आंध्रा के एक शिक्षा अधिकारी का कहना है

अक्षर ज्ञान भी नहीं हिंदी ज्ञान भी नहीं हिंदी अध्यापक।

  आप ऐसे सम्मेलन  का प्रबंध नवीकरण के लिए कीजिए बुंदेल ग्राम के आदर्श प्रचारक चमक सके।

 सभा शिक्षण संस्था भी चुनाव के सदस्यों के इशारे पर चल रही है, वे सांसद विधायक की तरह मालामाल बनते हैं।

अब सभा के कोषाध्यक्ष जो हैं पाँच लाख खर्च करके। चुनाव नामांकन पत्र में भी गोलमाल।

   भगवान है पता नहीं,

असुरों का शासन, देव थरथराकर जेल में। मानव दधिची की रीढ़ की हड्डी है देशों की जीत।

 यह तो सभी युगों की बात,

न कलियुग की बात।

कलियुग  में  कुंती देवियाँ  प्रकट होती हैं।राज भय नहीं, लोक लज्जा नहीं, सब पति पत्नियों को तलाक कर शादी कर लेते हैं

ऐसे नायक और नायिका की अनुशासन हीनता के अनुयाई

उन अभिनेत्रियों को अभिनेताओं को दुग्धाभिषेक करते हैं।

अतः प्यार करो नहीं तो हत्या ।

  नकली की चमक असली है ज्यादा।कितने दिनों का।

Friday, October 14, 2022

மனிதன்

 [14/10, 4:35 am] sanantha .50@gmail.com: मानव  विविध प्रकार के ग्रंथों का अध्ययन करता है। उसके मन में भी अपने नये विचार आते हैं।  नाना प्रकार के ग्रंथ और नाना प्रकार के अपने विचार सब के मिश्रण में अपना एक निजी ग्रंथ का सृजन करता है।

   मानव मन  अपने विचारों को प्रकट करता है। जब संदर्भ ग्रंथ इधर उधर के उद्धरण नकल कर लिखना डाक्ट्रेट के नियम पालन ,नये लोगों के नारे विचार पर ध्यान न देना,

संदर्भ का अर्थ जो आटा गूंथा गया उसी को फिर गूँथकर विभिन्न पकवान बनाने के समान है। स्वाद नया ,आकार नया रूप अलग अलग। मूल तो आटा गेहूँगा होगा,चावल का होगा,चना का होगा।

 ऐसा ही साहित्य  का मूल  सत्य, अनुशासन,मनुष्यता, परोपकार निवार्थता, धर्म पालन, जगत मिथ्या ब्रह्म सत्यं।

  अतः सौंदर्य ग्रंथ और उद्धरण की खोज तलाश में मानव अपना निजत्व लाने में असमर्थ हो जाता है।

 हम महादेवी वर्मा की प्रशंसा से डाक्टर बन जाते हैं। अपने निजत्व को बैठते हैं।

  राम धारी दिनकर जैसे महान निबंधकार, निराला जैसे कवि, मैथिली शरण जै से कवि मूल से जो अपने निजत्व लाने में समर्थ हैं तो

 स्वतंत्र लेखक हैं। 

जयशंकर प्रसाद जैसे बहुमुखी कलाकार, कालिदास वाल्मीकि सुब्रह्मण्य भारती, कबीर किस विश

विद्यालय के स्नातकोत्तर थे।

उन के अध्ययन है खोज ग्रंथ उससे नौकरी, वेतन, अर्जित ज्ञान का बड़ा चढ़ाकर भाषण बस जीवन निर्वाह।

वे भूखे प्यासे दरिद्र अवस्था में 

महान ग्रंथ लिखकर अमर बन गये।

उनके प्रकाशक, आलोचना ग्रंथ लिखनेवाले, प्राध्यापक अति आराम।

मासिक वेतन, मार्ग दर्शक,गुरु, आचार्य।

 मूल रचना लिखने विचार ही नहीं।

मूल लेखकों ने  सब विचारों की अभिव्यक्ति कर ली।

 नायक, खलनायक, चोर, डाकू शासक,कुशासक सब  विषय प्राचीन साहित्य  में।

   अवैध बच्चा नदी में, मंदिर में, तालाब के किनारे पर।

उनका ज्ञान दोहराकर ,

 स्वार्थ वेतन जीवी है हम सब।

   आज के मन के विचार अनंतकृष्णन, हिंदी प्रेमी प्रचारक चेन्नै तमिलनाडु।

[15/10, 3:57 am] sanantha .50@gmail.com: मानव मन   மனிதமனம்

 मानव व्यवहार  மனித நடத்தை

 पशुत्व से भरा है तो  மிருகத்தன்மையால்  நிறைந்திருந்தால்

 मानव कैसै? -மனிதனா? 


कल एक खबर,  நேற்றைய செய்தி.

दिल झकझोर करनेवाली மனதை  நடுங்கச் செய்கின்ற செய்தி.

निर्दयता की चरम सीमा। இரக்கமற்ற செயலின் இறுதி எல்லை.

राक्षसी व्यवहार ராக்ஷஸ நடத்தை.


प्यार करने से  इनकार किया  तो  காதலிக்க மறுத்ததால் அந்தப் பெண்ணை 

 उस लड़की को

रेल से  धकेल कर हत्या कर ली।

ரயிலில் இருந்து தள்ளி கொலை.

कितना बड़ा अन्याय? எவ்வளவு பெரிய அநியாயம்.

लड़की के पिता ने आत्महत्या कर ली।

பெண்ணின் தந்தை தற்கொலை.

 उस लड़के को तत्काल कठोरतम दंड देने का कानून नहीं।

அந்தப் பையனுக்கு உடனடி தண்டனை கிடையாது.

 सांसद, विधायक अपराधी होते हैं।

பாராளுமன்ற சட்டமன்ற உறுப்பினர்கள்

குற்றவாளிகள்.

मतदाताओं की मर्जी तो क्या कर सकते हैं।

வாக்காளர் ஒப்புதல் என்ன செய்ய முடியும்.?

   निष्कर्ष कलियुग।--முடிவு கலியுகம்.

सीता का क्या हुआ? சீதைக்கு நடந்தது என்ன?


द्रोपति का क्या हुआ? துரௌபதிக்கு என்ன ஆயிற்று?

 कुंती का व्यवहार। குந்தியின் நடத்தை?

अतः जिसकी लाठी उस की भैंस की नीति.

அதனால் தடி எடுத்தவன் தண்டல் காரன்.

बाघ -हिरण का सृजनहार का दोष है,

புலி -மான் படைத்தவனின் தவறு.

फूल और काँटे के समान।

முள்ளும் மலரும் போல்.

सबहिं नचावत राम गोसाईं।

அனைவரையும் ஆட்டிவைக்கும் ஆண்டவன்.

स्वरचित स्वचिंतक एस . अनंतकृष्णन,

तमिलनाडु का हिंदी प्रेमी प्रचारक।

Thursday, October 6, 2022

विवेक चिंतामणि

 विवेक चिंतामणि —तमिल नीति ग्रंथ 

 विवेक चिंतामणि —तमिल नीति ग्रंथ 

 விவேகசிந்தாமணி—

     தமிழ் நீதி நூல்.

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    तमिल के नीति ग्रंथों  में विवेकचिंतामणि ज्ञानप्रदग्रंथ है।

   इसकी रचनाकारों के नामों का पता नहीं हैं ।।

  यही  निर्णय लिया गया है  कि  कई कवियों द्वारा  

  लिखित पद्यों का संग्रह है।
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                    प्रार्थना 

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१    तमिल मूल :--अल्लल पोम वल्विनै  पोम अननै वयिट्रिल  पिरंत
                      तोल्लै पोम पोकात तुयरम पोम –नल्ल 

                       गुणमधिकामाम अरुनैक गोपुरत्तुल मेवुंग 

                        गणपतियैक  कै तोलुतक्काल ।।
अल्लल –दुःख;  पोम =दूर होगा ;।वलविनय -संचित कर्म ; अननै = माँ  वयित्ट्रिल =पेट में ;पिरंत  तोल्लै –जन्म लेने के कारण मिले प्राप्त कर्म ;पोकात तुयरम –न मिटनेवाले दुःख
अच्छे गुणवाले  अरुनैक कोपुरात्तुल –तिरुवन्नामलै  गोपुर में ; गणपतियैक =गणपति को

कैतोलुतक्काल =हाथ जोड़कर प्रार्थना करने पर।
भावार्थ :-

        अगजग में सुख-दुःख  भगवान की देन है । भारतीय काव्य सभी भाषाओं में ईश्वर्वंदना ,गुरुवंदना से ही श्री गणेश करने  की रूढ़ी  चल रही हैं । वैसे ही तमिल ग्रंथ विवेक चिंतामणि का श्रीगणेश   श्री गणेश  की वंदना  से   शुरू होता है।

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भावार्थ :--
  तिरु अन्नामलै  में विराजित श्री गणपति जी  की प्रार्थना करने से 

  दुःख दूर होगा ।

संचित कर्म फल का पाप दूर होगा ।

माँ के पेट में जन्म लेने के कारण प्राप्त कर्म फल दूर होगा ।
जो पाप मिटना असम्भव है वह भी दूर होगा ।
अच्छे भक्तवत्सल तिरुअन्नामलै  में विराजमान श्री गणेश जी को दोनों   हाथ जोड़कर प्रार्थना करने से  हम पुण्य संचित करेंगे ।
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       २।अनुपयोगी
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  आपत्तुक्कु उतवा पिल्लै 

    अरुंपसिक्कु  उतवा अन्नम 

    दरिद्रम  अरियाप  पेंडिर ,

    तापत्तै तीरा तन्नीर ,

    कोपत्तै अड़क्का  वेन्दन ।
    गुरु मोऴि कोळ्ळाच्चीडन

    पापत्तैत्   तीरा  तीर्थ्थम ,

    पयनिल्लै एलुंताने ।


भावार्थ :--- पुत्र जो आपातकाल में मदद नहीं करता ।
                अन्न जो अधिक भूख के समय  काम नहीं आता।
                औरत जो दारिद्रिय न जानती ।

                 पानी जो प्यास न बुझाता ।
                राजा जो क्रोध न दबाता ।
                शिष्य जो गुरु की बात नहीं मानता
                तीर्थ जो पाप नहीं मिटाता ।

             ये सातों  के रहने पर भी 

             कोई प्रयोजन नहीं हैं ।

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    ३।    प्यार और इज्जत ही श्रेष्ठ 

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ओप्पूड़न मुकमलर्न्तु उपसरित्तु  उन्मै पेसी

   उप्पिल्ला कूलिट्टालुम
    उण्पते  अमृतमाकुम।

    मुप्पलमोडु पालन्नम्
  मुकम  कडुत्तु  इडुवाराईन ,नप्पिय 

  पासियिनोडु  कडुम पसि याकुम ताने ।।


भावार्थ :--  प्रिय मन  से मुख खिलकर सत्कार 

                करके बिना नमक  के  दलिया 

                 खिलाने पर भी वह अमृत ही होगा ।
                चेहरे में कटुकता दिखाकर 

                दुग्धान्ना खिलाने पर भी
                वह भूख कम नहीं करेगा ,

                 वह विष बराबर ही होगा ।

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   ४। कुल  न बदलेगा गुण न बदलेगा 

