Sunday, October 17, 2021

அவ்வையார் SUMAARG நல்வழி सुमार्ग

 Avvaiyar NALVAZHI  in HINDI

(Translated by Mr. S.Anandakrishnan)

 

 

 

 

 

 

 

 S.Anandakrishnan

 

 

 

 

 अव्वैयार–नलवलि—सुमार्ग–संघ-काल  ईस्वी पूर्व   दूसरी शताब्दी भाषा दिवस  के सन्दर्भ  मे, अव्वैयार ,तमिल कवयित्री के चालीस पद्यों का  गद्यानुवाद का  प्रयत्न किया गया है |

 

आशा है हिन्दी भाषी इसका स्वागत करके अपनी रायें प्रकट करेंगे |

इनमें खूबी है तो  प्राचीन तमिल साहित्य का रसास्वाद कीजिये | अनुवाद में भूलें हो तो समझाइये | टिप्पणी  आलोचना कीजिये , जिससे मैं अपनी हिन्दी  की  भूलें समझ सकूँ | मेरे गुरु  प्रचारक प्रशिक्षण में ही मिले | श्री गणेश मेरे माताजी गोमती ने और मामाजी ने किया | आशा है हिन्दी भाषी भूलें हो तो समझायेंगे और मैं बुढ़ापे में  सुधर सकता हूँ | आज तक किसीने मेरी गलती नहीं बतायी हैं | मेरे प्रचारक विद्यालय के गुरुवर रामचंद्र शाह ई.तंगप्पन जी ,श्री के.मीनाक्षीजी ,श्रीसुमातींद्र आदि के प्रति मैं आजीवन  आभारी हूँ |

 अव्वैयार–नलवलि—सुमार्ग –संघ-काल  ईस्वी पूर्व  दूसरी शताब्दी प्रार्थना गीत  गजवदन !

 तेरे नैवेद्य के रूप में  ,  दूध ,शुद्ध दही ,गुड-रस ,दाल  आदि मिश्रित पकवान दूंगी मैं ,  बदले में देना त्रि -तमिल भौतिक ,संगीत और नाटक आदि तमिल भाषा ज्ञान देना। वर स्वरुप 

 

तमिल भाषा ज्ञान माँगना कवयित्री  के भाषा -प्रेम अव्यक्त  है |

1. पुण्य-कर्म से मिलेगा सुख ,संपत्ति ; पाप  कर्म से होगा सर्वनाश भूमि में जन्म लेनेवालों का खजाना तो उनके पूर्व जन्म  के पाप-पुण्य कर्म फल ही | सोचकर अन्वेषण अनुशीलन करें तो ये ही सत्य है | बुराई तज,भला कीजिये  यही है जीवन के सुख की कुंजी |

2. संसार  में जातियां तो दो ही है | एक  जो परोपकार ,दान -धर्म  और न्याय मार्ग  पर चलते हैं
वे  ही उच्च जाति के मनुष्य  है | जो  परोपकार  नहीं करते ,वे हैं निम्न जाति के लोग, नीति ग्रंथों में यही बात हैं  |

3. यह शरीर मिथ्या है | यह तो  वह थैली है | जिसमें स्वादिष्ट  सामग्रियाँ। अन्दर सड़कर बदबू के रूप में  बाहर निकलती है | यह शरीर तो अशाश्वत है | इसे स्थायी मत मानो समझो, अतः  जो कुछ मिलते हैं  उन्हें दान और परोपकार में फौरन लगा दो; धर्म्-वानों को जल्दी मिलेगी  मुक्ति।

4.कार्य जो भी हो ,कामयाबी के लिए  भाग्य साथ देता हैं | जितना भी सोचो ; करो,  कामयाबी वक्त  और पुण्य कर्म पर निर्भर है | इसे  न  समझकर प्रयत्न करना , उस अंधे के कार्य के समान हैं जो  आम तोड़ने अपनी लकड़ी फेंकता है |

 

5.  जितना भी प्रयत्न करो,  माँगो , बुलाओ, चीखो ,चिल्लाओ,  तेरी चाहों की वस्तुएं  न मिलने का सिरोरेखा नहीं है  तो कभी नहीं  मिलेंगी | जो चीज़ें नहीं चाहिए वे मिलना सहज है।  यह वास्तविकता न जान -समझकर दुखी होना ही |अति दीर्घ काल से मानव कर्म हो गया है |



 6 . एक व्यक्ति को उनके भाग्य  रेखा के अनुसार जितना मिलना है, उतना मिल ही जाएगा | यही संसार में चालू है , संसार में  लहरोंवाले समुद्र पारकर  द्रव्य आदि कमाकर आनेपर ,वापस समुद्र तट पर  पहुँचने पर  उतना ही आनंद या सुख मिलेगा ,जितना मिलना है | उससे अधिक  न मिलेगा |  तमिल में एक कहानी हैं — दो व्यक्ति जैतून का तेल लगाकर  रेतीले प्रदेश में लुढ़ककर उठे | एक के शरीर पर ज्यादा रेत चिपके हुए थे, दुसरे के शरीर पर कम
अतः प्रयत्न तो ठीक है, पर फल उतना ही मिलेगा , जितना मिलना था |

7. नाना प्रकार से सोचो , कई प्रकार से अनुसंधान करो, सामाजिक शस्त्र पर खोजो ,
यह शारीर नाना प्रकार के कीड़े  और  अनेक प्रकार के रोगों का केंद्र हैं | एक दिन ज़रूर प्राण पखेरू उड़ जाएगा | इस  बात को चतुर ,बुद्दिमान ज्ञानी जानते हैं |अतः  वे कमल के पत्ते और पानी के समान। संसार से अलगअनासक्त जीवन जियेंगे | वे  माया जग नहीं चाहेंगे. संसार से अनासक्त रहेंगे |

8 . अव्वैयार कहती है – भूलोक वासियों! सुनिए | बड़ी बड़ी कोशिशों में लगिए;
आपका  समय ग्रहों के अनुसार  अनुकूल न हो तो  आपके प्रयत्न में न मिलेगी कामयाबी यदि अपने प्रयत्न में सफलता मिल ही जायेगी तो भी  मन चाही चीज न मिलेगी | ऐसा मिलने पर भी स्थायी न रहकर , वह अस्थायी होगी | हमें  शाश्वत सम्मान देनेवाला इज्जत है | मर्यादा की तलाश करके पाना ही  शाश्वत संपत्ति है |

 9 नदी के बाढ़ सूखने पर ,रेतीली नदी  में पैर रखने पर  धूप के कारण पैर जलेगा .पर वहीं स्त्रोत से पानी निकलकर सुख पहुँचायेंगे। वैसे ही बड़े सज्जन  गरीब होने पर भी , जो उनसे मांगते हैं, उनको नकारात्मक उत्तर न देंगे |

10 .  जो  मर गया उसका जीवित आना असंभव, रोओ,साल भर रोओ |
रोना दुखी होना बेकार गाँठ बांधकर रखो –भूलोक वासियों , एक दिन आप की भारी आयेगी | अतः जितना हो सके , उतना दान -धर्म देकर  आप भी पेट भर खाइए |

11. अव्वैयार कहती हैं :– हे  पेट!    एक दिन  का खाना  छोड़ दो तो  न छोड़ोगे | दो दिन का खाना एक साथ लो तो न मानोगे, दुःख प्रद मेरे पेट |  तू  मेरा दुख न जानोगे | मेरे  पेट, तेरे  साथ जीना दुर्लभ |

12 . नदी  तट  पर  के पेड़ गिर  पड़ेगा राज- भोग  का जीवन भी मिट जायेगा लेकिन कृषी ही ऐसा धंधा जिसका कभी न होगा पतन |

 13. सुन्दर भू -गर्भ पर, जीने के लिए जो भाग्यवान पैदा हुए हैं | उसको कोई मिटा नही सकता | मरनेवाले को कोई रोक नहीं सकता | भीख माग्नेवाले को कोई  रोक नहीं सकता |

14.भी ख माँगकर,अपमानित जीवन जीने से मर्यादा की रक्षा करते हुए मरना बेहतर है |

15. नमः शिवाय   मन्त्र  जपते हुए जो  जीते  है  न उनको  होगा कभी दुःख या डर शिव भगवान का नाम जपना  ही बुद्धिमानी है | बाकी सब उपाय दुःख दूर करना    बुद्धिमानी  नहीं  है | सुमार्ग –नलवली –अव्वैयार -तमिल संघ साहित्य -दूसरी शताब्दी ई.पू. |

16. भूमि बढ़िया होने पर  पानी स्वच्छ और बढ़िया होगा | भलों के चरित्र  उनके  दान से होगा श्रेष्ठ , दया भरी दृष्टि से आँखों की सुन्दरता और विशेषता बढ़ेगी | पतिव्रता नारी का चरित्र है पूजनीय | सागरों से  घेरे  जगत में ये सब अद्भुत है –जान लो |

17 . पूर्व  जन्म के बद -कर्म-फल के होते , ईश्वर की निंदा से क्या होता | जग  में अघ रहित जीवन जीने पूर्व जन्म में बिन दान दिए रहे |इस जन्म में  खाली घड़ा ही बचेगा | खाने को भी न मिलेगा गरीबी ही बचेगी |

