Friday, November 27, 2020

काश वो दिन फिर लौट आए

 नमस्ते। वणक्कम।

शीर्षक : काश वो दिन फिर लोट आये।

दिनांक २७-११-२०२०

   कल्पना कीजिए

 काश वो दिन फिर लौट आए।

 बच्चा था,लोट लोट कर रोता,

रुलाई रोकने  मां,बुआ, पिता,दादा,दादी

चारों ओर जमा हो जाते।

मेरी मांग क्या है ?

समझकर  पूरी करते।।

चारों ओर से चुंबनों की वर्षा।।

 घुटने चलनेवाले खिलौने,

तालियां बजाने वाले खिलौने,

चाबी देने पर तेज कूदकर,

भौंकने वाले कुत्ते।।

न पिता की आमदनी की चिंता।।

न नुकसान की चिंता,

न खिलौने तोड़ जाने की चिंता।

चाबी बढ़कर खिलौना टूट जाता।

लोट लोट कर रोना, एक ही खिलौना,

बार बार मां दिलवाती।।

पिता की झिड़कियां सह लेती।।

काश!वो दिन लोट लोट रोने का दिन

पुनः वापस आ जाता तो

कितना आनंद मिलन हो जाता।।

न सांसारिक  चिंता,न आध्यात्मिक चिंता।

काश!वह दिन लौटकर आ जाता।।

स्वरचित स्वचिंतक अनंतकृष्णन चेन्नै












नमस्ते। वणक्कम।

शीर्षक : काश वो दिन फिर लोट आये।

दिनांक २७-११-२०२०

   कल्पना कीजिए

 काश वो दिन फिर लौट आए।

 बच्चा था,लोट लोट कर रोता,

रुलाई रोकने  मां,बुआ, पिता,दादा,दादी

चारों ओर जमा हो जाते।

मेरी मांग क्या है ?

समझकर  पूरी करते।।

चारों ओर से चुंबनों की वर्षा।।

 घुटने चलनेवाले खिलौने,

तालियां बजाने वाले खिलौने,

चाबी देने पर तेज कूदकर,

भौंकने वाले कुत्ते।।

न पिता की आमदनी की चिंता।।

न नुकसान की चिंता,

न खिलौने तोड़ जाने की चिंता।

चाबी बढ़कर खिलौना टूट जाता।

लोट लोट कर रोना, एक ही खिलौना,

बार बार मां दिलवाती।।

पिता की झिड़कियां सह लेती।।

काश!वो दिन लोट लोट रोने का दिन

पुनः वापस आ जाता तो

कितना आनंद मिलन हो जाता।।

न सांसारिक  चिंता,न आध्यात्मिक चिंता।

काश!वह दिन लौटकर आ जाता।।

स्वरचित स्वचिंतक अनंतकृष्णन चेन्नै






















नमस्ते। वणक्कम।

शीर्षक : काश वो दिन फिर लोट आये।

दिनांक २७-११-२०२०

   कल्पना कीजिए

 काश वो दिन फिर लौट आए।

 बच्चा था,लोट लोट कर रोता,

रुलाई रोकने मां,बुआ, पिता,दादा,दादी

चारों ओर जमा हो जाते।

मेरी मांग क्या है ?

समझकर पूरी करते।।

चारों ओर से चुंबनों की वर्षा।।

 घुटने चलनेवाले खिलौने,

तालियां बजाने वाले खिलौने,

चाबी देने पर तेज कूदकर,

भौंकने वाले कुत्ते।।

न पिता की आमदनी की चिंता।।

न नुकसान की चिंता,

न खिलौने तोड़ जाने की चिंता।

चाबी बढ़कर खिलौना टूट जाता।

लोट लोट कर रोना, एक ही खिलौना,

बार बार मां दिलवाती।।

पिता की झिड़कियां सह लेती।।

काश!वो दिन लोट लोट रोने का दिन

पुनः वापस आ जाता तो

कितना आनंद मिलन हो जाता।।

न सांसारिक चिंता,न आध्यात्मिक चिंता।

काश!वह दिन लौटकर आ जाता।।

स्वरचित स्वचिंतक अनंतकृष्णन चेन्नै


































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