मैं पहले ही कह चुका,लिख चुका,
मौलिकता है तो मेरी अपनी शैली,अपनी भाषा,अपनी भावाभिव्यक्ति।
हिंदी मेरी अपनी मातृभाषा नहीं है।
बैलगाड़ी,तांगा,
पेसंचर,मेल जेट
विमान हेलिकाप्टर
समयानुकूल परिवर्तन।
अब हम खड़े हैं ,
खड़ी बोली,
दो लाख की भाषा!
अब हिंदी ,विश्व की तीसरी भाषा।
संस्कृत की बेटी,उर्दू की सहोदरी।।
अवधि,व्रज, मैथिली ,कहाँ?
भाव अच्छा है,
समझ में आना है।
वाल्मीकि से
तुलसी रामायण घर घर में।
साकेत का अपना महत्व है।
छंद अलंकार नियम
भाषा विकास के बाधक।
मात्रा गिनना
यमाताराजभानसलगम्। भावाभिव्यक्ति के बाधक।
मेरी मौलिकता मानकर ही श्रेष्ठ रचनाकार के तीस प्रमाण पत्र हिंदी दलों से मिले हैं। ग़लत कहने पर भी मैं भागूँगा नहीं।
ग़लत सुधारने का प्रयत्न करूँगा।
भारत में सत्रह साल नाबालिग
बलात्कारी मुक्त छुड़ाने वकीलों का तांता।
भावाभिव्यक्ति के छंद की गल्ती
भ्रष्टाचारी, रिश्वतखोरी, मंत्री अधिकारी, प्रशासक के अपराध के सामने कुछ भी नहीं।
अपनी शैली में ही
स्नातकोत्तर हिंदी उत्तीर्ण ।
मैं पहले ही लिख चुका हूँ,
मैं उन्मुक्त गगन की पक्षी।
छंद अलंकार रस बंधन में
साँस घुटकर
अभिव्यक्ति विचार मर जाएँगे।
बार बार लिखना
नियमानुसार नहीं
स्वांतसुखाय लिखता हूँ।
खड़ी बोली हिन्दी,
न अवधि,न मैथिली न खिचड़ी।
स्वरचित स्वचिंतक एस.अनंतकृष्णन,चेन्नै तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।
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