—------ कुक्कनैप पिडित्तु  नालिक कूँडिनिल  अडैत्तु  वैत्तु 

         मिक्कतोर  मंचल पूसी मिकु मणम तालूंतान ,
      अक्कुलम वेराताम्मो अतनिडम  पुणुकुंडामो
      कुक्कने कूक्कनल्लार कुलन्तनिल पेरिय तामो ।

भावार्थ :--

       कुत्ते को पकड़कर गंधबिलाव  के पिंजड़े में 
      बंद कर   हल्दी  चूर्ण लगाकर सुगंधित करने पर 

      भी  कुत्ता कुत्ता ही है ,न उसका कुल बदलेगा ;   न उसका गुण ।।
      न उसका कुल बड़ा ,

           न सुगंधित द्रव  दे सकता।।।

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4.     आलिलै  पूउँकायुम  इनितरूम पलमुम
        उँडेल ,सालवे पक्षी येल्लाम तन कुड़ी 

      एनरे वालुम ,वालीपर वंतु तेडि ,

       वंतिरुप्पर कोड़ाकोडी आलिलै
      याति पोनाल अंगुवंतु  इरुप्पारुण्डो  ।
    भावार्थ :-- 

जब वटवृक्ष फूल -फल से

भरे होते ,  तब  सभी पक्षी तलाश करके , वहाँ आकर बस जाएँगे ।
पतझड़ में कोई  हरियालीहीनसूखे पेड़ पर नहीं रहेगा।   

  वैसे ही धन है ,धनी है तो नाते रिश्ते घेर लेंगे ।,

     हमारे यहाँ आएँगे धन नहीं तो कोई झांककर भी न देखेंगे ।
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5. तंडामरैयिनुडन  पिरंते  तंड़ेनुकरा मंडूकम  ।

     वंडे कानत्तिरैयिरंतु  वन्ते 

     कमल मधु  उणनुम ।

    पण्डे  पलकियिरुंतालुम  

   अरियार पुल्लोर नल्लोरैक 

    कंडे  कलित्तु अंगु उरवाडि 

     तम्मिर कलप्पर कटरारे ।
  भावार्थ :-- 

मेंढक कमल फूल के तालाब में ही रहता है 

 पर कमल के शहद  मेंढक नहीं चूसता । 

कहीं जंगल से भ्रमर आकर शहद का स्वाद लेंगे ।

 शिक्षितों का महत्व  पास रहनेवाले मूर्ख  नहीं जानते ।

 कहीं से एक ज्ञानी उन्हें पहचानकर आदर करेंगे
  उनसे दोस्ती निभाएँगे ।शिक्षित और गुणी ही गुणी का आदर करेंगे ।

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६। बुद्धिहीनों को उपदेश देना हानिकारक है ।
    वानरम मलैयिनिल  ननैय  तूक्कणम 

    तानोरू नेरी सोल्लत तांडिप्पि  प्पियत्तिडुम  

   ज्ञानमुम कलवियुम नविन्र  नूलकलुम
  ईनरुक्कु उरैत्तिडिल इडरताकूमे ।।

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 वर्षा में भीग रहे  बंदर से बया ने कहा ,

”तू क्यों मेरे जैसे घर बनाकर सुरक्षित रह नहीं सकते “।

झट बंदर पेड़ पर चढ़ा और बया के घोंसले को  छिन्न -भिन्न कर डाला ।

मूर्खों  को उपदेश देना ख़तरे से ख़ाली नहीं ।

अपने ग्रंथों के ज्ञान  उपदेश को अयोग्यों को देना दुखप्रद ही है।
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७। सत्संग में रहो
करपकत तरूवैच चार्र्नत काकमुम अमृतमुण्णुनम ।

विर्पन विवेकमुल्ल वेंदरैच  चेर्नन्तार वालवार ।
इप्पुवि तन्निलोन्रु इलवु कात्त किलि पोल ,
अरपरैच चेर्नत वाऴवु वीनाकुम ।

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भावार्थ :-
कल्पतरु में  रहनेवाले कौवे भी अमृत खाएगा ।
ज्ञानी राजा के सम्पर्क में जीनेवाले गरीब भी सुखी रहेंगे ।
अल्पज्ञ के संग में रहें तो सेमर के फल की

 इंतज़ार में रहे तोते के समान जीवन बेकार होगा ।

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८। अपनी स्थिति न बदलो ।

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चंगु  वेण तामरैक्कुत तंतैयाय इरवि तन्नीर ,
अंगतैक कोयतूविट्टाल 
अलुकच्चेय तन्नीर कोल्लूम ,तूँगवान
करैयिर पोट्टाल सूरियन कायत्तक कोलवान
तंकलिं निलैमैक केट्टाल इप्पडित तयंगूवारे ।।
भावार्थ :-
  श्वेत शंख रंग के कमल  के माता -पिता 

  नीर  और सूर्य हैं ।

  उस फूल को तोड़ , पानी में डालें तो 

  वही पानी  कमल को सड़ाएगा ।
  ज़मीन पर डालें तो वही रवि सुखाएगा ।
वैसे ही कोई अपनी स्थिति से फिसलेगा तो हानी उठाएगा ।
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9. आज ही भला करो।

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अरुंबु कोणिडिल  अतु मणम् कुन्रुमो।

करुंबु कोणिडिर् कट्टियुम  पाहुमाम।

इरुंबु कोणिडिल यानैयै वेल्ललाम।

नरंबु कोणिडिल  नामतर्कु एन चेय्वोम।


भावार्थ :--- 

    फूल की कली टेढ़े होने पर भी उसका सुगंध कम नहीं होगा।

 ईख टेढ़े होने पर भी उससे मीठे रस ही निकलेगा और गुड़ भी बनेगा।

 लोहा टेढ़े होने पर अंकुश बनाकर हाथी को काबू में ला सकते हैं।

 पर नशें खींचकर टेढ़ी होंगी तो  कौन क्या कर सकता है? 

 अतः  शरीर  और नशों को स्वस्थ रखना आवश्यक है।

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10.  बदलेगा पर विधि नहीं बदलेगा।

     +++++++++++++++++++++

मुडवनै मूर्खन् कोन्राल् मूर्खनै मुनितान कोल्लुम्

मडवनै वलियान  कोन्राल मरलितान अवनैक् कोल्लुम।  

तडवरै मुलैमातेयित तरणियिल उळ्ळोर्क्केल्लाम

मडवनै यडित्त कोलुम् वलियनैयडिक्कुम कंडाय।

++++++++++++++

  भावार्थ :--
लंगड़े को बदमाश मारेगा तो मुनीश्वर उसको मारेगा।

निर्बल को बलवान मारेगा तो यम भगवान उसको मारेगा।

इस भूमि पर सबको एक ही न्याय है। 

निर्बल को पीटनेवाली छड़ी बलवान को भी पीटेगा। 

 विधि की विडंबना को कोई भी  बदल नहीं सकता।

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11.दुष्टों से दूर रहो।

तेळतु तीयिल वीऴ्न्ताल चेत्तिडातु 

एडुत्तपेरै मीळवे कोडुक्किनाले

वेय्युरक् कोट्टलेपोल,एळनम् पेसित् 

तींगुट्रिरुप्पतै,एतिर्कंडालुम् 

केळिनर तमक्कु नन्मै चेय्वतु कुट्रमामे।


भावार्थ :--

 बिच्छु आग में गिरा, उसे बचाने जो लेता है, उसी को बिच्छु डंक मारेगा। यह बिच्छु का स्वभाव है। 

वैसे ही बुद्धिहीन बदमाशों को कोई भलाई करेगा तो 

वह बुराई में ही बदल जाएगी।

 अतः दुर्गुणी  से दूर रहना बेहतर है।

++++++++++++++++++++++++++(

१२. दान देना ही श्रेष्ठ धर्म है।

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मडुत्तवर वाणर तक्कोर  मरैयवर इरप्पोर्क्केल्लाम ,

कोडुत्तवर वरुमै युट्राल कोडातु वाऴ्न्तवर यार?

भू मेल एडुत्तुनाडुंड  नीरुम् ईयात काट्टकत्तु नीरुम् 

 अडुत्त कोडैयिल वट्रि अल्लतिर्पेरुकुंताने।।


 भावार्थ:---

  शरण में  आये  शरणार्थियों को, 

ज्ञानियों को, गरीबों को, वेद पंडितों को   

   दान देने से इस भूलोक में कोई  दरिद्र न बने। 

   कोई है क्या?

 क्या कंजूसी को  यश मिला है?

 सब को जल देनेवाले शहर बीच के  नदी,कुआँ,नाला, 

 अनुपयोगी जंगल के बीच का जल स्रोत 

 सब गर्मी में सूख जाते हैं,   

फिर  वर्षा ऋतु में भर जाते हैं। 

धन का आना निर्धन होना सहज बात है। 

धन को सभी के लिए उपयोग करना ही श्रेष्ठ धर्म है।
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काम बलवान है ।

  उणंगी योरुकाल मुडमाकी ओरु कण इलंतु  चेवियिन्रि , वणंगु नेडुवाल, 

अरुप्पुंड अःएद  पसियाल मुतुकोट्टिअणंगु  नलिय  मूप्पेयति   अकलवायोडु कळुत्तेंतिच

कणंकळ  मुडुवल पिन   चेन्राल  यार्क कामनाएँ  तुयर  चेयवान।

भावार्थ:--

   एक कुत्ते  का एक पैर टूट गया है,  

   पूँछ आधा कट् गया है,  बिना खायें पेट और पीठ दोनों एक हो गये ,               बुढापे के कारण अति दुर्बल है  गले में  मिट्टी  के टूटे गले के बाली है, 

  उसे निकालने की शक्ति  भी नहीं  है।

 ऐसी दुर्बलता में भी  वह एक कुतिया की ओर

 प्यार से पीछा करता है  तो  

काम देव   से अति सावधानी  से बच जाना है।

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14:  ज्ञान ही ऊर्जा है ।
    बुद्धिमान  बलवान आवान ,बुद्धि यट्राल , 

   एत्तनै वितत्तिलेनुम  इडरतू वंते तीरूम ।

    मट्रोरु  सिंगम  तन्नै कुरु मुयल  कूट्टिच्चेनरे  

   उट्रतोर  किनटरिल  सायल काट्टिय ऊवमय पोलाम ।
भावार्थ :--
  बलवान ज्ञान रहित सिंह को 

एक दुर्बल ख़रगोश ने अपनी चतुराई  के बल से  

एक कुएँ के किनारे पर ले जाकर
उस सिंह  की छाया को ही दूसरा सिंह बताकर मार डाला।

 बलवान को निर्बल अपनी बुद्धि बल से जीत सकता है ।
शारीरिक बल से बुद्धि बल  ही श्रेष्ठ होता है । 


 

15: सांसारिक व्यावहारिकता 

पोननोडु  मणि उँड़ानाल  पुलैयनुम  किळैज्ञन एनरु ,
तंनैयुम पुकलन्तु कोंडु  जातियिन मणमुम चेय्वार।

मन्नराय इरुंद पेरकल् वकै केट्टु पोवाराकिल

पिन्नैयुम आरोप वेन्रु पेसुवार एसुवारे।

भावार्थ :---

   लोग पैसे को ही प्राथमिकता और प्रधानता देते हैं।

स्वर्ण रत्नों  के रईस  निम्न होने पर भी रिश्तेदार मानेंगे।

उनसे विवाह भी कर लेंगे।

 बड़े सम्राट समान जीकर ,विधि के फेर से गरीब हो जाने पर उनका आदर न करेंगे। उनका अपमान भी करेंगे।

निंदा भी करेंगे।

    यथार्थता समझने के लिए जग के यश -अपयश‌ पर ध्यान न देना चाहिए।

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6. निर्धनी लाश समान

पोरुल  इल्लारुक्कु इनबम इल्लै पुण्णियमइल्लै एनरुम ,
मरुविय कीर्ति यिल्लै  मैंतरुक्कुम पेरुमै यिल्लै 

करुतिय  धर्म मिल्लै  गति पेर वलियुमिल्लै
पेरनिलंत  तनिर्चंजारप प्रेतमाय तिरुकुवारे ।

 

ग़रीबों को इस संसार में ख़ुशी नहीं है । गरीब सुकर्म कर नहीं सकते अतः पुण्य भी नहीं  है ,
यश भी नहीं ,उनके बेटों को भी सामाजिक बड़प्पन नहीं है ,दान धर्म नहीं कर सकते ;अतः पुनर्जन्म  में भी  भलाई नहीं ।
इस बड़े भू भाग में ज़िंदा लाश के समान चलते फिरते रहेंगे । अतः धन कमाना अवश्य है।

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17.आचारम  सेयवाराहिल अरिवोडु  पुकषुम उंडाम ।
आचारम ननमैयानाल अवनियिल देवर आवार ।
आचारम सेय्याराहिल अरिवोडु  पुकलुम अटरुप
पेसार पोल पेच्चूम आकिप पिनियोड़ू नरकिल वीलवार ।

भावार्थ :---

आचार व्यवहार  में अनुशासन हो तो ज्ञान के साथ यश भी मिलेगा ।
आचार व्यवहार भला हो तो  जन कल्याण  हो तो देव बन जाएँगे ।
आचार व्यवहार में अनुशासन नहीं है तो यश खोकर  निंदा का पात्र  बनकर रोगी बनकर क्रूर नरक में गिरेंगे ।

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18. अमरता   

ओरुवने  इरंडु याक्कै ऊन पोति यान नाटरम ,

उरुवमुम पुकलुम आकुम अतरकुल नी  इन्ब मुटरु
मरुविय याक्कै यिंगे मायन्नतिडुम  मट्री याक्कै ,

 तिरमताय उलकम एत्तच  चिरंतुमिंनिर्कु मनरे ।

भावार्थ :--

             एक आदमी के दो शरीर होते हैं । 

              एक माँस से  बने बदबू भरा प्रत्यक्ष शरीर ,
              दूसरा प्रसिद्ध  अमर  शरीर ।

          सुख -दुःख को भोगे माँस शरीर तो  एक दिन मर जाएगा ।

             यश भरा शरीर अग जग को यशोगान करने

                स्थायी रूप में स्मारिका बन कर रहेगा ।
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19. महीने  में तीन बार वर्षा होने के कारण
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 वेदम ओतिय वेतियरुक्कु  ओर मऴै ,

नीति मन्नर नेरियिनुक्कोर मषै ।
मातर करपुउड़ेय मंगेयरक्कु ओर मषै,
मातम मूनरु मषैय एनप्पेय्यूमे ।
भावार्थ :-- 
वेदों  के दैनिक वाचन करनेवाले ब्राह्मणों  के लिए  एक वर्षा ,
न्याय पूर्ण  शासकों के लिए एक वर्षा ,

पतिव्रता नारी के लिए एक वर्षा ,

यों  ही तीन वर्षाएँ  

हर महीने बरसकर हमारा भारत वर्ष समृद्ध रहा।

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  २०।   वर्षा में तीन  बार वर्षा होने के कारण

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          अरिसि  विट्रिडुम्   अंतनोरक्कोर मऴै।
          वरिसै  तप्पिय मन्नरुक्कोर मलय
        पुरुषनैक कोन्र पूवैयरक्कोर मषै।
        वर्षम  मूनरु मषैएनप पेय्युमे।
  भावार्थ :--

        चावल बेचनेवाले  ब्राह्मणों  के लिए एक  वर्षा , 

          अधर्म  शासकों के लिए एक वर्षा , 

           कुलटा स्त्री के लिए एक वर्षा
          यों  ही वर्षा में तीन बार वर्षा होकर   

           आजकल   देश सूखा पड रहा है।

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21. धन का महत्व

तन्नुडलिनुक्कोन्रींताल

तक्कतोर बलमताकुम् 

मिन्नियल  

वेशिक्कींताल

मेय्यिले वियाधि आकुम।

मन्निय उरवुक्कींताल वरुवतु

मयक्क माकुम

अन्तिम परत्तुक्कींताल 

आरुयिर्क्कु उतवियाकुमे।

भावार्थ :-

    कठोर मेहनत से संचित वस्तुओं को 

  अपने लिए उपयोग करें तो हम खुद ताकतवर बनेंगे।

  कुल्टा को देने पर रोगी बनेंगे।

 निकट रिश्तेदारों को देने पर 

 खर्च अधिक होने से मन दुख होगा।

गरीबों को दान धर्म करेंगे तो वह बड़ा पुण्य होगा। धर्म हमें सुख देगा।

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22.   ज्ञान ही स्थाई संपत्ति है।

 अरिउळ्ळोर तमक्कु नाळुम अरसरुम तोळुतु वाळ्वार।

निरैयोडु पुवियिल उळ्ळोर नेशमाय वणक्कम् चेय्वार।

अरिउळोर तमक्कु यातोर असडतु वरुमेयाकिल,

वेरियरेन्रिकऴारेन्रुम मेतिनियुळ्ळोर थामे।

भावार्थ :--

 राजा  हमेशा ज्ञानी की  प्रशंसा करके  

उसकी सलाह मानकर शासन करेगा। 

संसार के लोग भी ज्ञानी का आदर करेंगे। ज्ञानी से प्रेम करेंगै।

ज्ञानी दरिद्र होने पर भी उसका अपमान  नहीं करेंगे।

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23.  अभिव्यक्ति न करना।

  गुरुवुपदेशम् मातर कूडगय इन्बम्

  यशपाल , मरुविय नियायम् कल्वी।

  वयतु तान सेय्त तन्मम ,

  अरिय मंत्रम् विचारम् आण्मैयिंगकिवै

   कळ्ळेल्लाम ,ओरुवरुन्तेरिय वोण्णातु उरैत्तिडिल

    अऴिन्तु पोते।

    भावार्थ :-- गुरु का एकांत उपदेश, 

                स्त्रियों का संभोग सुख , 

               अपने अच्छे गुण, शिक्षा, उम्र , 

             अपने किये दान धर्म , 

               गुरु से प्राप्त मंत्र, 

               ज्ञान अपने पौरुष शक्ति, 

         आदि को गोपनीय रखना चाहिए।

      बाहर प्रकट करने पर नाश ही होगा।
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24.     दानी को मत रोको ।

इडुक्किनाल वरुमैयाकि एट्रवर्क किसैंत सेल्वम्

कोडुप्पतु मिकवुम् नन्रे कुट्रमेयिन्रि वाऴ्वार।।

तदत्ततै विलक्किनोरुक्कु तक्क नोय पिनिकलाकि ,
उडु क्कवे  उडैयुमिनरि  उन्नुम चोरूम वेल्लामामे ।

भावार्थ :--

 दुःख और दरिद्र  लोगों को उनकी आवश्यकता के अनुसार

    देने में ही भलाई है ।वैसे दाता को कभी कोई कमी नहीं होगी ।
    वैसे देनेवाले को जो रोकते हैं ,

    वे पागल बनकर ,पहन्ने वस्त्र हीन होकर  

       भूखा -प्यासा  रहेंगे ।खाने के लिए दाने दाने के लिए तरसेंगे ।

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25. सत्यमेव  जयते 

मेय्यतैच  चोलवाराकिल विलंगिडम मेलुम ननमै ,
वैयकमतनै  कोलवार ,मनितरिल देवरावार ,
पोय्यतैच  चोलवाराकिल भोजनम अर्पमाकुम 

नोय्यारिसियाका तेनरु  नोक्कीडार अरिवुल्लारे ।।

 भावार्थ :-
जो सच बोलते हैं ,उनको  भलाई होगी ।

संसार उनके वश में होगा। वे ईश्वरीय गुणी होंगे ।

झूठ बोलनेवालों को भोजन तक न मिलेगा ।
चूर्णित चावल उबलने पर कीचड़ सा होगा ।
वैसे ही मिथ्या बोलनेवालो में बड़प्पन नहीं  रहेगा ।
कोई भी उनपर ध्यान नहीं देंगे । 

अज्ञानियों  का आदर और प्यार नहीं मिलेंगे ।

26. अनुशासन का महत्व 

पोल्लरुक्कुक कलवी वरिल गर्वम उंडाम ,

अतनोड़ू  पोरुलुम  चेर्नताल ,चोल्लातुनच  चोल्लवैक्कम ।

चोरचेनराल  कुडि केडुक्कत तुनिवर कंडाय ,
नल्लोरक्कुम  मूनरु गुणम  उंडाकिल अरुलतिक ज्ञानम उंडाम ,
एल्लोरुक्कम उपकाररायिरुंतु परगतियाई एयतवारे ।।

 भावार्थ :--
      जिनमें बुरे गुण होते हैं ,ज्ञान मिलें तो गर्व होगा।
      ज्ञान के साथ सम्पत्ति भी बढ़ेगा तो यथार्थता को बड़ा  चढ़ाकर
    अपशब्द भी कहेंगे । अपनी शब्द शक्ति से  ग़लत  चर्चा करके
    दूसरों के जीवन को गुडगोबर कर देंगे ।
  अच्छे लोगों को ज्ञान ,दौलत ,वाकपटुता   आदि शक्तियाँ मिलेंगी                तो  जन कल्याण में तीनों शक्तियों को प्रयोग करके मोक्ष प्राप्त करेंगे ।

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27.  भूलोक का स्वर्ग
  नरगनमदैया  वेनतै नयन्तु  सेवित्तल ओनरु ,

पोर्पुदैय मकालिरोडु पोरुनतिये  वालतलोनरु ,

परपलरोडु  नन्नूल पकरंतु वासित्तलोनरु
चोरपेरुम इवैकल मूनरुम इम्मैयिर सोरगम ताने ।
भावार्थ :-

   इस भूलोक के स्वर्ग हैं तीन ।
एक धर्म प्रिया राजा के देश में सेवा करके जीना ,

दूसरा पतिव्रता नारी के साथ
गहरे मन से  प्यार करके जीना ,

तीसरा है   अपने ही विचारवाले चिंतकों के साथ
आध्यात्मिक  ज्ञान प्राप्त करना आदि 

तीनों भूलोक के स्वर्ग हैं ।

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28. भूलोक के नरक :--

  अरंकेडुम  नितियुम कुनरुम  आवियुम मायुम  कालम ,
  निरंकेदुम   मतियुम  पोक नींडतोर  नरकिर सेर्कुंकुम
  अरंगेडु मरैयोर मन्नान  वणिकर नल्लुळवोर  एन्रुम कुलंकेडुम् वेसैर मातर 

   वेसाई  मातर  गुणंकलै विरुंबिनोरर्क्के।।

भावार्थ :---

शिक्षित ,शासक,, व्यापारी , किसान जो भी हो , पराई औरत  को पसंद करने पर  पुण्य   चला जाएगा । बुद्धि  भ्रष्ट होगी।

 अल्प आयु में  चल बसेंगे।

अतः पराई स्त्री  के मोह में  मत पडो।

 

 

२९  किसको 

 29: सुख -दुःख  ?

