Sunday, December 14, 2025

ஆன்ம மனநிறைவு आत्मसंतोष

 


तमिऴ् हिंदी सेवा, தமிழ் ஹிந்தி பணி

 आत्मसंतोष   ஆன்ம மன நிறைவு =

आन्म मन निऱेउ।

+++++++++++++++


एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई।

சே. அனந்த கிருஷ்ணன்.

15-12-25.

+++++++++++++++

आत्म संतोष,  =आन्म मन निऱैवु

आत्मसुख, --आन्मसुखम्

आत्मानंद,  = आत्मानंदम्

आत्मज्ञान  =आत्मज्ञानम्

 ये हैं आध्यात्मिक चिंतन।

इवैकळ् आन्मीक चिंतनैकळ्।

 लौकिक चिंतन में, --लौकीक चिंतनैयिल

 सत्य का साथ नहीं, =वाय्मै उड़न् इल्लै,

 भक्ति के क्षेत्र में बाह्याडंबर अधिक।

भक्ति  क्षेत्रत्तिल वीण आडंबरंगळ्  अतिकम्

 राजनैतिक क्षेत्र में  =अरसियल तुऱैयिल

 भ्रष्टाचारी। ऊऴल्

 प्रशासनिक और = निर्वाकत्तिलुम्

 न्याय के क्षेत्र में =  नियायत्तऱैयिल्

लक्ष्मी की चंचलता=अलैमकलिन  चंचलम्

 आत्म संतोष कैसे? आन्म निऱैवु ऍप्पडी?

 नश्वर जगत में  =अऴियुम् उलकिल्

 अनश्वर सत्य, अऴियात सत्यतियम्

 अधर्म प्रशासन, अधर्म निर्वाहम्

   आतंकवाद  =तीवीरवादम्

 ठग, चोर,डाकू, मैसक्कारर्कळ् , तिरुडन्, कोळ्ळैयर्कळ्।

 पढ़ें लिखे वकील, पित्त वऴक्करिज्ञर,

 चार्टर्ड एकाउंटेंट =चार्टर्ड अकाउंटेंट 

  व्यापारी, वियापारी

 सब तटस्थ है तो =अनैवरुम्  नडुनिलैयिल् इरुंताल् 

 आत्मसंतोष। आन्म निऱैवु।

 स्वार्थ राजनैतिक  =सुय नल अरसियल्।

 हमेशा अपने  असंतोषी, ऍप्पोऴुतुम्  तन् अतिरुप्ति

 विरोधी विचार गठबंधन। ऍतिर ऍण्णंकळिन कूट्टणि

 आत्मसंतोष कैसे? आन्म निऱैवु ऍप्पडी? 

 रामावतार में राम दुखी। रामावतारात्तिल रामर् तुन्पप्पट्टवर।

 कृष्णावतार में कृष्ण दुखी।

किरुष्ण अवतारत्तिल किरुष्णन् तुन्पप्पट्टवर।

  शासक अपने पद,

आट्चियाळर् तन् पदवि।

   अपनी तरक्की,

तन् मुन्नेट्रम् 

    षडयंत्र आत्मसंतोष कैसे?

चूऴ्च्चि आन्मनिऱेवु ऍप्पडी?

 संसार में अनेक वस्तुएँ, उलकिल् अनेक वस्तुक्कळ् 

   जगत मिथ्या,  उलकम् पोॅय।

   ब्रह्म सत्यं। बिरम्मम् सत्तियम् 

परिणाम जगत में  विळैवु 

 आत्म संतोष कैसे? आन्म निऱैवु ऍप्पडी?

