Friday, December 25, 2020

चाह।

 नमस्ते। वणक्कम।।

चाह नहीं,  अमीर बनने की।।

चाह नहीं, धन कमाने की।

 भ्रष्टाचार बनकर,

 करोड़ों के खर्चे कर

 सांसद, विधायक, या 

किसी चुनाव में 

जीतकर  प्रशंसा के दल ,

स्वार्थ दलों के जय जयकार की।

भूल गया संसार,

भूल गया भारत।

जितने नेताओं ने,

जितने देश भक्तों ने

अपना सर्वस्व तजकर

 लाठी का मार सहकर,

 कोल्हू खींचकर,कष्ट सहकर

आजादी दिलाई,स्वर्ग पहुंच गये।

आज पांच सौ रुपए रिश्वत लेकर

भ्रष्टाचारियों को रिश्वतखोर मत दाता

मजहब,जाति संप्रदाय के स्वार्थ  लाभ।

 धनी भ्रष्टाचारी भी  मर गये,

 धन से,पद से,हीरे स्वर्ण कवच 

पहनाने  से  मेरी जवानी स्थाई नहीं।

मेरे काले बाल सफेद बनने से 

रोक न सका।

चाह नहीं अमीर बनने की।

 चाह नहीं , धन कमाने की।।

 नश्वर दुनिया,

 सद्य:फल के लिए कुकर्मी

 पाठशाला से अदालत तक।

 जिलादेश भ्रष्टाचार को 

करते सलाम।।

चाह नहीं  खुशामद से जीने की।।

स्वरचित स्वचिंतक एस.अनंतकृष्णन, चेन्नई।।

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