Sunday, October 17, 2021

तिरुक्कुरल

 



  • तिरुक्कुरळ --113   प्रेम की महिमा।

    1.  मधुर  बोली की मेरी प्रेयसी की दाँतों  में से जो  लार निकलती है,
          उसका स्वाद दूध और शहद  मिश्रित जैसे है. 
    2. मेरे और मेरी पत्नी का सम्बन्ध  शारीर  और  जान जैसा  है .
    3. मेरी आंखों की पुतली चली जा ,मेरी प्रेयसी के लिए स्थान नहीं है .  
    4 .  सोच  विचारकर   जांचकर  आभूषण  पहननेवाली  पत्नी  से मिलते समय जीवनदात्री   है 

           बिछुड़ते समय  जान लेवा  है।
        5. झगड़ालू पत्नी को मैं कभी भूल नहीं सकता।।

           अत: सोचने की जरूरत नहीं है।

         6.मेरे पति मेरी आँखों से कभी ओझल न होंगे।।

           भूलता तो सोचता।

         7.मेरे प्रेमी आँखों में है,काजल लगाने पर 

           ओझल हो जाएँगे। अतः मैं काजल नहीं लगाती।

         8.मेरे प्रेमी मेरे दिल में है, इसलिए मैं गरम खाना 

            और पेय न लेती क्यों कि दिल में बसे प्रेमी

            गरम न हो जाए।

         9.  आँखों के पलक झपकने से प्रेमी ओझल हो जाते।

            अतः मैं पलक नहीं दंपती।


         10.प्रेमी मेरे दिल में ही है।

          लोगोंमें गलतफहमियाँ हैं ; अज्ञानी हैं।

          वे ऐसे हीसमझ रहे हैं  कि 

          वे मुझसे बिछुडकर रहते;उनमें प्रेम नहीं है।

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   114. लज्जा तजना।  काम भाग।

1131 से 1140तक।


  1.तमिल में मडलेरुतल  का मतलब है नामकी के सुखानुभव के बाद  फिर नायक नायिका से मिल न सकें तो 

वह ताड़ के पत्ते के घोड़े  पर बैठकर नायिका के नाम जोर से लेता तो कोई शुभ चिंतक उनसे मिलने का प्रबंध करता ।

 नायक अपने पौरुष की लज्जा त्यागता।

 इसे तमिल में" मडलेरुतल " कहते हैं। 


नायक अपनी नायिका की सखी से अपनी मनोदशा व्यक्त करता है।


     विरह से तड़पते नायक को  निर्लज्ज होकर प्रेमिका के नाम को जोर से  लेने में ही बल मिलता है। नायक अपनी नायिका  की सखी से अपनी दशा बोलता है।

2. अपने प्यार की नाकामयाबी से दुखी नायक 

 अपने प्राण  से प्यारा  लज्जा तजकर नायिका के नाम  लेकर सार्वजनिक  जगह पर चीखने चिल्लाने और प्राण त्यागने का

साहस अपना बना लिया। 


3.नायक कहता हैं कि अपने प्रेम की विजय के लिए 

अपने पौरुष, स्वाभिमान  तजकर मडलेरुतल अर्थात

आम जगह पर अपनी प्रेमिका के नाम से चिल्लाने तैयार हो जाता है। कामांधता मनुष्य को निर्लज्ज बना देता है।


4.प्रेम पौरुष, शर्म आदि छोड़कर बेशर्म कर देता है।

 नायक प्रेम का अंधा बनने पर  आत्मगौरव पर भी  ध्यान नहीं देता।


5.  नायक अपनी स्थिति पर  कहता है कि  पतली चूडियाँ

पहनने वाली मेरी प्रेमिका  शाम के वक्त के रोग काम के कारण मजबूर होकर मडलेरुतल अर्थात आम जगह पर  प्रेमिका के नाम जोर से लेने को विवश कर दिया

6.प्रेमिका से मिलने की वेदना के कारण निद्रा देवी रूठकर चली जाती। इसलिए  आधी रात को मडेलेरुतल  

अर्थात आम जगह   पर

प्रेमिका के नाम लेकर चीखने के विचार को

 सुदृढ़ बना दिया। देव


7.उमडते उबालते  सागर  के सामान अत्यंत दुखी होकर भी 

औरतें  बिना मडलेरुतल  न करके जैसे नायिका  संयमित नियंत्रित रहती है।यह आश्चर्य की बात है।


8.  नायक सोचता है कि नायिका  निष्कपट सीधी-सादी है।

बेचारी है। पर प्यार  इन बातों पर ध्यान देकर 

उसके नाम को मंच पर चीखने को विवश कर देता है।


9. ख़ामोश रहने से मेरा प्रेम 

  किसी को मालूम नहीं होता।

अतः मेरा प्रेम गली गली मंडराने लगा है।

10. जिन्होंने  प्रेम रोग की वेदना का महसूस  नहीं किया, 

 वे  ही प्रेम रोग से पीड़ित लोगों को देखकर हँसी उडाएँगे।

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115

प्रेम अफवाहें।

  1.मरे प्रेम संबंधी किंवदंतियाँ फैलानेवालों  को यह पता नहीं है कि  अफवाहें फैलाने से  हमारे प्रेम का रहस्य खुल जाएगा। इस विचार से मैं जिंदा हूँ।


