Sunday, October 16, 2022

तमिलनाडु और हिंदी प्रचार।

 मैं कल एक हिंदी प्रचारक से मिला। पलनी के पास।

 हिंदी  सभा के Praveen aur मैंसूर विश्वविद्यालय के एम.ए।

एक स्कूल में हिंदी अध्यापक। 8000महीने वेतन।   ऐसे हजारों प्रचारक। गरीब मंदिर के पुजारी तरह राष्ट्र भाषा हिंदी की सेवा।

शासक हिंदी के विरोधी।

इनके प्रोत्साहन के लिए कोई कदम नहीं उठा रहे हैं। उनको कोई महत्व नहीं। तरुतले बैठे   रैदास भक्त समान।

 आप के नवीकरण पाठ्यक्रम सम्मेलन आदि की जानकारी इनको नहीं। केवल कालेज के प्राध्यापक। पाँच पन्ना लिखने से हिंदी का प्रचार नहीं

सभा की परीक्षार्थी 200000/दो लाख।

 प्रचारकों के लिए सरकार या सभा क्या करती है। 100करोड रुपये  शताब्दी वर्ष का खर्च।

कालेज उच्च शिक्षा के लिए  हर महीने सरकारी खर्च   । केवल  

बारह से बीस छात्रों को ज्ञान रहित स्नातक बनाने के लिए।

थीसिस इनसब डाक्ट्रेट का पाठक कोई नहीं।

इधर उधर नकल करके निर्धारित नियम पालन करके प्राध्यापक का बेगार बनकर डाक्टर।

अब ये थीसिस भी रेडिमेड।

 भरत नाट्यम की तरह दस साल की उम्र में बी.ए स्तर का प्रवीण।

 सातवीं कक्षा में प्रवीण उपाधीधार।    उनको हिंदी अध्यापक की नायुक्ति कैसे?

 पांच पन्ने  नहीं एक पन्न तत्काल शीर्षक देकर बोलना या लिखना

अपनी सीखी हिंदी से,

तभी असली ज्ञान। 

आजकल ऐसे एजेन्सी है

एम.ए तैयार बीएड तैयार। नियुक्ति तैयार। आंध्रा के एक शिक्षा अधिकारी का कहना है

अक्षर ज्ञान भी नहीं हिंदी ज्ञान भी नहीं हिंदी अध्यापक।

  आप ऐसे सम्मेलन  का प्रबंध नवीकरण के लिए कीजिए बुंदेल ग्राम के आदर्श प्रचारक चमक सके।

 सभा शिक्षण संस्था भी चुनाव के सदस्यों के इशारे पर चल रही है, वे सांसद विधायक की तरह मालामाल बनते हैं।

अब सभा के कोषाध्यक्ष जो हैं पाँच लाख खर्च करके। चुनाव नामांकन पत्र में भी गोलमाल।

   भगवान है पता नहीं,

असुरों का शासन, देव थरथराकर जेल में। मानव दधिची की रीढ़ की हड्डी है देशों की जीत।

 यह तो सभी युगों की बात,

न कलियुग की बात।

कलियुग  में  कुंती देवियाँ  प्रकट होती हैं।राज भय नहीं, लोक लज्जा नहीं, सब पति पत्नियों को तलाक कर शादी कर लेते हैं

ऐसे नायक और नायिका की अनुशासन हीनता के अनुयाई

उन अभिनेत्रियों को अभिनेताओं को दुग्धाभिषेक करते हैं।

अतः प्यार करो नहीं तो हत्या ।

  नकली की चमक असली है ज्यादा।कितने दिनों का।

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