18. दुनिया है बड़ी, आप के होंगे माता-पिता , भाई -बहन , नाते -रिश्ते पक्के यार | इनमें  न होगा सच्चा  प्यार दुसरे तो  सताने पर देंगे या करेंगे मदद | ये नाते -रिश्ते भाई -बंधु चरणों पर गिरने पर भी न देंगे  न करेंगे  मदद |

19. एक  किलो चावल  के लिए ,पेट के सताने से हम करते हैं दौड़ -धूप, दूसरों को करते हैं | नमस्कार, खुशामद, यशोगान, समुद्र पारकर  जाते  हैं | व्यर्थ  ही  इस शरीर  को करते हैं बेकार |

20. पत्थर के नाव में नदी पार करने के समान है | वेश्या गमन अति संपत्ति नष्ट होगी वेश्या  के  सुख-भोग से दरिद्रता और गरीबी घेरेगी | इस  जन्म  में  मात्र नहीं, अगले जन्म में भी होगा अति कष्ट |यह तो बद इच्छा और बद कर्म है |

 21. लाल कमल  के आसन पर बैठनेवाली देवी  सरस्वती ,जिसके दिल में छल -कपट नहीं, निष्कपट है उनको  रहने के लिए धाम ,जल समृद्धि से भरे खेत सुनाम,यश,बड़प्पन,संपत्ति ,सम्पन्न शहर ,दीर्घ   आयुष , सदा के लिए प्रदान करेगी |

22. कठोर मेहनत करके धन कमाकर उसे गाड़कर रखनेवाले बुराई करनेवाले मनुष्य सुनिए- शरीर से प्राण पखेरू उड़ जाने के बाद हे पापियों  उस खजाने के धन को कौन  भोगेगा? अर्थात धर्म कार्यों में धन का खर्च करना ही पुण्यात्मा का काम  है |

23.अदालत  में जो झूठे गवाही देते हैं , उनके घर में भूत -पिशाच  स्थायी निवास  करेंगे। श्वेत आक के फूल खिलेंगे | पाताल मूल लताएँ फैलेगी ज्येष्टा देवी आकर जम कर बैठेगी | साँप  के बिल बनेगा ;उसमें साँप  बसेगी मतलब हैं | जो अदालत में झूठ बोलेंगे उनको कष्ट ही कष्ट होगा |

   24. तमिळ मूल -  नीरू इल्ला नेट्री  पाल ;नेय  इल्ला उंडी पाळ ,  आरू इल्ला ऊरुक्कु अलकू पाळ;—मारिल उड़न पिराप्पू इल्ला उडम्बू  पाळ; पाले मडक कोडी इल्ला मनैक.—तमिल विभूति रहित  माथा बेकार,  बिना घी के भोजन बेकार | बिना सहोदर के शरीर बेकार | गृहस्थ  जीवन योग्य जोरू के बिना  वह घर भी शून्य और बेकार |

  25 .  नौकरी   के   मिलते   ही   अधिक खर्च  होने पर,  मान -मर्यादा बिगड़ जाएगा | जहां जाते  हैं |वहाँ अपमान होगा | सभी लोगों के लिए चोर बन जायेगा | सातों जन्म  बुरा ही होगा | अच्छे लोगों के लिए भी बुरा ही दीख पड़ेगा |

26.  दोष भरे गीत से संगीत अपसुर होने  पर भी अच्छा है | उच्च कुल  में अनुशासन  हीन  और चरित्र  हीन  होने  पर   वह कुल कलंकित  है | अनुशासन और उच्च चरित्रवान निम्न कुल मे जन्म लेने पर भी श्रेष्ठ है | वीर बुरा है तो उस वीरता से असाध्य रोग अच्छा है |कुल्टा  पत्नी  के साथ जीने से   एकांत जीवन अच्छा  है |

27. मनुष्य के श्रेष्ठ  गुण दस - मान -मर्यादा ,कुल -गौरव, शारीरिक बल ,शैक्षणिक कौशल , सोच -विचार की शक्ति ,तपःशक्ति, उच्चविचार ,प्रयत्न, मधुर कामिनी के वचन आदि। भूख लगने पर ,ये गुण  उड़ जाएँगे। 

28. कवयित्री का कहना  है - भूख लगने पर उपर्युक्त दस गुणों का
कोई महत्त्व नहीं रहेगा। 

 29. किसी  चीज को  पाने  के प्रयत्न करने पर , और कोई चीज़  मिल जाएगी। जिस जिस चीज़ को  पाना चाहते हैं , वह  चीज तुरंत  मिलना , जिस काम  को चाहते  हैं वही  काम मिलना | ईश्वरानुराग पर  ही  निर्भर है। 