2. कमल नयनवाली  सुंदरी को मैंने नहीं देखा।मिलने का अवसर न मिला। अफ़वाहों के कारण  इस सुंदरी से मिलना पड़ा।अफवाहें फैलाने वालों ने मेरी बड़ी मदद की है।अनदेखी प्रेमिका से मिलने का सुअवसर मिला।


3.अफवाहें  फैलाकर हमारे प्रेम की जानकारी शहर भर में फैलायी है। सब लोगों को हमारा प्यार मालूम हो गया। हमारी शादी होना सरल हो गई।

4.शहर वालों की अफवाहों से हमारा प्यार बढ़ रहा है।  ये अफवाहें न हो तो  हमारे प्रेम में दिलचस्पी न होगी।

5. प्रेम  की किंवदंतियाँ फैलना मधु की नशा बढ़कर जैसे पियक्कड़ फिर फिर मधु पीता है, वैसे ही  प्रेम की नशा बढ़ती रहती है।

6.प्रेमी से एक दिन ही मिला उसकी अफवाहें एक दिन होनेवाले चंद्रग्रहण के समान  शहर भर में फैलायी गरी।

7. प्रेम की अफवाहें   शहरवालों की निंदाओं को खाद बना लेता है, माँ के कठोर शब्दों के नीर समान बढ़ाता है।सूखने न देती।

8.अफवाहें फैलाकर प्रेम को छोड़ने की सोच, आग में घी डालकर बुझाने की तरह है।  प्रेम को बढ़ाएगा। घटाएगा नहीं।

9. नायक ने वचन दिया कि मैं तुझे छोड़कर न‌ जाऊँगा। पर छोड़कर चले गए। वे निर्लज्ज हो गए। तब तो मुझे 

अफ़वाहों से शर्मिंदा न होऊँगी।

10.जैसे प्रेमिका ने चाहीवैसी  ही अफवाहें फैला चुकी है। प्रेमी चाहें तो ज़रूर मान लेंगे ।

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116.विरह सभा नहीं जाता।

   

   1. नायिका नायक से कहती हैं  कि  न बिछुडोगे तो मुझसे कह। बिछुडकर चंद दिनों के बाद आने की बात है तो

उनसे कहो जो तुम्हारे बिछुडकर  वापस आने तक जिंदा रह सकती हैैं। अर्थात नायिका अपने नायक से बिछुडने तैयार न हो।

2.नायिका कहती हैं -- मेरे नायक के नयनों से नयन मिलाना पहले अति मधुर और सुखप्रद था। अब मैं डरती हूं कि वे बिछुड जाएँगे।

3.नायिका कहती हैं कि मेरे नायक कहते हैं कि मैं कभी तुझसे अलग नहीं हो जाऊँगा।  पर जो भी हो बिछुडने का समय आएगा ही। अतः उनकी बातें स्थाई नहीं है।

4. नायिका कहती हैं कि शादी के वक्त उन्होंने ने वादा किया कि मैं कभी तुझको छोड़कर नहीं जाऊँगा। उनकी बात मानकर भूल कर दी। वे बिछुडेंगे तो?

5. प्रेमी -प्रेमिका का बिछुडना अधिक दुखप्रद है। बिछुडने पर फिर मिलना असंभव है। प्रेमी के बिछुडने को रोकना चाहिए।

6.नायिका कहती हैं कि प्रेमी का मन पाषाण है, अतः आसानी से कहते हैं कि  बिछुड़कर फिर आऊँगा।वापस आकर फिर पहले जैसे प्रेम करेंगे की क्या आश्वस्ती।

7. नायिका कहती है कि  प्रेमी के वियोग से मेरे हाथ पतले हो जाएँगे। मेरी चूडियाँ हाथ से गिर जाएँगी।तब तो सब सखियाँ खिल्ली उडाएँगी न?यह भी अति वेदना देती है।

8.नायिका कहती हैं कि  अपनी जाति जन नाते रिश्तों से अलग रहना दुखप्रद है।उनसे अधिक तम दुख नायका/प्रेमी से बिछुडने में होगा।

9.आग छूने से ही गर्म लगेगा;पर कामाग्नि  बिछुडकर दूर जाने पर भी जलाएगी।  प्रेमिका अपनी विरहावस्था सोचकर चिंतित हैं।

10. नायिका कहती हैं कि अपने पति को बिछुडकर जग में पत्नियाँ हैं, पर मैं कैसे रहूं?पति नौकरी केलिए आते हैं,सब सहेंगे तो बस लें। प‌र मैं सह नहीं सकता।

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117. विरहताप से दुबला-पतला होना।


1.नायिका कहती‌ है,विरह वेदना को जितना छिपाती हूं, उतना नहीं उससे दुगुना बढ़ जाती है। स्रोत जल के समान 

बढ़ती ही रहती है।


2.विरही कहती हैं की कामाग्नि छिपाने पर भी नहीं छिपती। प्रेमी से कहने में संकोच भी होती है।

3.असहनीय काम इच्छा बढ़ती रहती है। छिपाना भी मुश्किल। इस रोगी कर्ता से  कहने शर्मिंदा होती हूँ।तराजू के पल्ले की तरह काम रोग और लज्जा  दोनों बराबर वजन में लटक रहे हैैं।

4.काम रोग सागर समान गहरा है,उसे पारकर चलने कोई नाव नहीं मिलती।

5.नायिका कहती हैं कि मित्रता के सुख में ही दुख देनेवाले  प्रेमी शत्रु बन जाएँगे तो  क्या होगा?

6. नायिका कहती हैं कि संभोग समुद्र से अधिक आनंदप्रद है,पर विरह वेदना समुद्र से बड़ा है।

7.नायिका कहती हैं कि काम संभोग सागर में तैरकर भी समुद्र तट पर नहीं पहुँचा। आधी रात में भी बिना निद्रा के जाग रही हूँ।

8.नायिका का प्रलाप है कि रात दयनीय है।सब जीव रासियो को बुलाकर खुद बिना सोते बिताती हैं। सिवा मेरे और कोई सखी नहीं है।

9.नायक के बिछुडकर बिताने वाले ये दिन अत्याचारियों के अत्याचार से सौ गुना दुख देनेवाला है।

10.नायिका कहती हैं कि मनोवेग से नायक के यहाँ मैं जा सकती हूं तो अश्रुओं की बाढ में तैरने की जरूरत नहीं है।

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118. आँखों की निंदा। दोषारोपण।


1. नायिका कहती हैं ,"यह असाध्य काम रोगों के मूल कारण ये आँखें हैं।" वैसी आँखें आज प्यार का महसूस न  करके रोती क्यों हैं?

2.बिना सोचे विचारे ये आँखें  देखकर प्रेम जाल में फँस गयी। आज वेदना में तड़पती क्यों?

३.आँखें प्रेमी को खुद सानंद देखकर आज वे ही रोती हैं। यह तो मजाक की बात है।

४.काजल लगी मेरी आँखें प्यार और  काम का असाध्य रोग देकर रो रोकर सूख गयी हैं।

5.मेरी आँखों ने समुद्र से गहरा प्रेम काम रोग देकर खुद बिना सोते दुखी में है।

6.आँखों ने मुझे काम रोग दिया।जय खुद आँखें  वेदना में है तो मैं बहुत खुशी हूँ।

7.  इन आँखों ने  उनको  बड़ी चाह से देखा,आज वे ही वेदना में आँसू की धारा बहा रही है।ऐसे रोकर आंखें सूख जाएँ।

8. वचनों से चाह उनकी,अंतर मन से न प्रेम।फिर भी बगैर उनके दर्शन के मेरी आँखें बेचैन हैं।

9.प्रेमी के आने पर भी मैं न सोती। प्रेमी के न आने पर भी आँखों में नींद नहीं होती।

10.जैसे ढोल बजाने को सब सुन सकते हैं, वैसे ही मेरी जैसी नारियों का रुदन सब को मेरी विरह वेदना बता देती है।

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119.काम रोग का प्रलाप।

1.प्रेमी के बिछुडने का समर्थन किया।बिछुडने के बाद जो काम रोग बढ़ा,उसे मैं और किसी से कैसे बताऊँ?

2.इस काम रोग को  उन्होंने ही संक्रामक रोग में बदल दिया। वह हर अंग पर रेंग रहा है।

3.काम रोग का हरा रंग मेरे शरीर पर फैलाकर मेरे अंग और लज्जा को अपना लिया। 

4. मैं उनके अच्छे स्वभाव के बारे में सोचती हूँ। मैं वहीं कहता हूँ। फिर भी काम को काम रोग आना  धोखा ही है।यह तो दूसरे ढंग का है।

5.वहाँ देखो,मेरे प्रेमी मुझे तजकर जा रहे हैैं।यहाँ मेरे शरीर पर काम रोग का हरा रंग फैलता जा रहा है।

6.दीप की रोशनी  मंद पड़ते ही निकट आनेवाले अंधेरे के समान  प्रेमी के आलिंगन रहित शरीर में आलसीछा जाती है।

7.नायक से गले लगाया, ज़रा हटते ही काम रोग का हरा रंग फैलता रहता है।

8.सब के सब यही कहते हैं कि मैं कामांधकारिणी हूँ,यह नहीं कहते हैैं कि मेरे प्रेमी मुझे छोड़ कर चले गये।प्रेमी पर कोई आरोप नहीं लगाते।

9.मेरी विरहावस्था के कारण नायक सचमुच सज्जन है तो यह रोग ऐसे ही रहें।

10.मुझसे अनुमति लेकर मेरे प्रेमी आते हैं, उनकी निन्दा न करेंगे तो  मेरा यह काम रोग मूंदे पसंद है।

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120.  विशिष्ट प्रेम।

 1.अपने प्रेमी का प्रेम मिलना,प्रेम जीवन के परिणाम स्वरूप मिलने वाले बीज रहित फल के समान है।

2. प्रेमी का प्यार दिखाना, प्रेम देना, अपनी ओर  प्रतीक्षा करनेवाले आकाश प्राण देने  पानी बरसाने के समान है।

3.प्रेमी से प्रेम करनेवाले  फिर आने की आशा , फिर जीने के विश्वास  का गर्व दायक रहेगा।

4.प्रेमी अपने  प्रेम  को स्वीकार न करके ठुकराया है तो वह महिला   दुनिया की  नजर में बुरी ही है ।

5.हम जिससे प्रेम करते हैं, ,वे हम से प्रेम नहीं करते तो 

वे हमारा भला क्या करेंगे।

6.प्रेमिका और प्रेमी में प्रेम एक पक्षीय होता तो  वह कष्टप्रद हो जाता है। प्रेम काबड के समान दोनोें पक्ष में समान वजन का होना चाहिए।

7. प्रेम दोनों पक्ष में समान न होने पर  उससे होनेवाले दुख को  कामदेव  जानते हैं या नहीं?

8. प्रेमी का मधुर वचन  न सुननेवाली प्रेमिका का जिंदा रहना नारकीय वेदनाएँ हैं।

9.मेरे प्रेमी मुझसे प्यार न करने पर भी  उसका यशोगान  सुनकर  प्रेमिका अत्यंत खुश हो जातीहै।

10.हे मन!  तुम से जो प्यार नहीं करते,उनसे तुम्हारी राम कहानी सुनाना  बेकार है।

समुद्र को सुखाना  सरल कार्य है।

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121.सोचकर प्रलाप।  

  1. सोचते  ही अति सुख मिलने से मधु से काम अति सुखप्रद है। मधु तो पीने के बाद ही सुध बुध खोते हैं। देखते सोचते कामी सुध-बुध खो जाता है।

  2. अपने प्रेमी से दूर रहने  पर भी  सोच ही आनंदप्रद है। अतः प्यार  में सुख है।

  3. नायिका  की छींक आकर रुक जाती है। तब नायिका सोचती है   " शायद प्रेमी सोचकर भूल गए या हो।

  4. मेरे मन में प्रेमी हैं, उनके मन में मैं हूं या नहीं पता नहीं।

  5. प्रेमी अपने मन से मुझे हटा दिया है।पर मेरे मन से  हटे नहीं।   बार-बार निर्लज्जता से आते हैैं।

  6. प्रेमी के संभोग दिन की याद में ही। मैं जीवित हूँ। और किसे सोचकर जीवित  रह सकती।

  7. उन दिनों को बगैर  भूले सोचते रहने से दिल जलता है ।बिना सोचे कैसे जी सकूँगी।

  8.  प्रेमी के बारे में जैसा भी सोचूँ,वे नाराज न होंगे। प्रेमी की बड़ी मदद यही है।

  9. वे कहा करते थे कि हम दोनों अलग अलग नहीं,एक है।आज उनमें प्रेम नहीं है।यह सोच कर मेरी जान चली रही है।

  10. हे चाँद! तू  मत छिप जाना। तेरी चाँदनी में मेरी आँखों के सामने मेरे   प्रेमी लीग पडें।

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122. स्वप्न दशा बताना।

1.नायिका कहती हैं कि  मैं विरह वेदना में सो रही थी।तब मेरे प्रेमी के दूत के रूप में

स्वप्न आया था। स्वप्न में प्रेमी को देखा।

मेरे प्रेमी को स्वप्न लाया था।उस स्वप्न  को कौन सा पुरस्कार दूँगा।

2. मेरी आँखों में नींद आती तो स्वप्न में मेरे प्रेमी आएँगे।तब प्रेमी से कहूँगी कि मैं बचकर अभी भी जिंदा हूँ।

3.मेरे विचार में जो प्रेमी हैं,उनको  स्वप्न में प्रत्यक्ष देखने  से ही मैं जिंदा हूँ।

4.प्रत्यक्ष आकर मेरे प्रेमी  प्रेम न करते।उनको स्वप्न‌ ले आता है।स्वप्न में ही मुझे सुख मिलता है। प्यार की घटनाएँ स्वप्न में देखकर खुश होती है।

5.याद की लहरें भी सुख प्रद औरअब के स्वप्न के मिलन भी आनंदप्रद ।

6.नींद न टूटेगी तो मेरे स्वप्न में आनेवाले  प्रेमी कभी अलग न होते।

7.सामने आकर प्रेम न दिखानेवाले  अत्याचारी प्रेमी  स्वप्न में आकर मुझे बताते क्यों ?

8. स्वप्न में मेरे प्रेमी बाहों में है तो मेरे जागते ही मेरे दिल में बस जाते हैं।

9.स्वप्न में प्रेमी न आएँगे तो जागते ही मन में अत्यंत दुखी होंगे।

10.प्रत्यक्ष न आनेवाले प्रेमी के निंदक स्वप्न में भी उनको न देखें होंगे।

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123.  वक्त देखकर संताप ।

1.प्रेमिका संध्याकाल को देखकर कहती हैं,  यह काल महिलाओं के प्राण देनेवाला काल है।

2.बेहोश संध्याकाल!तू भी मेरे जैसे दुखी हैं? तेरे प्रेमी भी मेरे प्रेमी जैसे निर्झरी है क्या?

3.बरफ भरा ठंड सायंकाल मेरी विरह वेदना को और भी बढ़ाता है।

4.जब प्रेमी नहीं है,तब आनेवाली संध्या हत्यारे शत्रु के आगमन समान लगता है। अर्थात मेरे प्राण देनेवाले लगता है।

5. मैं ने सुबह को हित क्या किया और शाम को अहित क्या किया? शाम क्यों सताता है?

6.जब मेरे प्रेमी साथ थे तब मैंने महसूस नहीं किया कि 

संध्याकाल बहुत अधिक बचानेवाला है।

7.यह प्यार का रोग सुबह करीब बनकर दिन भर बढ़कर नायकों  फूल बन खिल जाता है।

8. गोपाल की बांसुरी अग्नि समान  दुख देनेवाले शाम का दूत बनकर  मारनवाली सेना बनकर आती है।

9. बुद्धि मंद पड़कर  सायंकाल बढ़ते बढ़ते सारे शहर मेरे जैसे ही दुखी होगा।

10.मेरे प्रेमी धन कमाने गये हैं।अतः मैं सब्र रही। जिंदा रही।पर यह संध्या अधिक सताती है वह जान लेनेवाली जैसी है।

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124.अंग स्वास्थ्य खराब।

1.प्रेमी विरह वेदना में छोड़कर दूर देश चले गये हैं।

उनकी याद में रोती रहती हूँ।इस कारण से आँखों की शोभा  मिट गई हैं।आँखें सुगंधित पुष्प देखकर लज्जित हो गरी हैं।

2.मेरी आँखें शोभा खोकर मानो मेरी विरह वेदना  का टिंढोरा पीट रहा है। 

3.प्रेमी से मिलकर रहे दिनों में मेरी बाहें हृष्ट पुष्ट थी। विरह वेदना में  दुबली -पतली हो गई। बाहें भी मानो मेरी विरह वेदना का ऐलान कर रही है।

4.विरह वेदना में हाथ दुबली पतली हो ग्रे हैं। चूडियाँ गिर डरी हैं।

5. हाथ,कंधे शोभाहीन होकर अत्याचारी प्रेमी के अत्याचार बता रहे हैं।

6. चूड़ियाँ रहित हाथ दुबली पतली बाहें देखनेवाले मेरे प्रेमी की निंदा करते हैं।यह सुनकर अत्यंत दुख होता है।

7.हे मन! दुबले पतले  मेरे हाथ-बाहों की पीड़ाओं को उन से बताकर गर्वान्वित हो जाओगे?

8. प्रेमी के आलिंगन ज़रा शिथिल होते ही प्रेमिका अति दुख का महसूस करने लगी।

9.आलिंगित  शरीर  के बीच हवा के प्रवेश से प्रेमिका की आँखें विह्वल हो उठी।

10.प्रेमिका कीआँखों की विरह वेदना से वेदना खुद वेदना का अनुभव करने लगी।

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125.मन से बात


1.हे मन!  प्रेम के कारण  बढ़ी,पीड़ा रोग चंगा होने,तू सोचकर कोई दवा न बताओगे?

2.रे मन!जब प्रेमी के मन में प्रेम नहीं है,तब तुम्हें उन्हें सोचकर  पीड़ित होना बडी बेवकूफी है।

3.रे मन! तुम मुझमें रहकर दुखी होने से क्या लाभ?जब प्रेमी में यह गुण नहीं है।

4.रे मन! जब तुम  उन्हें देखने जाओगे,तब मेरी आँखों को भी लेकर जाओ।आँखें उन्हें देखने के लिए बहुत बता रही हैं।

5.रे मन!  मेरे प्रेम की इच्छा को ठुकराने वाले प्रेमी को,  यों ही मैं कैसे छोडूँ कि  वे मुझसे घृणा करते हैं।

6.रे मन!  तुम   प्रेमी के मिलन, रूठना,प्रेमी का सांत्वना देना आदि जानकर भी तुम नाराज़ होते हो।तेरा क्रोध मिथ्या ही है न?

7.रे मन!एक तो काम छोडो न तो  शर्म! इन दोनों को सहकर जी नहीं सकता।

8.रे मन!विरह वेदना में पीड़ित तुम, मूर्ख बनकर उनके पीछे  जाते हो।तुम तो नादान बच्चे हो।

9.रे मन!जब प्रेमी मन में ही है, तब उनकी तलाश में क्यों जाते हो!

10.रे मन! प्रेमी प्रेम मिलन न करके चले गये, फिर भी वे मन से मिटे नहीं। मन में दुखी होकर कांति हीन हो रहे हैं।

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126. नियंत्रण खोना।

1.लज्जा की मजबूत  कुंडी को काम कुल्हाड़ी तोड़ देती है।

2.काम  अंधा है। बेरहमी होता है।वह आधी रात को मुझे सताता है।

3.प्रेम और काम अनियंत्रित है;छी़ँक जैसे ही खुद प्रकट हो जाता है।

4.मैं सोच रही थी कि मैं नियंत्रण में हूँ;पर काम मंच पर आ ही जाता है।

5.अपने को छोड़कर जानेवाले पर विचार न करके वे ही अलग रह सकते हैं जिनको काम रोग पीड़ित न हो।

6.मुझसे नफ़रत करके  जो छोड़ गये,उनके पीछे जाने का जिद  करनेवाला प्रेम रोग अत्यंत क्रूर है।

7. हमारे मन पसंद  की बात अपने प्रेमी जो भी करें,तब हम बेशर्म हो जाएँगी।

8.नारी  रूपी किले को तोड़नेवाले अस्त्र-शस्त्र , अनेक मिथ्या धंधों में श्रेष्ठ  चित चोर प्रेमी की विनम्र मधुर बातें ही है।

9.नायिका कहती हैं कि रूठने के लिए मैं गयी, पर मेरा मन संभोग की इच्छा के कारण उनसे गला लगा लिया।।

10. चर्बी जैसे आग में पिघल जाती है,वैसा ही मेरा मन नियंत्रण  प्रेमी से मिलते ही टूट जाता है।

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127. प्रेमी आने की प्रतीक्षा में।

 नायिका प्रेमी के आने की प्रतीक्षा में अपनी सखी सेविविध प्रकार से बकती है।

  1. मेरी आँखें उनकी प्रतीक्षा में कांतिहीन हो गई हैं।

उँगलियाँ भी   उनके बिछुडने के दिनों को गिन गिन कर घिस गई हैं। 

2.प्रेमी के बिछुडने के कारण जो पीडाएँ होती हैं,उनसे मेरा शरीर दुबला-पतला होकर कांतिहीन हो जाएगा।  शिथिल शरीर से आभूषण गिरे जाएँगे।

3. कामयाबी  की आशा में विदेश गये मेरे साहसी प्रेमी के आगमन की प्रतीक्षा में ही मैं अब तक जीवित हूँ।

4. प्रेमी से मिले दिनों की याद में उनके आने की आशा में  आनंदित मन पेड़ की ऊँची शाखाओं पर चढ़कर देख रहा है।

5.मेरे प्रेमी के आते ही मेरा शरीर प्रफुल्लित हो जाएगा।मेरी वेदनाएँ अपने आप मिट जाएँगीं।

6.मेरे बिछुडे प्रेमी एक दिन आएँगे ही। उनके आते ही मेरी पीडाएँ दूर हो जाएँगी। मैं अत्यंत सुख भोगूँगी।

7.पता नहीं कि मेरे प्रेमी के आते ही उनसे रूठूँगी या गले लगाऊँगी या संभोग करूँगी।मेरी समझ में कुछ नहीं सूझता।

8.मेरे प्रेमी अपने काम में विजयी बनकर लौटें।

 वे जीत कर वापस आ जाने के दिन‌ के संध्या काल में‌  सुख का भोज ही भोज होगा।

9.प्रेमी की प्रतीक्षा में। रहने वाली प्रेमिका को हर दिन बहुत लंबा रहेगा।

10.विरह पीड़ित दशा में  मन अस्थिर हो जाएगा तो

उनसे मिलने से कोई प्रयोजन नहीं होगा।

*********"""""""""""""""""**************"""""********"1128.सोच सूचना।

   128.नायक का सूझ।


 1.तुम कहें या छिपें तेरी आँखों की एक  पसंद खबर है।

 2.अत्यधिक सुंदरी बाँस जैसे बाँहोंवाली  मेरी प्रेमिका में

स्त्रीत्व ज्यादा है।

3.मणियाँ जुडी हुई माला के सूत सी प्रेमी की शोभा में से

प्रकट एक सूचना है।

4.कली खिलते समय की खुशबू सा  नारी के मुस्कुराहट में एक  सूचना है।

5.प्रेमिका  मेरी ओर देखकर  जो कुछ  चोरी चोरी सीसूचित करती है वह मेरे संताप मिटाने की दवा होती है।

6.अत्यधिक प्रेम दिखाकर प्रेमी का संभोग ऐसा लगता है कि 

 उनमें प्रेम नहीं है और बिछुड जाएँगे।

7.ठंडे घाट के प्रेमी के वियोग को हमारे पहले  हमारी चूडियाँ

   जान समझकर शिथिल हो जाती है।

8.मेरे प्रेमी कल ही गये, पर मेरी दशा सात दिन की विरह वेदना का अनुभव करता है।

9.अपनी चूडियाँ देखकर,  दुबली-पतली बाँहें देखकर 

 अपने पैरों के कदम देखकर संकेत करती है कि वह भी प्रेमी के साथ जाएगी।

10.आँखों से अपने काम रोग का संकेत करके न बिछुडने की माँग  स्त्रीत्व को और श्रेष्ठ  बनाता है।

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129 काम विशेष की बातें।


1.सोचते ही आनंद होना,देखते ही खुश होना प्रेम और काम में है, मधु में नहीं है।


2.ताड जैसे कामाधिक्य में खंडिनी दाने भर भी रूठना न चाहिए।


3.मेरे प्रेमी मुझे न चाहने पर भी स्वैच्छिक होने पर भी  मेरी आँखें प्रेमी  को न देखने पर  विह्वल हो जाता है।

4.हे सखी। मैं अपने प्रेमी से रूठने गयी,पर उनसे  मिलते ही मेरा मन रूठने के बदले संभोग में लगना चाहा।

5.  काजल लगाते समय  आँख छड़ी  न देखने की आँखों के समान , प्रेमी को देखते ही  उनके अपराधों को न सोचकर भूल जाता हूँ।

6.जब मैं अपने प्रेमी को देखती हूँ,तब उनकी गल्तियों पर ध्यान नहीं देती। उनकी अनुपस्थिति में

 उनकी गल्तियाँ ही याद आती हैं।

7.  बाढ के बहाव  में कूदने पर खतरा है,जानकर भी कूदने वाले के समान  मेरे क्रोध से लाभ नहीं जानकर भी  क्रोधित होने से  क्या परिणाम होगा।कुछ भी नहीं होगा।

8.चितचोर! पियक्कड़ जैसे फिर फिर  मधु पीना चाहता है वैसे ही तेरा छाती फिर फिर लिपटने का आनंद देता है।

9. काम फूल से अति कोमल है।उसकी वास्तविकता जानकर 

उससे लाभ उठाने वाले विरले ही होंगे।

10. नजर में क्रोध दिखाती हुई  संभोग में अति रचित होने से 

क्रोध भूलकर मुझसे  लिपट लेती है।

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130.मन से बात

1.हे मन! प्रेमी का मन उनका साथ जैसा देता है,

वैसा  साथ  तुम मेरे साथ क्यों नहीं देता।

 २.हे मन! मुझसे प्रेम हीन प्रेमी  के पीछे तुम क्यों जाते हो।

 सोचते हो कि  तुम मुझसे नफ़रत न करोगे।

३.तुम  उनकी इच्छा के अनुसार ही उनके पीछे क्यों जाते हो।

 इस वजह से कि इस संसार में बिगड़े लोगों को कोई साथ नहीं देगा।

४.हे मन! तुम रूठने का फल नहीं जानते।अतः तुम से सलाह लेना व्यर्थ है।

५. जब अपने प्रेमी से नहीं मिले तब भी डरता है मन।

 जब प्रेमी से मिलता है तब मन में बिछुड जाने का डर है।

इस प्रकार दुख दूर नहीं होता। हमेशा  बना रहता है।


6.प्रेमी से बिछुडकर रहते समय मेरा मन अधिक दुख होता है।


7.मैं अपने प्रेम के कारण प्रेमी को  न भूल सकने के मन से  मिलकर मैं बेशर्म हो गरी।

8. मेरा मन हमेशा प्रेमी के आदर्शों को ही मानता है। उनके बंद गुण सोचना उनको अपमानित मानता है।

9.  संताप के समय अपना मन ही साथ न देता तो और कौन साथ देगा।


10.मन ही किसी को न रिश्ता नहीं होता तो और कौन रिश्ता बनेगा।

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131. मिथ्या क्रोध


1.प्रेमी मिलन में मिथ्या क्रोध दिखाने से प्रेमी की पीडा देखने लायक है।,अतः क्रोध दिखाना भी आवश्यक है।

2.भोजन में नमक स्वाद के लिए आवश्यक है,पर नमक ज्यादा डालने पर स्वाद मिट जाएगा। वैसे ही प्रेम में मिथ्या क्रोध  थोड़ा होना अनिवार्य है।

3.जो  हम से नाराज़ होते हैैं,  क्रोध दिखाकर बिना गले लगाये  छोड़ना उनके क्रोध और अधिक बढ़ाना ही है।

4.क्रोधित प्रेमी  से अधिक क्रोध दिखाना सूखी लता को जड़ से उखाड़ने के समान है।

5.प्रेमिका  से क्रोध दिखाना  सद्गुण वाले पुरुष को शोभा देती है।

6.अधिक क्रोध ,कम क्रोध प्रेमी प्रेमिका में न हो तो वह प्रेम  अति पके और अति कच्चे  फल कै समान निष्फल हो जाता।

7.संभोग लंबे समय तक न होगा सोचना भी दुख प्रद है।

8. प्रेमी-प्रेमिका एक दूसरे की अनुपस्थिति में दुखी न होंगे तो उनके पछताने से कोई फायदा नहीं है।

9.पानी भी धूप के नीचे न रहकर  छाया में रहना अच्छा है! वैसे ही प्रेम में मिथ्या क्रोध भी आवश्यक है।

10.क्रोध दिखाते समय दिलासा न देकर और पीड़ा बढानेवाले से प्रेम करना इच्छा भी है!

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132. मिथ्या क्रोध की सूक्ष्मता।


1.हे स्त्री चाहक! तुम तो  स्त्रीत्व के सब लोगों के चाहकर हो।सब की नजर के आम रूप बन गये हो। अतः मैं तुम्हारी  छाती से न  लिपटूँगी।

२.प्रेमी से मिथ्या क्रोध में थे।हम तुम को दीर्घायु जीने की आशीष देंगे। यों सोचकर छींकने लगे। मैं तो जरा भी ध

यान नहीं दिया।

३.एक मानसिक परिवर्तन के लिए पेड़ पर चढ़कर फूलों की माला पहनकर गूँथा तो प्रेमिका  नाराज हो गयी कि और किसी के लिए माला बनाई और उसको इशारा कर रहे हो।

४.प्रेमिका से कहा और किसी की तुल्ना में हममें अधिक प्रेम है।  उसकी आँखें लाल हो गई और बोली  किससे बढ़कर।

५.प्रेमिका से कहा कि इस जन्म में हम कभी नहीं अलग होंगे। यह सुनकर वह रोने लगी कि अगले जन्म बिछुड जाओगे क्या?

६. मैं ने प्रेमिका से कहा कि मैंने सोचा है।तब उसने कहा कि भूल गये हो? क्यों भूल गये? यों पूछकर क्रोधित हो उठी।

७.मैं छींकी तो  उसने बधाई दी।तुरंत रोने और रूठने लगी कि किस के सोचने से आफ छींकी ।

८. प्रेमिका के क्रोध होने से  बचने के लिए छींक रोका तो वह रूठकर बोली कि क्यों छींक रोके  ? आप छिपाने कि आप की याद कौन कर रही है?

९.जब वह क्रोधित होती है, तब मैंने  उसको प्रफुल्लित किया तो वह बोली  आप ऐसे ही और महिलाओं को खुश करते हैं ?

१०. उसकी सुंदरता को एकटक देखता तो रूठकर बोली कि आप किस सुंदरी की तुलना में मुझे घूरा देखते हैं।

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१३३.मिथ्या क्रोध का आनंद


 

  १.प्रेमी में दोष न होने पर भी रूठना अति आनंदप्रद है।

२. रूठने से होनेवाला छोटा सा दुख ,प्रेमी के प्रेम को सुखा देगा फिर भी उसमें बड़प्पन है।

३.भूमि में पानी जैसे मिश्रित है वैसे ही प्रेम मिल गया है, फिर भी रूठने में आनंद है।

४. मेरे प्रेमी से गले लगाकर  रहने की शक्ति रूठने में है। उनसे भी बढ़कर रूठने में मेरी मानसिक दृढता तोड़ने  की शक्ति भी है।

५.निर्दोषी होने पर भी  प्रेमिका के क्रोध का पात्र बनने में भी  उसकी बाँहें न छूकर हटकर रहने में भी एक आनंद है।

६. भोजन करने से किये भोजन के पचने में आनंद है। वैसे ही संभोग के पहले रूठने में आनंद होता है।

७. रूठने के युदध में हारनेवाले ही विजयी होते हैं।यह सच्चाई रूठने के बाद के संभोग के बाद महसूस करेंगे।

८. पसीने के परिश्रम के संभोग फल को रूठने की अनुभूति से  प्राप्त करेंगे।

९. प्रेमिका रूठती रहें, रात का समय लंबी हो जाएँ यही मेरी प्रार्थना है

१०.काम को सुख देनेवाला मिथ्या क्रोध भी है। क्रोध दबने के बाद का संभोग अति सुखप्रद है।

   114. लज्जा तजना।  काम भाग।

1131 से 1140तक।


  1.तमिल में मडलेरुतल  का मतलब है नामकी के सुखानुभव के बाद  फिर नायक नायिका से मिल न सकें तो 

वह ताड़ के पत्ते के घोड़े  पर बैठकर नायिका के नाम जोर से लेता तो कोई शुभ चिंतक उनसे मिलने का प्रबंध करता ।

 नायक अपने पौरुष की लज्जा त्यागता।

 इसे तमिल में" मडलेरुतल " कहते हैं। 


नायक अपनी नायिका की सखी से अपनी मनोदशा व्यक्त करता है।


     विरह से तड़पते नायक को  निर्लज्ज होकर प्रेमिका के नाम को जोर से  लेने में ही बल मिलता है। नायक अपनी नायिका  की सखी से अपनी दशा बोलता है।

2. अपने प्यार की नाकामयाबी से दुखी नायक 

 अपने प्राण  से प्यारा  लज्जा तजकर नायिका के नाम  लेकर सार्वजनिक  जगह पर चीखने चिल्लाने और प्राण त्यागने का

साहस अपना बना लिया। 


3.नायक कहता हैं कि अपने प्रेम की विजय के लिए 

अपने पौरुष, स्वाभिमान  तजकर मडलेरुतल अर्थात

आम जगह पर अपनी प्रेमिका के नाम से चिल्लाने तैयार हो जाता है। कामांधता मनुष्य को निर्लज्ज बना देता है।


4.प्रेम पौरुष, शर्म आदि छोड़कर बेशर्म कर देता है।

 नायक प्रेम का अंधा बनने पर  आत्मगौरव पर भी  ध्यान नहीं देता।


5.  नायक अपनी स्थिति पर  कहता है कि  पतली चूडियाँ

पहनने वाली मेरी प्रेमिका  शाम के वक्त के रोग काम के कारण मजबूर होकर मडलेरुतल अर्थात आम जगह पर  प्रेमिका के नाम जोर से लेने को विवश कर दिया

6.प्रेमिका से मिलने की वेदना के कारण निद्रा देवी रूठकर चली जाती। इसलिए  आधी रात को मडेलेरुतल  

अर्थात आम जगह   पर

प्रेमिका के नाम लेकर चीखने के विचार को

 सुदृढ़ बना दिया। देव


7.उमडते उबालते  सागर  के सामान अत्यंत दुखी होकर भी 

औरतें  बिना मडलेरुतल  न करके जैसे नायिका  संयमित नियंत्रित रहती है।यह आश्चर्य की बात है।


8.  नायक सोचता है कि नायिका  निष्कपट सीधी-सादी है।

बेचारी है। पर प्यार  इन बातों पर ध्यान देकर 

उसके नाम को मंच पर चीखने को विवश कर देता है।


9. ख़ामोश रहने से मेरा प्रेम 

  किसी को मालूम नहीं होता।

अतः मेरा प्रेम गली गली मंडराने लगा है।

10. जिन्होंने  प्रेम रोग की वेदना का महसूस  नहीं किया, 

 वे  ही प्रेम रोग से पीड़ित लोगों को देखकर हँसी उडाएँगे।

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