  निट्टैयिलेयिरूंतु  मंत तुरै वdaint पेरियोरुक्कनि मलरत टालैक ,

kittaiyile तोडुत्तु  मूतती perumalavum पेरिय सुकँगकिडैक्कुनगाम ,
वेट्टैयिले matimayanguम सिरुवृक्कु मनम  पेसी विरुंबित ताली
कट्टैयिले तोडुत्तु  नडुक  कट्टैयिले किडत्तु  मट्टूँग कवलै ताने।
भावार्थ :--
भगवान के चरण कमलों में  ही ध्यान और निष्ठा में जो  ज्ञानी  ध्यान मग्न हैं ,
मन अनासक्त है ,उनको दैविक सुखानंद मिलेगा ।
उनके विपरीत कामाग्नि में बुद्धि भ्रष्ट होकर ,
गृहस्थ में लगने वाले लौकिक इच्छा में लगनेवालों को
जिस दिन मंगल सूत्र बांधा  उस दिन से अंत तक
श्मशान पहुँचने तक दुःखी ही रहेगा ।

 

 

 

30: टाँय पकाई  पिरार नट पाकिल तंतै  कड़न कारनाकिल , वाय पकै मनैवि
यारुम मायलकू  उतरपोतू , पेय पकै पिल्लै तानुम पेरुमै  कल्ला वित्ताल ,
सेयपकै योरुवर्क काकुम एनरनर टेलिंट नूलोर ।
भावार्थ :--

   अन्यों  की मित्रता प्यार मिलने पर भी ,
    माता शत्रु ,पिता ऋणी होने पर  दुश्मनी ही बढ़ेगी ।
  अति सुंदर पत्नी होने पर ,अशिक्षित होने पर 

  पुत्र भी शत्रु बन जाएगा ।

  ३१।   ताय पकै ,अनबु  अटरालेल  ततै पकै कदलालियानाल
        पेयपकै मनैवि नल्ल मतियिनै इलंठालाक़िल ,
      वाय पकै अरिवु उंडाक्कम मरनूलैक करकावित्ttaaल
        चेय पकाई सिरुमैक्काकुंच चेंनेरी   ओलुकावित्ताल ।

 

  भावार्थ :-
जिसमें प्रेम नहीं है ,उसको माता शत्रु बन जाएगी ।
क़र्ज़दार बनेगा तो पिताजी शत्रु बन जाएँगे ।
पागल होने पर पत्नी पिशाच सा दुश्मन बन जाएगी ।
ज्ञानप्रद ग्रंथों को न पढ़ने पर  उसका मुंह ही दुश्मन बन जाएगा अर्थात्
उसकी बोली ही शत्रु बनेगी । दुर्मति व बदव्यवहारवाले को
उसका अपना  बेटा शत्रु बन जाएगा ।

 

31: अपनी स्थिति बिगड़ने पर

निलै तलरंतिट्ट पोतु  नीनिलत्तू  उरवुमिल्लै ,चलमिनकंरपोतु  तामरैक्कु  अरुक्कन कूटरम ।
पल वनम एरियुमपोतु  पटरु तीक्कु उरवाम काटरु , मेलिवतु विलक्के याक़िल 

मारिए वाकुम कूटरम।

भावार्थ :-- अपनी वर्तमान स्थिति  की ऊँची  स्थिति अपनी अनुशासन   

हीनता के कारण या आर्थिक  पतन होने पर भूमि पर कोई  नाता रिश्ता नहीं रहेंगे । कमल पुष्प पानी में रहने पर सूर्य बाप हैं ,

पानी से बाहर आने पर कमल के लिए सूर्य यम बन जाता है ।

 वन जलाने के आग  दिया बुझाकर  दिया का विरोधी बन जाता है।

 अतः हमें पक्ष विपक्ष का ध्यान रखकर बर्ताव करना चाहिए।

 

 32: अनश्वर भूलोक सुख।

       कोंडु विण पर गरुड़ वाय्क कोडुवरी नाग,

       विंड नागत्तिन वायिनिल वेरुंडवनतेरै 

      मंडु तेरैयिन वायिनिल अकप्पडुम तुंबी,वंडु 

      तेन नुकर इन्बमे मानिडर इन्बम्।।

भावार्थ:--

एक गरुड़ अपने मुंह में नाग दबाकर उड़ा।

नाग के मुंह में मेंढक,मेंढक के मुंह में ध्यान -पतंग.

व्याध पतंग अपने मुंह में गिरे शहद की बूंद के स्वाद का आनंद ले रहा था।

 ऐसा ही है मानव -का सांसारिक सुखानुभूति।

 हमें अस्थाई लौकिक सुख तजकर स्थाई ईश्वरीय सुख प्राप्त करने में ध्यान देना चाहिए।

 

 

33: अल्प इच्छाओं से जीवन का नाश ।
करियोरू  तिंगलारू  कानवन मून्रु नालुम ,
इरुतलैप्पुट्रिल  नागम इनरु काणुम  इरै ईतेनरु ,
विरितलै वेडन कैयिल विर्कुतै  नरमबैक क़व्वि ,नरियनार पट्ट पाडु  नालै नाम पडवे पोराम ।।
    शिकारी  ने हाथी का शिकार किया ,शिकारी को साँप  ने  डसा। शिकारी मर गया ।
वहाँ सियार आया तो सोचा ,यह हाथी तीन महीने के लिए भूख मिटाएगा ।यह साँप एक दिन का आहार बनेगा ।
फिर सोचा ,पहले इस धनुष का नस खाऊँगा ।यों सोचकर काटा तो धनुष का तीर सियार पर लगा ।सियार मर गया ।
ऐसे ही हम  लालच में पड़ेंगे तो हमारी स्थिति भी सियार की स्थिति ही बेहाल हो जाएगी ।

 

34: कौन ? कौन ?कौन ?
    करुतिय नूल कल्लातवन मूड़नाकुम ।कणक्करिंतु पेसातान कसडनाकुम ।
ओरु तोलिलुम इल्लातान मुकड़ियाकुम ,ओनरुक्कुम उतावातान सोमबनाकुम ।
पेरियोरकल मुन्निनरु  मरत्तैपप पोलुम पेसामल इरुप्पवने  पेयनाकुम ,
परिवु नलुविनन पसप्पनाकुम ।पसिप्पवरुक्कित्तु उणणान  पावियामे ।

   भावार्थ :---  बड़े बड़े विद्वानों के कहे श्रेष्ठ ग्रंथों को जिसने नहीं पढ़ा ,वह मूर्ख है ।
                    वही अपराधी है  जो नहीं जानता कि  किससे ,कहाँ ,और  कैसे बोलना है ।
                      बेकार काल बिताने वाले ज्येष्ठा देवी का प्यारा बन जाएगा।
                    जो किसी को भी प्रयोजन नहीं  है ,वह  आलसी है ।
                          जो बड़ों को नमस्कार करके आशीषें प्राप्त नहीं करता ,वह भूत -पिशाच बन जाएगा।।
            काम न करके बहाना बनानेवाला झूठा है ।

      भूखे को न खिलाकर खुद खानेवाला पापी है ।

 

35.अवैध इच्छा।

   चंबुवे एन्न बुद्धि जलंतनिल मीनै नंबि,

    वंबुरु वडत्तैप पोट्टु,

वानत्तैप् पार्प्पतु एनो?

अंपुवि माथे केळाय,

अरसनै अंकल विट्टु,

वंबनैक् कैपिडित्त वारुपोल आयिट्रन्रे।

 

भावार्थ :--

 सुंदर स्त्री सुनो,

तुम अपने स्थिर रक्षक पति को तजकर 

एक क्रूर अस्थिर  राजा के साथ जाना,

 ऐसा ही है

  बेवकूफ सियार

  जिसने" जल में रहनेवाली 

मछली के लिए 

मुख में जो सूखी मछली है उसे छोड़

 आकाश की ओर देख रहा है।

जो कुछ है, उसी से संतोष से रहना सीखना है।

नहीं लोभ के कारण पछताना पड़ेगा।"

+++++++++++++++++++(८

या
एक औरत ने  एक स्त्री से पूछा –
सियार ! तुम्हारी  बुद्धि कबुद्धि है। पानी में तैरनेवाली मछली देखकर

  अपने मुंह  में जो  मछली थी ,उसे तजकर आकाश की ओर देख रहे हो !
  सियार ने कहा –सुंदर स्त्री सुनो ,तुम अपने पति  या प्रेमी को तजकर
एक बदमाश के साथ चली । वैसा ही है न मेरी दशा ।
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३६।नश्वर
मूप्पिल्लाक कुमरी वाऴ्क्कै ,
मुनिविला अरसन वीरम ,

काप्पिला विलैंत  भूमि ,
करैयिलातिरुंत एरि ,
कोप्पिलान कोंड कोलम ,
गुरूविला कोंड ज्ञानम ,
आप्पिलाच  चकडु  पोल
अलियुम एनरु उरैक्कलामे ।

भावार्थ :--
      बड़ों के बग़ैर जीनेवाली कन्या  की ज़िंदगी ,
      क्रोध रहित राजा की वीरता ,
      बड़ा रहित असुरक्षित खेत ,
      ऊँचे तट रहित झील ,
    अनुशासन हीन सुंदरता ,
    गुरु कृपा रहित प्राप्त ज्ञान ,
आदि   अक्ष  रहित गाड़ी चक्र समान  चलेगा नहीं ।
चलने पर भी थोड़ी दूरी पर गिर जाएगी ही ।
स्थायी नहीं रहेंगे ।
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37:नरक पहुँचेंगे ।
  तंतै  युरै तट्टिनवन  तायुरै इकलनतोन ,अंत मरु  देसिकर तम  आनैयै मरंतोन ,

  छंद मुरु वेद नेरी मारिनवर नाल्वर ,चेंतललिन  वायिनिडै सेर्वतु मेय कंडीर ।

 

    पिताजी की बात न मान्नेवाला ,

माताजी की बातों को अपमानित कर पालन न करनेवाला ,

 अमर सद्ज्ञान के गुरु उपदेश को भूलनेवाला ,

वेद धर्म के नियमों का आचरण न करनेवाला
ये चार  नरक के द्वार पर पहुँचना सत्य की बात है।

 

 

 

38:  तटस्थता  छूटने  पर :--
    नारिकळ वळक्क तायिन  नडुवरिंतु  उरैप्पार शुद्धर,
  एरिपोल  पेरुकी मणमेल  इरुकनुम विळंगी वाळ्वार ,
  ओरमे सोलवाराकिल ओंगिय किळैयुम  मांडु ,
तीरवे  कणक़ल  रेंडुम तेरियातु पोवार तामे ।

 

   गरीब स्त्री होने पर भी  न्याय देने में तटस्थता ‌रखकर 

निष्पक्ष न्याय देगी, तो‌ जल कुंड के समान सभी लोगों की प्रशंसा का पात्र बनेगी। 

 तटस्थता  से फिसलकर फैसला एक पक्ष पर  देनेवाली को उसके रिश्तेदार भी निंदा करेंगे। दोनों आंखें ‌अंधी हो जाएँगी।

 

39: कर्तव्य चूक।

मंडलत्तोरकळ चेय्त पालम मन्नवरैच चारुम।

तिंडिनल मन्नर चेय्त तींगु मंत्रियैच चारुम।

तोंडर्कळ चेय्त दोषम तोडर्न्तु तम गुरुवैच चारुम।

कंडोम मोऴियाऴ चेय्त कन्ममुम कणवर्क्कामे।

  नागरिकों के पापों का प्रभाव 

     नरेश पर पड़ेगा।

(नरेश अधर्म नागरिकों पर ध्यान न देने के कारण)

नरेश के पापों का प्रभाव सामंत पर पड़ेगा।

(सामंत ने राजा को उचित मार्ग न दिखाने है)

शिष्यों के  पापों का फल गुरु पर पड़ेगा।

(धर्म के असर पर जोर न देने से)

पत्नी के पापों का फल पति पर पड़ेगा।

(पति  पत्नी का देखरेख  सही तरह न करने से)

 धर्म  का पालन  न करना और कर्तव्य का न निभाना पूरे समाज को दुखप्रद बन जाएगा।

+++++++++++++++++++++++++++

 

40: अनुशासन के चूकने पर

धट्पिडैक कुय्यम वैत्तार,

फिरनी मनै नलत्तैच् घेरदार।

कर्पुडैक कामत्तीयार 

कन्नियै विलक्किनोरुम् 

अट्टुडन अंजुकिन्रोर 

आयुळुम कोंडु निन्रु ,

कुट्ट नोय नरकिल वीऴ्न्तु

कुळिप्पवर  इवर्कळ कंडाय ।।

   मित्रता पर ठगनेवाले,

    अन्यों की पत्नी के चाहक,

 पतिव्रता पत्नी को दूर रखनेवाले,

अतिथि सत्कार न करनेवाले,

रण क्षेत्र में भयभीत भागने वाले  कायर ,

 आदि  कुष्ठ रोग से पीड़ित होकर 

 इस जग में लंबे समय तक  दुखी रहेंगे।

 

41:  लोभियों का दुख।

 पोरुट पालै विरुंबुपवार्कळ 

कामफ्पालिडै मूऴ्किप् पुरळवर्।

कीर्ति ,अरुट्पालाम् 

अरप्पालै कनविलुमे विरुंबारकळ अरिवोन्रिल्लार ,

गुरुपालार कडउळार पाल वेदियर पाल 

पुलवर् पारकोडुक्क ओरार्,

चेरुप्पाले अडिप्पवर्क्कु  विरुप्पाले  कोडि चेम्पोन सेवित्तीवार्।

 

भावार्थ:-

 कुछ लोग अर्थ चाहक।

 कामाग्नि बुझाने  में खर्चकर  मग्न रहेंगे।

यश‌प्रद और पुण्यप्रद धर्म कर्म में

स्वप्न में भी न लगते।।

ये लोग अज्ञानी होने से

 गुरु, भगवान, ब्राह्मण,गरीब कवि 

आदि को दान दक्षिणा न देंगे।

जूतों से मारकर डराने धमकानेवाले 

उचक्कों को देंगे।

बदमाशों के आज्ञाकारी बनेंगे।

++++++++++++++++++(

42: अहंकार तजो ।
परुप्पतंगल पोल निरैंतिडु  नवमणिप  पलनकलैक  कोडुत्तालुम  ,
विरुप्पु नींगिय कणवरैत  तऴुवुतल  वीणताम विरैयार्न्त
कुरुक्कु चंदनक कुळम्बिनै अन्बोडु  कुलिर तर अणिंतालुम ,
चेरुक्कु मिंजिय अरपर तम   तोळलमै 

सेप्पवुम आकाते ।

   पहाड बराबर संपत्तियों के साथ

    नवरत्न देकर  विवाह करने पर भी ,

    नापसंद पति के साथ गृहस्थ व्यर्थ है।

 पहाड -सा ढेर संपत्तियों के साथ सुगंधित इत्र द्रव्य शरीर पर लगाने पर भी गर्व से भरा कुबुद्धिवालों की मित्रता निम्न वर्ग का होगा।

वह दोस्ती अनुपयोगी है।

 

43:  विश्लेषण करके काम करो:---

      चोल्लुवार वार्त्तै केट्टुत तोऴमै इकऴवार पुल्लर ,

वल्लवर विचारी यामर् चेयवारो धरि चोर्केट्टु

वल्लियम पशुवुम कूडि मांडतोर कतैयैप्पोलप,

पुल्लियर ओरुवराले पोकुमे मालुम नासम्।।

भावार्थ :--

 अज्ञानी,दूसरों की बातें सुनकर दीर्घ काल की दोस्ती  छोड़ देंगे।

जो ज्ञानी है, वे बिना  सोच समझकर विश्लेषण करके कोई काम न करेंगे।

सियार की बातों में आकर गाय ने बूढ़े सिंह का आहार बना।ऐसे ही अल्प बुद्धिवाले की बातें सुनने पर नाश ही होगा।

 

44: बेवकूफ़ ही बेवकूफ़ की तारीफ करेंगे।

 कऴुतै कावेनक कंडु निन्राडिय अलकै,

 तोऴुतु मींडुमक् कऴुतैयैत्तुतित्तिड,

पऴुतिला नभक्कु आर निकराम एनप्पकर्तल 

मुऴुतु मूढरै मूढर कोंडाडिय मुरैपोल।।

 भावार्थ :--

  एक कौए ने ढेंच-ढेंच किया तो एक भूत ने उसकी प्रशंसा की।तुरंत गधे ने ज़ोर ज़ोर से ढेंच ढेंच करने लगा।मूर्ख ही मूर्ख की प्रशंसा करेंगे। 

 

45:  भोजन खिलाकर खाओ ।

 

मण्णार चट्टी करत्तेंदि

मरनाय कव्वुम कालिनराय

अण्णार्न्तेंगी  इरुप्पिरै अरिंतोम।

अरिंतोम अम्मम्मा

पण्णार मोऴियार 

पालटिसिल पैम पोरकलत्तिल

परिन्तूट्ट ,

उण्णा निश्रा पोतु

ओरुवर्क्कु उतना मांतर इवर थामे।।

भावार्थ :---

  मिट्टी के बर्तन हाथ में भीख मांगने ,

     कुत्ते उसको भगाते हुए पीछे,

     भोजन के लिए तड़पते हुए,

     इधर -उधर भटकते देखकर पता चला –

यह वही आदमी है,

जो सोने के प्याले में 

दुग्धान्नमजे से खाना खाते हुए

 कंजूसी का जीवन बिता रहा था ,

भूखों को भगा रहा था,

 न दान -धर्म करता था।।

+++++++++++++++++--

46: स्वार्थी निर्दयी

वल्लियम तन्नैक कंडंचि,

मरंतनिल एरुम वेडन

कोल्लिय पसियैत्तीर्त्तु 

रक्षित्त कुरंगै कोन्रान।।

नल्लवनरनुक्कुच् छेत्र 

नलमतु मिक्कताकुम्

पुल्लरकल तमक्कुच्

चेय्ताल नलमतु मिक्कताकुम्

पुल्लरकल् तमक्कुच् चेय्ताल 

उयिरतनैप पोक्कुवारे।

 

भावार्थ =:--

  एक शिकारी एक बाघ से बचने के लिए पेड़ पर चढा। 

 पेड़ पर जो बंदर था,उसने उसकी रक्षा की;

 अतिथि सत्कार भी किया।

 बाघ तो पेड के नीचे से हटनेवाला नहीं था।

बहुत समय हुआ तो स्वार्थी मनुष्य ने उसे नीचे धकेल दिया।।

अच्छों की भलाई करने से भला होगा।

बुरों की भलाई करने पर भी बुरा ही होगा।

बुरों की मदद करने पर अवसर पाकर निर्दयी बनकर हत्या करने के लिए भी न हिचकेंगे।।

++++++++++++++++++

 

47: अधर्मी  कौन ?

तन्नैत तान पुकऴवोरुम

तन कुलमे पेरितेनवे तान चोलवोरुम्

पोन्नैत्तान तेडियरम् पुरियामल अवैध कात्तुप 

पोन्रिनोरुम् , मिन्नैप्पोल  मनैयाळै 

वीट्टिल वैत्तु वेसै सुखम्

विरुंबुवोरुम् 

अन्नै पिता पावलरैप् पकैप्पोरुम,

अरमिल्लाक्कसडरामे।।

 

भावार्थ :--

आत्म प्रशंसा करनेवाले,

अपने ही कुल का यशोगान करनेवाले,

स्वर्ण की खोज में धन जमा करके

 दान धर्म न करनेवाले अधर्मी,

अति सुंदर पत्नी के रहते,

वेश्यागमन करनेवाले,

माता,पिता और ज्ञानियों को शत्रु माननेवाले,

अधर्मी निम्न कुलवाले होते हैं

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48: अज्ञानी के कर्म।

  कुरंगु निन्रु कूत्ताडिय कोलत्तैक अंडे

अरंगम्मुनपु नाय पाडी कोंडाडुवतुपोल,

करंगळ नीट्टिये पेसिय  कसडरैक कंडु,

सिरंगळ आट्टिये मेच्चिडुम  अरिविलार चेय्कै।

 भावार्थ —-

  बंदरों के नाच देखकर 

 कुत्तों के भौंककर आनंद मनाने के समान है,

ठगों के अभिनय भाषण सुनकर ,

उनके अंगों के हिलते डुलते देखकर

जो प्रशंसक बनते हैं,उनका व्यवहार विवेकहीनता का सूचक है।

 

49: संकट काल में  मदद न करनेवाले।

  तन्नुडन पिरवात्तंबि ,

  तन्नैप्पेरात् तातार -तंतै,

अन्नियरिडत्तुच चेल्वम्,

अरुण पोरुळ वेसि यासै,

मन्निय एट्टिन कलवि ,

मरु मनैयाट्टि वाऴ्क्कै,

इन्नवाम करुमम आरुम् 

इडुक्कत्तुक्कु उतवातन्रै।

 

भावार्थ :--

 सहोदर रहित सहोदर सा साथ बर्ताव करनेवाला,

माता -पिता के समान रहनेवाले माता-पिता,

परायों का धन, वेश्याओं का प्यार,

 कंठस्थ रहित शिक्षा,

अन्यों की पत्नी के  साथ जीना

 आदि  संकटकाल में काम न आएँगे।

+++++++++++++++++

 

50: खतरनाक सावधान।

अरविनै आट्टुवारुम,

अरुंकळिरु  ओट्टुवारुम्

इरविनिल तनिप्पोवारुम्

एरि नीर नींदुवारुम्,

विरै चेरि कुऴलि यान

वेसियै विरुंबुवारुम्

अरसिनै पकैत्तिट्टारुम्

आरुयिर इऴप्पर तामे।।

भावार्थ:---

साँप पकड़कर जीनेवाले,

साथी का महावत,

रात में अकेला यात्रा करनेवाले,

खतरे को न पहचानकर झील में तैरनेवाले,

रंडियों के चाहक, 

राजा को शत्रु बनानेवाले,

 अपने प्राण को बेठेंगे।।

 ये सब खतरों का सामना करनेवाले हैं।

पर उनको खतरा भी खतरा है।

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51:  अपरिवर्तित बातें

 

तुंबिनिल पुतैत्त कल्लुम,

तुकलिन्रि चुडर विडातु।

पांबुक्कु पाल वार्त्तेन्रुम

पऴकिनुम नन्मै तारा,

वेंबुक्कु पाल वार्त्तालुम,

वेप्पिलै कसप्पुमारा।

ताम पल नूल कट्रालुम्–

दुर्जनर नल्लोर आकार।।

 

भावार्थ —

  कीचड में गढ़े हुए रत्न, अपनी उज्ज्वलता न तजेगा।

साँप को दूध पिलाकर प्यार से पालने पर भी विष ही उगलेगा।उससे कोई प्रयोजन नहीं।

नीम के पेड़ उगने शहद सींचने पर भी

उसके पत्ते कडुए ही रहेंगे।

वैसे ही दुर्जन कई ग्रंथ सीखने पर भी अपने दुर्गुण न‌छोडेंगे।भला आदमी न बनेंगे।

+++++++++++++++++++((+

 

 

 

52: अविश्वसनीय बातें।

 कल्लात मांदरैयुम,

कडुंकोप दुरैकळैयुम्

कालंतेर्न्दु, चोल्लात अमैच्चरैयुम्,

तुयरुक्कुतवात देवरैयुम्,

अरुचि नूलिल ,वल्लावंदणर तमैयुम्

कोंडवनोडु  यन्नाळुम् वलतु पेसि ,

नल्लार पोल अरुकिलिरुक्कुम् मनैवियैयुम

ओरुनाळुम् नंबोणाते।।

 

भावार्थ:---

अशिक्षित स्त्री, गुस्सैल राजा,

समय पर सलाह न देनेवाले सामंत,

दुख दूर  न करनेवाले ईश्वर,

वेदाध्ययन न करनेवाले ब्राह्मण,

झगड़ालू  कपट वेषधारी पत्नी आदि विश्वसनीय नहीं हैं।

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53: सामना करो ।

        मैयतु वल्लियम वाल मलैक कुहै तनिरपु कुंदे ,ऐयमुम पुलिक्कुक  काट्टि अडवियिल तुरततुंग  कालै ,

        पैयवे  नारिक्कोले -पडुपोरुल उनरप्पट्ट।वेय्य अम मिरकम तानकोन्रिड वीऴ्ततन्रे ।।

 

भावार्थ :--

रंग भरे बड़े बर्तन में गिरे बकरी  अपने  रंग बदलने से सोचा कि उसको अति बल आ गया। वह बाघ की गुफ़ा में घुसा तो बाघ डरकर भागने लगा। तब सामने आये सियार ने बाघ से कहा  कि साहसी बनो।

उसका सामना करो। बाघ मुडा। बकरी को अपना आहार बना दिया।

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54: मित्रता की खोज।

अरुमैयुम पेरु मैं तानुम

अरिंतुडन पडुओर तम्माल,

इरुमैयुम ओरूमै ताकि इन्पुरर्

केतुवुंडाम्  परिविला शकुनि पोलप्

पण्पु केट्टवर्कळ तम्माल

ओरुमैयिल निरय मेय्तुम 

एतुवे उयरुम मन्ना ।।

 

भावार्थ :---

 किसी एक के अपूर्व  गुणों को पहचानकर मित्र बनाने पर  मित्रों के शरीर  दो है,पर उनके मन एक है।

मन एक है तो  मित्रों के आनंद में कमी नहीं है।

निर्दयी शकुनि जैसे दुर्गुणियों की दोस्ती  नरक वेदना के कारण बनेगी।

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55. 

 तांगोणा वरुमै वंताल 

सबै तनिल चेल्ल नाणुम।

वेंगै पोल वीरम् कुन्रुम् ।

विरुंदिनर काण नाणुम।

पूंगोडि मनैयाट्कु अंजुम।

पुल्लरुक्कु इणंगच्चेय्युम,

ओंगिय अरिवु कुन्रि उलकेलाम

पऴिक्कुम् ताने।

भावार्थ :--

   असहनीय गरीबी आने पर भरी सभा में जाने में 

   संकोच होगा।

बाघ जैसी वीरता भी कम होगी।

मेहमानों से मिलने शर्म होगा।

 प्रिय पत्नी से भी मिलने में डर लगेगा। मिथ्या गवाह कहने को भी मन तैयार होगा।

बुद्धि भ्रष्ट हो जाएगी।

समाज भी निंदा करेगा।

+++++++++++++++++++++(

 

56: कर्म परिवर्तन

 वाऴवतु वंद पोतु मनम् तनिल मकिऴ वेंडाम।

ताऴवतु वंदतानाल तळरवरो तक्कोर मिक्क

ऊळविनै वंदतानाल ओरुवराल विलक्कप्पोमो,

एऴैयाय इरुंदोर पल्लक्कु एरुतल कंडिलीरो।।

भावार्थ —

 भाग्यवश जब जीवन में समृद्धि आती है, तब अति खुशी से इठलाना नहीं,

जो विवेकी होते हैं,वे जीवन के पतन में भी साहसी बनेंगे।

विधि की विडंबना को कोई भी बदल नहीं सकते।

अति दरिद्र व्यक्ति को भी  राजसिंहासन प्राप्त होता है।

यह हम देखते हैं।

 

 

57:  अहंकार का रोग

 पेरुत्तिडु सेल्वमाम् पिणिवंदुट्रिडिल

उरुत्तेरियामले ओळि मऴुंगिडुम्।

मरुत्तुवतोवेनिल वाकडत्तिल इल्लै

दरिद्रता एन्नुमोर मरुंदिल तीरुमे।

 

भावार्थ :--

  अति संपत्ति के कारण अहंकार का रोग ,

 इस रोग से पीड़ित व्यक्ति  दुनियादारी भूल जाते हैं।,

  उनकी बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है।

इस रोग का कोई इलाज नहीं होता।

निर्धनी होना ही इसकी दवा है। 

++++++++++++++++++++++

 

58. जहाँ रहते हैं,वहीं सुख है।

 यानैयैच जलंदनिल इऴुत्त अक्रा,

पूनैयैक करैतनिल पिडिक्कप्पोकुमो।

तानैयुम तलैवरुम तरह विट्टु एकिनाल

सेनैयुम सेल्वमुम तिरंगु वारकळे।।

भावार्थ:---

    मगर पानी में रहते समय बड़े हाथी को भी जल में खींचने का महाबली है। महाबली मगर को  किनारे पर  आने पर  दुर्बल हो जाता है। उससे एक बिल्ली को खींचना भी मुश्किल हो जाता है।

 वैसे ही सेनापति और सेना अपने देश से बाहर निकलने पर 

धनाभाव के कारण दुर्बल हो जाएँगे।

+++++++++++++++±+++++++++++++++++

 

59. सावधान की बातें।

    विल्लतु वळैंततेन्रुम्

वेऴम तुरंगिट्रेंरुम्

वल्लियम तूंगिटरेन्रुम

वळर कड़ा पिंदिट्रेन्रुम्

पुल्लर तम चोल्लुक्कंजिप

पोरुत्तनर पेरियोर एन्रुम्

नल्लतेन निर्क वेंडाम

नंजेनक करुतलामे।

भवार्थ —--

 धनुष टेढ़ा है, 

 साथी और बाघ हो रहे हैं,

पालतु भेड़ पीछे जाते हैं

बबरों के कटु शब्द सुनकर ,बड़े उप रहते हैं

 इन सब को देखकर ऐसा मत सोचिए कि 

इन से कोई खतरा नहीं है।

सावधान से रहिए कि इनसे बुराई ही होगी।

अतः इनसे सावधान रहना चाहिए।

60. ज्ञानियों की मित्रता

जलंतनिर किडक्कुम् आमै

जलत्तै विट्टकन्रपोतु

कोलै पुलिस वेडन कम्बु

कूरैयिल की कोंडु चेल्ल

वलुविनाल अवनै वेल्ल

वकेयोन।तुम इल्लै एन्रे

करै एलि काकम छेत्र  कतै एन विळंबुओमे।।

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भावार्थ —-- पौंछ तंत्र की कथा पर आधारित।

 

 

 पानी में जो कछुआ था,वह किनारे पर आया तो

 एक शिकारी उसे जाल में फँसाकर ले गया।

कछुए के दोस्त थे एक हिरन,एक चूहा और एक कौआ।

तीनों ने सोचा कि एक बलवान शिकारी से  कछुए को बचाना मुश्किल।।

तीनों ने चालाकी से कछुए को बचाया।

वे दोस्ती निभाने में चतुर निकले।

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61. भला बुरा किससे ?

    निलमतिल  गुणवान तोनरिन  नील  कुटित्तनरुम  वालवार ,
  तालमेलाम वासम तोनरुम  चंदन मरत्तिरकु ओप्पाम ।
  नलमिलाक  कयवन  तोनरिल  कुडित्तनम देशम पालाम ,
  कुलमेलाम
  भावार्थ :----
  एक परिवार में सुपुत्र के जन्म होने पर उसके  अपने  परिवार ,कुल ,देश सब की भलाई  होगी ।
वह तो सुगंधित चंदन के पेड़ समान होगा ।
कुपुत्र के  जन्म होने पर उसके कुल ,देश  और परिवार का नाश होगा ।
वह  तो अपने तरु वर्ग को काटने वाले कुल्हाड़ी के हाथ पकड़ लकड़ी समान ही है। 

 

 

 

62. ब्राह्मण अधर्मी होने पर
इन्दिरन पतंगल कुंरुम  इरैयवर पतंगल मारुम ,
मंतिर निलैकल पेरुम  मरकयल वरुमै याकुम
चंदिरन कतिरोन  सायुम टरनियिर रेवु मालुम
अंदनर  करमम कुनरिल  यावरे वालवार मन्निल ।

 

भावार्थ :-
  ब्राह्मणों  की प्रार्थनाएँ ,यज्ञ हवन आदि  छोड़ देंगे तो इंद्र आदि देवों का अनुग्रह  काम हो जाएगा ।शासक अधर्मी हो जाएँगे ।

 मंत्र शक्ति  काम होगी ।देश में अकाल होगा ।चंद्र-सूर्य  के गुण बदल जाएँगे ।ऐसी स्थिति में पृथ्वी पर जीना दुशवार हो जाएगा ।

 

 

63. हानिकारक तत्व

गर्भत्ताल  मंगेयरुक्कु  अलकु कुन्रुम , 

केलवियिलला  अरसनाल उलकम पालाम ,
दुर्बुद्धि  मंत्रीयाल  उलकुक्कु ईनम ,
चोरकेलाप पुत्तिररकलाल कूलत्तिरक्कु ईनम ,
नरबुद्धि   करपिट्टाल अर्पर केलार ,

ननमैसेय्यत  तीमैयुडन नयन्तु चेयवार ,

अरपरोडु  इनंगिड़िल पेरुमै तालुम 

आरिय तवम कोपट्टाल अलिंतु  पोमे ।
भावार्थ ;--
  मातृत्व  से औरतों की ख़ूबसूरती  काम होगी ।
विद्वज्जनों की सलाह और मार्गदर्शन  का  पालन न करने पर 

शासक द्वारा देश की हानियाँ होंगी ,

बुरी और स्वार्थ मंत्री के कारण देश  का बरबाद होगा ।
बड़ों की बात न माननेवाले बच्चों के कारण  कुल  का नाम बदनाम होगा ।
निम्न बुद्धिवाले  सदुपदेश न सुनेंगे ।  उनको भलाई करने पर भी बराई  ही करेंगे । 

निमनों  से मिलने पर अच्छों के बड़प्पप्पन में कालिक लगेगा ।

ऊँचे तपोबल भी क्रोधी होने पर तपह  शक्ति मिट जाएगी ।
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64. धन के घमंड की अंधता
सेलवम वंतुट्र पोतु तेयवमुम चिरितुम पेणार।

चोलवतै अरिंदु चोल्लार।

चुट्रमुम तुणैयुम पेणार्।

वेल्वते करुमम् अल्लाल वेंमपकै वलितेन्रु एण्णार।

वलविनै विळैवुम पाराशर।

मण्णिन मेल वाळ्न्त मादर।।

 

 इस धरती पर अत्यधिक धनी,

भगवान की शक्ति का स्मरण नहीं करेंगे।

सुननेवालों की योग्यता पर सोचकर नहीं बोलेंगे।

नाते रिश्तों पर ध्यान  और अपनी पत्नी पर भी ध्यान न देंगे।  वै न सोचेंगे कि  अपने कर्म फल पर विजय नहीं पा सकते। कर्म फल के प्रभाव भी विचार न करेंगे।

  धन के अहंकार के कारण अंधे बन जाएँगे।

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65.मनुष्य जन्म दुर्लभ।

 भूतलत्तिन मानिडरायप् पिरप्पतु अरितु एन पुकऴवर।

पिरंतोर तामुम्  आदि मरै नूलिन मुरै अरुल कीर्तियाम।

तलंगळ अन्पाय्च चेन्रु  नीतिवऴुवात वकै वऴक्कुरैत्तु 

नल्लोरै नेसम कोंडु कातवळि पेर् इल्लार कऴुतै एनप्पारिल उळ्ळोर् करुतु्वारे ।।

 

भावार्थ —

ज्ञानियों का कहना है–

 इस भूलोक में

  मानव जन्म दुर्लभ !

वैसे दुर्लभ  मानव जन्म  मिलने पर 

वेदों का अध्ययन कर,

सीखें वेदों को जीवन में पालन करना चाहिए।

पुण्य तीर्थ स्थलों के दर्शन में यात्रा करनी चाहिए।

 गहरी भक्ति चाहिए।

 जहां भी जाते हैं,वहाँ नीति ग्रंथों के 

महत्व पर बल देना चाहिए।

अच्छों से प्यार करना चाहिए।

कम से कम दस मील की दूरी तक नाम पाना चाहिए।

 मानव जन्म अमर यश पाने के लिए।

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66.एक पक्षीय न्याय नाश के कारण।

 

आरम् पूंड अणिमार्बा।

अयोध्तिक् अरसे अण्णा केऴ्।

ईरम मिक्क मरमिरुक्क इलैकळ उतिर्द्ध वारेतु।

वारंगोण्डु वऴक्कुरैत्तु मणमेल निन्रु

वलि पेसि ,ओरम् चोन्न कुडियतु पोल्

उतिर्न्तु किडक्कुम तंबियरे।

 

भावार्थ –

बड़े भाई से छोटे भाई ने पूछा,

भाई, मालाओं से सुसज्जित सुंदर वक्षस्थल के अध्या के राजा,

हरे भरे पेड़ के पत्ते सूखकर झरनै का कारण क्या है?

राम ने कहा –

 पक्षपाती बनकर एक पक्षीय न्याय  सुनाते

 न्यायाधीश के जीवन के समान  पत्ते गिर पड़े हैं।

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67. पास जाना असंभव :----

  कर्पुडैय मांदर कोंगै,

कवरिमान मयिरिन कट्रै,

वेर्पुरु वेंगैयिन तोल,

वीरेन कै वेय्य कूरवेल् 

अर्परतम पोरुलकळ् तामुम,

अवर ग्रंथ पिन्ने ,

पर्पल कोळ्वार  इंतप्पारिनिल उण्मै तानै।।

भावार्थ :---

 पतिव्रता नारी के शरीर,

कस्तूरी हिरन के बाल,

वीर के हाथ की तेज शूल ,

कंजूसों की संपत्तियाँ ,
जब तक वे ज़िंदा रहते  हैं ,तब तक कोई  छू भी नहीं सकता ।
उन की मृत्यु के बाद ही दूसरे 

उनके  निकट जा सकते हैं ।

 

68. समझ नहीं सकते ।

   अत्तियिन  मलरूम  वेल्लै  याक्कै  कोल काक्कै  तानुम ,
  पित्तर तम  मनमुम नीरिल पिरंत  मीन  पादन्त्तानुम ,

 अत्तन  माल ब्रम  देवनाल विड़प्पट्टालुम 

चित्तिर विलियार  नेंजम तेलिंतवर इल्लै  कंडीर ।।

भावार्थ :---
अंजीर पेड़ के फूल ,
श्वेत कौवा ,
दीवानों का दिल ,आदि
देख -पहचान सकते हैं ।
पानी में रहनेवाली मछली के पाद ,
ब्रह्मा और विष्णु  के अनदेखे शिव के सिर और पैर कोई देख नहीं सकता
इन सबको देखने का सम्भव भी हो सकता है।पर नारी माँ के भाव समझना असम्भव है।
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69.  अनुपयोगी ;--
        तिरुप्पति  मितियाप्पादम
        शिवनडी वनंगाच चेंनि
        इरप्पारुक्कु ईयाक कणnneer
      इनिय चोल केलाक कातु ,
        पुरप्पावर तंगल कन्नीर पोलितरच साकात देहम
      इरुप्पिनिम पयनेन काट्टिल एरिप्पिनुम पयनिलताने ।।

   भावार्थ :--

    भगवान के तीर्थ स्थल - मंदिर आदि के दर्शन न करनेवाले ,

     उन दिव्य स्थल पर पैर न रखनेवाले चरण ,
    शिव के सामने नथमस्तक न करनेवाले सिर ,
    माँगनेवालों को न देनवाले कर ,
      बड़ों की बातें न सुननेवाले ,
    अपने रक्षकों को कोई संकट आने पर
    अपने प्राण देकर  रक्षित न करवाले शरीर ,
    ये  जीना और मरना  एक समान जान ।। 
    उनसे किसीको  कोई प्रयोजन नहीं है ।
 
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70.  संसार  का स्वभाव
  वीणर  पूंडालुम  तंगम  वेरुम पोय्याम मेरपूच्चेनबार ,
पूनुवार  तराप पूंडालुम पोरूनतिय तंगमेबार

काणवे  पनैक्कीलाय कुदिक्कुनुंग कल्ले एनबार ,
मानुलकत्तोर -पुल्लर वलंगूरै  मेय्यानबार ।।

भावार्थ ;--
  असली स्वर्ण को गरीब  पहनने  पर  नक़ली ही कहेगा  संसार ।
  अमीर पीतल पहन्ने पर भी असली सोना कहेगा संसार ।

  ताड़ के पेड़ के नीचे बैठकर दूध पीने पर भी ताड़ी ही कहेगा संसार ।
  बड़े लोग ,निम्न बातें ,कलह की बातें करने पर भी सच ही कहेगा संसार ।

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71. अनुशासन की विशेषता
आचारंज   सेयवाराकिल  अरिवोडु  पुकलुम उंडाम ।
आचारम ननमैयानाल अवनियिल देवरावार ,
आचारंज चेयवाराहिल अरिवोडु पुकळुम 

पेसामल पोर्  पेच्चुक्कुप पिनियोडु नरकिल  वाऴवर।।।

भावार्थ :---

 अच्छी चालचलन और अनुशासित जिंदगी हो तो

 अंग जग में ज्ञान के साथ कीर्ति भी होगी।

उनके चरित्र और अनुशासन  

जब दूसरों को कल्याण करेगा,

तब वह भगवान तुल्य प्रशंसा का पात्र बनेगा।

 चालचलन अच्छी नहीं है तो ज्ञान भी भ्रष्ट होगा,

 नाम भी बदनाम होगा।

 उसकी बोली महत्वहीन होगा।

रोगी बनकर अति पीड़ित होकर नरक पहुँचेगा।।

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72. काम की क्रूरता 

 

  काममे कुलत्तिनैयुम नलत्तिनैयुय केडुक्क वंद‌कलंकम्‌

 काम में दरिद्रंकल अनैत्तैयुम पुकट्टि वैक्कुंग कूडारम्।

काममे परगतिक्कुच्  चेल्लामल  वळि अडैक्कुंग कपाटम्

काममे‌ अनैवरैयुम पकैवराक्किक कऴुत्तरियुंग कत्ति तान

भावार्थ :--

 काम वासना अपने कुल मर्यादा और पारंपारिक गौरव के कल्याण कर्म को बिगाड़नेवाला  अपराधी है।

काम वासना ही गरीबी का खज़ाना।।

काम ही  प्रगति के मार्ग का कपाट है।

 काम ही दुश्मनों का जनक है।

वह सब के गला काटने‌ का खड्ग है।

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73. सद्गुण तेरह।

    तमिल कुयिल चेंगालन्नम् वंडु कण्णाडि पन्रि

   अयिलेयिट्ररिउ , तिंगळ,आतवन,आऴि कोक्कोडु

    उयरुम विण कमलम् पन्मून्रु गुणमुडैयोर् तम्मै ,

    इयलुरु पुवियोर पोट्रुम ईसनेनरेण्णलामे।

 

 

  मोर- सा सुंदर रूप, 

कोयल -सी मधुर स्वर,

 लाल पैरों के हंस पक्षी सम विवेक,

भ्रमर सा शहद मात्र  अर्थात अच्छाई मात्र ग्रहण करनेवाले गुण, 

दर्पण - सा (सच्चाई )यथार्थता(जैसा है वैसा,) दिखानेवाले गुण , 

सुअर-सा सम्मिलित परिवार के गुण।

 साँप-सा  शत्रुओं को भयभीत करनेवाले दाँत,

 चंद्र-सी शीतलता (शीतल दृष्टि ),

सूर्य सा ज्ञान,

 समुद्र -सा  विस्तृत गहरा ज्ञान,

बगुले के समान  एकाग्र ध्यान,

आकाश सा खुला विस्तृत मन,

कमल सा आसक्त अनासक्त जीवन 

ये तेरह गुण हो तो उनको ईश्वर कहते हैं।

संसार ऐसे ही लोगों को ईश्वर 

मानकर यशोगान करता है।

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          तमिल के नीति ग्रंथों  में विवेक चिंतामणि ज्ञानप्रदग्रंथ है।

            इसकी रचनाकारों के नामों का पता नहीं हैं ।।

यही  निर्णय लिया गया है  कि  कई कवियों द्वारा  लिखित पद्यों का संग्रह है।
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                    प्रार्थना 

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१    तमिल मूल :--अल्लल पोम वल्विनै  पोम अननै वयिट्रिल  पिरंत
                      तोल्लै पोम पोकात तुयरम पोम –नल्ल 

                       गुणमधिकामाम अरुनैक गोपुरत्तुल मेवुंग 

                        गणपतियैक  कै तोलुतक्काल ।।
अल्लल –दुःख;  पोम =दूर होगा ;।वलविनय -संचित कर्म ; अननै = माँ  वयित्ट्रिल =पेट में ;पिरंत  तोल्लै –जन्म लेने के कारण मिले प्राप्त कर्म ;पोकात तुयरम –न मिटनेवाले दुःख
अच्छे गुणवाले  अरुनैक कोपुरात्तुल –तिरुवन्नामलै  गोपुर में ; गणपतियैक =गणपति को 

कैतोलुतक्काल =हाथ जोड़कर प्रार्थना करने पर।

        अगजग में सुख-दुःख  भगवान की देन है । भारतीय काव्य सभी भाषाओं में ईश्वर्वंदना ,गुरुवंदना से ही श्री गणेश करने  की रूढ़ी  चल रही हैं । वैसे ही तमिल ग्रंथ विवेक चिंतामणि का श्रीगणेश   श्री गणेश  की वंदना  से है।
         

 तिरु अन्नामलै  में विराजित श्री गणपति जी  की प्रार्थना करने से दुःख दूर होगा ।

संचित कर्म फल का पाप दूर होगा ।

माँ के पेट में जन्म लेने के कारण प्राप्त कर्म फल दूर होगा ।
जो पाप मिटना असम्भव है वह भी दूर होगा ।
अच्छे भक्तवत्सल तिरुअन्नामलै  में विराजमान श्री गणेश जी को दोनों हाथ जोड़कर प्रार्थना करने से  हम पुण्य संचित करेंगे ।
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       २।अनुपयोगी
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२।   आपत्तुक्कु उतवा पिल्लै 

     अरुंपसिक्कु  उतवा अन्नम 

     दरिद्रम  अरियाप  पेंडिर ,

     तापत्तै तीरा तन्नीर ,

     कोपत्तै अड़क्का  वेन्दन ।
    गुरु मोऴि कोळ्ळाच्चीडन

    पापत्तैत्   तीरा  तीर्थ्थम ,

   पायनिल्लै एलुंताने ।


भावार्थ :--- पुत्र जो आपातकाल में मदद नहीं करता ।
                अन्न जो अधिक भूख के समय  काम नहीं आता।
                औरत जो दारिद्रिय न जानती ।

                 पानी जो प्यास न बुझाता ।
                राजा जो क्रोध न दबाता ।
                शिष्य जो गुरु की बात नहीं मानता
                तीर्थ जो पाप नहीं मिटाता ।

      ये सातों  के रहने पर भी 

कोई प्रयोजन नहीं हैं ।

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    ३।    प्यार और इज्जत ही श्रेष्ठ 

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३।ओप्पूड़न मुकमलर्न्तु उपसरित्तु  उन्मै पेसी उप्पिल्ला कूलिट्टालुम
    उण्पते  अमृतमाकुम।

    मुप्पलमोडु पालन्नम्
  मुकम  कडुत्तु  इडुवाराईन ,नप्पिय 

  पासियिनोडु  कडुम पसि याकुम ताने ।।


भावार्थ :--  प्रिय मन  से मुख खिलकर सत्कार 

        करके बिना नमक  के  दलिया खिलाने पर भी वह अमृत ही होगा ।
              चेहरे में कटुकता दिखाकर दुग्धान्ना खिलाने पर भी
  वह भूख कम नहीं करेगा ,वह विष बराबर ही होगा ।

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   कुल  न बदलेगा गुण न बदलेगा 

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४। कुक्कनैप पिडित्तु  नालिक कूँडिनिल  अडैत्तु  वैत्तु 

    मिक्कतोर  मंचल पूसी मिकु मणम तालूंतान ,
    अक्कुलम वेराताम्मो अतनिडम  पुणुकुंडामो
  कुक्कने कूक्कनल्लार कुलन्तनिल पेरिय तामो ।


भावार्थ:---

  कुत्ते को पकड़कर गंध बिलाव  के पिंजड़े में 
बंद कर   हल्दी  चूर्ण लगाकर सुगंधित करने पर 

   भी  कुत्ता कुत्ता ही है ,न उसका कुल बदलेगा    न उसका गुण ।।
  न उसका कुल बड़ा ,

 न सुगंधित द्रव  दे सकता।।।

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4.आलिलै  पूउँकायुम  इनितरूम पलमुम
उँडेल ,सालवे पक्षी येल्लाम तन कुड़ी 

एनरे वालुम ,वालीपर वंतु तेडि ,

वंतिरुप्पर कोड़ाकोडी आलिलै
याति पोनाल अंगुवंतु  इरुप्पारुण्डो  ।
    भावार्थ :-- जब वटवृक्ष फूल -फल से 

                                       भरे होते ,
                तब  सभी पक्षी तलाश करके ,
                  वहाँ आकर बस जाएँगे ।
      पतझड़ में कोई  हरियालीहीन

    सूखे पेड़ पर नहीं रहेगा।

     
    वैसे ही धन है ,धनी है तो 

       नाते रिश्ते घेर लेंगे ।,

    हमारे यहाँ आएँगे ।
  धन नहीं तो कोई झांककर भी न देखेंगे ।
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5. तंडामरैयिनुडन  पिरंते  तंड़ेनुकरा मंडूकम  ।

    वंडे कानत्तिरैयिरंतु  वन्ते 

       कमल मधु  उणनुम ।

 पण्डे  पलकियिरुंतालुम  

अरियार पुल्लोर नल्लोरैक 

कंडे  कलित्तु अंगु उरवाडि 

तम्मिर कलप्पर कटरारे ।
  भावार्थ :-- मेंढक कमल फूल के तालाब में ही      रहता है ।पर कमल के शहद नहीं चूसता ।

                कहीं जंगल से भ्रमर आकर शहद का स्वाद लेंगे ।
                शिक्षितों का महत्व  पास रहनेवाले मूर्ख  नहीं जानते ।

कहीं से एक ज्ञानी उन्हें पहचानकर आदर करेंगे
                उनसे दोस्ती निभाएँगे ।
                शिक्षित और गुणी ही गुणी का आदर करेंगे ।

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६। बुद्धिहीनों को उपदेश देना हानिकारक है ।


वानरम मलैयिनिल  ननैय  तूक्कणम 

तानोरू नेरी सोल्लत तांडिप्पि  प्पियत्तिडुम  

ज्ञानमुम कलवियुम नविन्र  नूलकलुम
ईनरुक्कु उरैत्तिडिल इडरताकूमे ।।

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 वर्षा में भीग रहे  बंदर से बया ने कहा ,

”तू क्यों मेरे जैसे घर बनाकर सुरक्षित रह नहीं सकते “।

झट बंदर पेड़ पर चढ़ा और बया के घोंसले को  छिन्न -भिन्न कर डाला ।

मूर्खों  को उपदेश देना ख़तरे से ख़ाली नहीं ।

अपने ग्रंथों के ज्ञान  उपदेश को अयोग्यों को देना दुखप्रद ही है।
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७। सत्संग में रहो

करपकत तरूवैच चार्र्नत काकमुम अमृतमुण्णुनम ।

विर्पन विवेकमुल्ल वेंदरैच  चेर्नन्तार वालवार ।
इप्पुवि तन्निलोन्रु इलवु कात्त किलि पोल ,
अरपरैच चेर्नत वाऴवु वीनाकुम ।

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कल्पतरु में  रहनेवाले कौवे भी अमृत खाएगा ।
ज्ञानी राजा के सम्पर्क में जीनेवाले गरीब भी सुखी रहेंगे ।
अल्पज्ञ के संग में रहें तो सेमर के फल की इंतज़ार में
रहे तोते के समान जीवन बेकार होगा ।

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८। अपनी स्थिति न बदलो ।

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चंगु  वेण तामरैक्कुत तंतैयाय इरवि तन्नीर ,
अंगतैक कोयतूविट्टाल 
अलुकच्चेय तन्नीर कोल्लूम ,तूँगवान
करैयिर पोट्टाल सूरियन कायत्तक कोलवान
तंकलिं निलैमैक केट्टाल इप्पडित तयंगूवारे ।।

श्वेत शंख रंग के कमल  के माता -पिता 

नीर  और सूर्य हैं 

उस फूल को तोड़ , पानी में डालें तो वही पानी  कमल को सड़ाएगा ।
ज़मीन पर डालें तो वही रवि सुखाएगा ।
वैसे ही कोई अपनी स्थिति से फिसलेगा तो हानी उठाएगा ।
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