Thursday, October 27, 2022

तिरुक्कुरल तमिल ग्रंथ २५० कुरलों का सार

 हिंदी व्याख्या :---एस .अनंत कृष्णन , हिंदी प्रेमी ,हिंदी प्रचारक ,अनुवादक 

अवकाश प्राप्त प्रधान अध्यापक ,हिंदू उच्च माध्यमिक विद्यालय ,त्रिवल्लिक्केनी ,चेन्नै
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तिरुक्कुरल में तीन खंड हैं। 133 अध्याय है ।एक अध्याय में दस तिरुक्कुरल है ।कुल 1330 कुरल हैं ।
तीन खंड है–1.धर्म 2.अर्थ 3.काम ।
इन सब का सार रूप देने का प्रयास है  हिंदी में ।
आशा  है  अतमिल लोगों को समझने आसान होगा ।
पाठकों से निवेदन है  कि 

इस अनुवाद के गुणों-दोषों को
अभिव्यक्ति कीजिए  जिससे मेरा प्रोत्साहन बढ़ेगा और मेरी अपनी ग़लतियाँ समझ में आएगी।
और भी सुचारु रूप से लिखने में समर्थ बनूँगा ।

  मेरे तिरुक्कुरल ग्रंथ का अनुवाद notion press में प्रकाशित  ग्यारह भागों  में प्रकाशित  हुआ है ,जो अमेजान और notion प्रेस में मिलेगा ।
मेरा सम्पर्क –8610128658


             धर्म   

प्रार्थना 

1.अनंत शक्तिमान ईश्वर की प्रार्थना  करना है। वही इस भवसागर  पार करने का मार्ग है। भगवान तटस्थ है।समरस सन्मार्ग दर्शक हैं।धर्म रक्षक है।

वर्षा 

2. वर्षा के अनुग्रह और कृषि नहीं तो जीना दुश्वार है ,जितना भी औद्योगिक और तकनीकी प्रगति हो ,अंतरिक्ष पर मानव पहुँच जाए ,पर कृषि  ही प्रधान माना जाएगा । भूखा  भजन न गोपाल ।इधर उधर घूमकर अगजग को  किसान के सामने‌ नत्मस्तक करना ही पड़ेगा। 

पूर्वजों का सम्मान 

3. ईश्वर के अनन्य भक्त ,अनासक्त ,धर्म प्रिय ,तटस्थ ,संयमि महात्माओं  की  स्तुति कर ।
अधर्मियों को मृत्यु होने पर प्रशंसा  सही नहीं है ।
धर्म 

4.   धर्म सबल है। धर्म धन ,यश ,श्रेष्ठता सब देगा ।काम ,क्रोध ,मद लोभ आदि अधर्म है ।
गृहस्थ :-

5. गृहस्थ  धर्म  तभी श्रेष्ठ है जब गृहस्थ अपने पिता,माता ,पत्नी ,नाते रिश्ते ,साधु -संतों और पूर्वजों की आत्मा सबकी धर्म पूर्ण सेवा करता है।
अर्द्धागनी 

6. ज़िंदगी  की सहायिका  जीवन संगिनी अर्द्धांगि्नि‌ग्नी पति की आर्थिक स्तिथि के अनुकूल अपने ससुराल की सेवा न करेगी ,पतिव्रता  और सहनशील न रहेगी तो  गृहस्थ का जीवन  में आत्मानंद और संतोष दूभर होगा।पत्नी ही  पति के सुखी जीवन का  आधार  स्तम्भ है।
संतान भाग्य 

7.  मानव जीवन की बहुत बड़ी असली सम्पत्ति सुपुत्र ही हैं । कुल की मर्यादा रक्षक है। सुपुत्रों का आलिंगन,चुंबन,

तुतली बोली,  शिशुओं के लघु करों  से मिश्रित भोजन आदि ब्रह्मानंद सम स्वर्ग तुल्य है। वही अन्य चल अचल संपत्तियों से  बढ़ी है।
प्यार 

8.प्यार की संपत्ति के लिए कोई  कुंडी नहीं है।प्यार में त्याग ही है।प्यार ही धर्म है। निस्वार्थ प्रेम में लेन -देन की बात नहीं है। प्रेमहीन लोगों को धर्म देवता वैसा जलाएगा,जैसा धूप हड्डी हीन जीवों को जलाता है।


अतिथि सत्कार 

9. .अतिथि सत्कार  ग‌हस्थ जीवन का बड़ा लक्ष्य होता है। अतिथि सत्कार करने वालों पर  सदा अष्टलक्ष्मियों की कृपा की वर्षा होगी।
मीठी बोली 

10.मधुर बोली का महत्व सर्वोपरी है। मीठी बोली सुखप्रद है। कल्याणकारी है।मधुर फलप्रद हैं।
    शत्रु को मित्र ,मित्र को शत्रु बनाने  की शक्ति  मधुर बोली में है ।

कृतज्ञता 

11. कृतज्ञता मानव जीवन का श्रेष्ठ गुण होता है।कृतघ्नता की मुक्ति नहीं है।वक्त पर की लघु मदद ब्रह्माण्ड से बडी है।
तटस्थता 

12. तटस्थता अति उत्तम धर्म है , श्रेष्ठ है ;अनासक्त जीवनप्रद है ।स्वार्थ से परे हैं।तराज़ू  समान तटस्थ रहना ही ज्ञानी का लक्षण है ।
नम्रता /आत्म नियंत्रण 

13. नम्र रहना ही ज्ञानी का लक्षण है।कछुआ समान पंचेंद्रियों को क़ाबू में रखकर विनम्र रहनेपर साथों  जन्मों  में श्रेष्ठ रहेंगे ।जीभ को क़ाबू में रखना अति अनिवार्य है।आग से लगी चोट भर जाएगी ,पर शब्दों की चोट कभी नहीं भरेगी ।
संयम  ही सज्जनता है।
अनुशासन 

14. अनुशासन का पालन करना मान -मर्यादा का आधार है । कुल गौरव रखना अनुशासन पर ही निर्भर है।चालचलन और चरित्र ही सदा मानव मर्यादा का संरक्षक है ।
परायी पत्नी की इच्छा पाप 

15. परायों की पत्नी से इच्छा करना , सम्भोग करना  बेवक़ूफ़ी  है । इससे  होनेवाला अपयश , पाप ,दुश्मनी स्थायी कलंक होगा । बदनाम कभी नहीं मिटेगा ।

 

 16 – सब्रता
      मानवता का श्रेष्ठ  गुण सब्रता याने  सहनशीलता है।हमें निंदा करनेवाले ,अहित करनेवाले ,हम पर क्रोध 

दिखानेवाले ,दुःख देनेवाले  आदि  सबको क्षमा करना और सहन शीलता दिखाना स्थायी यशों के मूल या आधार स्तंभ है। सहनशील मानव का यश अमर हैं। इस संदर्भ में रहीम का दोहा स्मरणीय है।
“ 

छिमा बड़न को चाहिए, छोटेन को उतपात। का रहिमन हरि को घट्यो, जो भृगु मारी लात।।


 17 – ईर्ष्यालू न होना
        ईर्ष्या  आजीवन मानव के लिए दुखप्रद है ।ईर्ष्यालु आमरण शांतिरहित  और असंतोषी  रहता है।उसके घर में वास करने लक्ष्मी देवी  कभी नहीं चाहती ।अपनी बड़ी बहन ज्येष्ठा देवी को छोड़कर जाती है। ईर्ष्यालु कंजूसी होने से बदनाम और अपयश स्थायी बन जाता है ।दानी  व्यक्ति से ईर्ष्या करनेवाले का उद्धार कभी न होगा ।

18 – लालच में न पड़ना
    धर्म पथ पर जाकर सुखी जीवन बिताना है तो लालच में पड़ना नहीं चाहिए ।लोभ वश दूसरों की चीजों को चोरी करने पर लोभी ज्येष्ठा देवी का प्यार बनजाएगा ।ज्ञानी लोभ से दूर रहेंगे ।लोभी मूर्ख ही बनेगा ।
काम ,क्रोध ,मद ,लोभ ,जब मन में लगै खान ।

तब पंडित -मूर्ख एक समान ,क़हत तुलसी विवेक ।

19 – चुग़ली करना / पीठ पीछे निंदा करना
        चुग़ली करना अधर्म है। किसी एक के सामने निंदा करना सही है पर पीठ के पीछे अपयश की बातें करना बूरों का काम है। अपने निकट दोस्त को उसकी अनुपस्तिथि में निंदा करता है तो अन्यों के बारे में क्या करेगा। अपने दोषों को पहचानकर सुधरना उत्तम गुण है।
कबीर –

"बुरा जो देखन मैं गया ,बुरा न मिलिया कोय ।

जो दिल खोजा आपना मुझसे बुरा न कोय।।
        अतः वल्लवर के अनुसार चुग़ल करना मूर्खता है। 

 20 बेकारी बातें न करना 

 बोलना है तो कल्याणकारी बातें ही करनी चाहिए।

घृणा प्रद  बातें करनेवाले बड़े होने पर भी नफ़रत के पात्र बनेंगे ।अनुपयोगी बुरी  बातें करनेवाले ,हानी प्रद बातें करनेवाले अनादर की बातें हैं ।

21 – बुराई करने से डरना चाहिए।

बुराई करने से होनेवाली हानीयों का भय  हमेशा ही सज्जनों के दिल में रहेगा  । दुर्जन ही बुराई करेंगे ।जो अपना कल्याण चाहते हैं ,उनको दूसरों की बुराई करनी नहीं चाहिए ।   बुराई करने पर उसका दुष्परिणाम छाया की तरह साथ आएगा ।   

 

 22 – समाज की  सेवा /निष्काम कर्तव्य करना
      मानव जो कुछ कमाता है ,वह दीन दुखियों की सेवा केलिए  है ।ग़रीबों की सेवा करके समरस आनंद का अनुभव ही मानव को महान बनाता है।परायों की मदद करने का गुण आदर्श लोगों में ही रहेगा। 

वे अपने लाभ -हानी पर विचार न करके परोपकार में ही लगेंगे।
         

 23 –दानशीलता –
    दूसरों की मदद करने कुछ देना दान शीलता है। निष्काम दान देना श्रेष्ठ सज्जन का लक्षण है। ग़रीबों की भूख मिटाना भी दान शीलता है। देना ही बड़ा धर्म है।


 24 – यश
      दान देकर यश कमाना ही शाश्वत यश है ।मानव जीवन में यश ही प्रधान है ।यश रहित पैदा होने से जन्म न लेना ही अच्छा है। मानव जन्म की सार्थकता यश कमाने में है।

 

 25 – सहानुभूति /करुणा

 मानव की श्रेष्ठ सम्पत्ति ही करुणा है ।सहानुभूति  जिसमें है ,वही  श्रेष्ठ है  ।करुणा जिसमें  है , उसको किसी प्रकार का दुःख नहीं है। 

धन नहीं तो सांसारिक सुख नहीं है ,करुणा /दया नहीं तो ईश्वर के यहाँ स्थान नहीं है।

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