 

30. हर एक व्यक्ति को  एक थालीभर का  खाना  और  चार हाथ का कपड़ा पहनना  ही पर्याप्त है।  पर वह लाखों  विषयों पर इच्छा रखता हैं | जो मिलें ,वही काफी हैं ,न सोचकर , जीनेवाले मनुष्य का जीवन  अस्थिर है। मिट्टी के घड़े के सामान टूटनेवाले जीवन  में जो मिलते हैं उनसे संतुष्ट होना ही | संतोष भरा जीवन है |

 

31. वृक्ष की डालियों में फल पकने पर ,पक्षी   खुद  आ जाएँगे ,किसी को बुलाने  क्या जरूरत ? वैसे ही धनी आदमी जो दान देने में थकता नहीं  | अमुदसुरभी के सामान , उसके यहां  नाते -रिश्तों की भीड़ रहेगी ही। 

32. जो भी व्यक्ति हो ,उसको पूर्व जनम का  फल अच्छा हो या बुरा भोगना ही पड़ेगा। वे   जन्म के पहले ही ब्रह्मा की सिरों रेखाएँ हैं।  अतः मनुष्य को दुःख देनेवालों से बदला लेना नहीं चाहिए। अपने अपने भाग्य को मनुष्य भोगेंगे ही। 

33. छंद बद्ध की गलतियाँ  रहित कविताएँ लिखनी हैं|न तो गद्य में लिखना अच्छा है | उच्च कुल में जन्म लेकर  बदनाम पाकर जीने से मरना अच्छा है। रण क्षेत्र में से पीठ दिखाकर भागने से , असाध्य रोगग्रसित मरना बेहतर है। चरित्रहीन पत्नी छोड़कर जीना बेहतर है। 

34.  तमिळ  मूल आरिडुम  मेडुम मडुवुम  पोलाम  सेलवम  मारिडुम  एरिडुम  मानिलत्तीर –सोरिडुम तन्नीरुम  वारुम; धरुममुमे सार्पाकउन्नीरमै  वीरुम उयर्न्तु |

35. जग वासियों!  संपत्ति जो है ,नदी के द्वीप  समान है | बढेगा;घटेगा; अस्थायी है,आप दूसरों की  भूख  मिटाने भोजन दीजिये | प्यास बुझाने पानी पिलाइए ;इन सद्कर्मों के फलस्वरूप  मन अनुशासित रहेगा,  सुफल मिलेगा |

36. जो सोचते रहते हैं “शिवाय नमः”,उनको कोई भय न होगा कभी ,यही एक उपाय ; यही बुद्धिमानी ; नहीं तो भाग्य ही बुद्धि हो जायेगी | (अर्थात भाग्य ,विधि ही बुद्धि बनेगी, विधि को जीत नहीं सकता )

37. बिना विभूति के माथा व्यर्थ ;बिना घी के भोजन व्यर्थ , बिना नदी के शहर की सुन्दरता बेकार, बिना सहोदर का जन्म व्यर्थ सुन्दर अर्द्धांगिनी बिना गृह शून्य |

38.हम एक सोचे तो और कुछ होगा | वैसा आने पर भी आ जायेगा | जो न सोचा वह सामने आ खड़ा हो जाएगा | ये सब ईश्वर के कार्य है |

39. विधि को जीतने का मार्ग न वेद में है,न किसी ग्रन्थ में है | सोचकर दुखी होने से ,हे मन !ईश्वर के चरणों पर शरणागत बनो,वही  विधि की विडंबना  से करेगा तेरी रक्षा। 

40. यह अच्छा है, वह बुरा है | यह आज हुआ ,वह कल हुआ यों सोचना ,भेद देखना सही नहीं है। निस्पृह जीवन ही श्रेष्ठ है | कुश काटकर उसको बाँधने दूसरी रस्सी  ढूँढ़नेवाले मनुष्य की तरह, अपने में जो ईश्वर है ,उसकी तलाश बाहर करना सही नहीं है। 


41. मनुष्य को अपने तीस साल की उम्र में ब्रह्मज्ञान मिलना है | नहीं तो उसकी शिक्षा-दीक्षा
बूढी माँ  के स्तन समान  बेकार है।

42.  दिव्य ग्रन्थ तिरुक्कुरळ ,चार वेद , तमिळ भाषा के दिव्य कवि अप्पर,सुन्दरर, माणिक्कवासकर ,तिरुज्ञानसम्बन्धर सब के ग्रन्थ एक समान है   मान।

No comments: