Thursday, December 10, 2020

बेकरार

 नमस्ते। वणक्कम।

बेकरार मानव जीवन में,
ज्ञानचक्षुप्राप्त मानव जीवन में,
अनिवार्य अंश।
चक्रवर्ती दशरथ, राम,कृष्ण,
ऋषि मुनि असुरों के कारण बेकरार।।
देवों की बेचैनी,अधैर्यता मिटाने
तपस्वी दधिचि की
रीढ़ की हड्डी काम आती।।
राम की परेशानी दूर करने
हनुमान जी ने साथ दिया।
आज युवक, युवतियां बेकरार है,
चित्र पट , गीत उनकी बेकरारी
दूर करने में समर्थ है या पता नहीं।।
जरा सूखे जीवन में बहार।।
नर -नारी के प्रेम बेकरार ,
मिलने में बहार ।
कितने साल पता नहीं।
प्रेम बहार लाता है या बेकरार कर देता है या बहार जा छाती है ,
पता नहीं।
प्रेमी सदा पागल,
प्रेम की कहानी में संघर्ष,
मानव प्रेम ईश्वर प्रेम में बदल जाता तो
वास्तविक बहार जा छाती।
बलात्कर ,काम वासना,ईर्ष्या,
खलनायक संग्राम आदि दूर।
जिया बेकरार है छाई बहार।
मानव प्रेम में अस्थाई।।
ईश्वरीय प्रेम में स्थाई।
यही हमारे पूर्वजों की सीख।।
स्वरचित स्वचिंतक एस.अनंतकृष्णन चेन्नै।

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