Monday, November 4, 2019

आत्मानंद

प्रणाम । वणक्कम।
 काव्योदय कैसे ?
 कागजात के लिखते लिखते फाडदेने से,
एकान्त में बैठकर सोच सोचकर
शब्द,पद,छन्द संख्या गिनने  से
ऐसी वैसी बातें नहीं,
यों सोच सोच कई लिखते नहीं।
मैं भी हिचकते लचकते लज्जित होते
सोचा-लिखना छोड दूँ।
माने  न माने लिखना अपने मैन की बात।
अभिव्यक्ति में है आजादी।
अपनी भाषा अपने विचार अपनी शैली
लिखता रह्ता हूं,
कभी कभी चाहक लिखते है
अति उत्तम विचार।अति उत्तम।
शानदार,इसमें पाता हूं
आत्मसंतोष।आत्मानंद।
स्वरचित स्वचिंतक
यस.अनंतकृष्णन

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