 चोरी का माल, =तिरुट्टुप्पोरुळ्

  रिश्वत का मार्ग, कैयूट्टु वऴि

 एकांत में नहीं देता, तनिमैयिल् तरुवतिल्लै

 आत्मसंतोष। आन्मनिऱैवु।

 बुढापा ही  स्वर्ग- नरक का केंद्र।

मुदुमै स्वर्ग नरक मैयम् 

 भूलोक में कितने लोग

 भूलोकत्तिल्  ऍत्तनै पेर

 शांति पाते हैं, 

 अमैति पेरुकिऱार्कळ्

संतोषी है?  तिरुपति उळ।ळवर्कळ्

पता नहीं! तेरियविल्लै

   सुपुत्र कुपुत्र की बात।

 नल्ल कॆट्ट  मकन्कऴ्

 व्यापार में लाभ नष्ट।

वियापार लाभ नष्टम् 

 भिखारी भी रिश्वत देकर 

 पिच्चैक्कारनुम् लज्जम् कोडुत्तु

 बैठता है मंदिर के सामने।

अयर्किऱान् आलयम् मुन्बु।।

 मंदिर के इर्द-गिर्द  आलयम् अक्कम् पक्कत्तिल

 ठगों की दूकानें-एमाट्रुबवरकळिन् कडैकळ्।

 मनमाना दाम।

इष्टप्पट्ट विलै।

 दर्शन दो क्षण,

दरिशनम् इरंडु नोडि।

 पेसैवालों के घंटों के दर्शन। 

पणम् पडैत्तवर्कळ मणिकणक्किल् 

 रिश्तेदारों की उन्नति,

उऱविनर् मुन्नेट्रम् ।

 ईर्ष्या, क्रोध, लोभ,

प ॊऱामै, कोपम् पेरासै

 मेरी दृष्टि में आत्मसंतोषी कौन?

ऍन् पार्वैयिल अन्य निरैवु उळ्ळवन् यार?

 शीरडी साईं चरित्र,

शीरडि साईं चरित्तिरम्

 समाज के दुख दूर करने,

 समुदाय तुन्बम् पोक्क।

 स्वयं कितने दुखी,

 तान् ऍव्वळवु इन्नल्

 शारीरिक कष्ट,

उडल् कष्टम्

 भक्ति के क्षेत्र में 

भक्तित्तुऱैयिल् 

 भिन्न भगवान, वेऱुपट्ट इऱैवन्

भिन्न सिद्धांत। वेरुपट्ट कोळ्कैकळ्

 मामा के आराध्य देव अलग।

मामा आरातिक्कुम्  देवन तनि

 दादा,दादी  के आराध्य देव अलग-अलग।

तात्ता पार्टी आराध्य तेय्वंकळ् तनित्तनि

 ज्योतिषी एक ही जन्म कुंडली,

जोतिडम्  ऒरे जातकम् ।

 प्रायश्चित्त अलग अलग।

पिरायच्चित्तम्  तनिक तनि

  वही आत्मसंतोषी, 

आन्म निऱैवु उळ्ळवन्

   जिसका मन चंचल नहीं।

अपने मन निऱैवु उळ्ळवन् 

 एक ही सिद्धांत,

ऒरे कोळ्कै

 धर्माचरण,

धर्म आचारम्

 सत्याचरण 

 वाय्मै आचारम् 


 वैसा कोई दीख न पड़ा।। 

अप्पडि ऍतुउम् काणविल्लै।

इतिहास में,पुराण में। वरलाट्रिल् , पुराणंकळिल्‌

हिरण्यकश्यप, प्रह्लाद,

हिरण्यकश्यप, प्रह्लाद 

 दक्ष,शिव ,कंस कृष्णन 

लक्ष्मी ,शिवन्‌ कम्सन् किरुष्णन्

 मंथरा कैकेई राम

कूनी,कैयि रामन् 

 ईश्वर तुल्य लोगों की कथा भी

 कडवुळ् ओप्पिडुम् कतैकळिळुम्

 राम कहानी अपनी अपनी।

आराम कतै अतावतु तंकळ्‌तंकळ्  तुन्बक्कतै।

आत्म संतोष आन्म निरैवु।

 नश्वर ब्रह्मांड की खोज में 

अऴियुम्  ब्रह्मांडत्तेडलिल

कोई नहीं।।

ऒरुवरुम् इल्लै।

ईसा का शूली पर  चढ़ना,

एसुनाथर शिलुवैयिल एट्टरियतु।

मुहम्मद का मक्का मदिरा भागना।

मुहम्मद मक्का मदिरा ओट्ट

आध्यात्मिक क्षेत्र में भी 

 आन्मीकत्तुऱेयिलुम्

 असंतोषी ही ज़्यादा है।

 अतिरुप्ति अधिकम् 





 


 

 





 



 

 


 




 



  


 


 


 

 


No comments: