Wednesday, December 30, 2020

 एस.अनंतकृष्णन, चेन्नै।

तिरुप्पावै --आंडाल।

मेरा अपना अनुवाद।


तिरुप्पावै 


तमिल साहित्य भक्तिकाल की मीरा समभक्ता 

 आण्डाल का ग्रन्थ तिरुप्पावै का प्रथम 

गीत का गद्यानुवाद।

कुल तीस गीत हैं ,

रोज़ मार्गशीर्ष महीने में तड़के उठकर 

लड़कियाँ  गाती हैं ; सहेलियों को 

भगवान की कृपा पाने का मार्ग दिखाती हैं। 

आण्डाल द्वारा रचित तमिल ग्रन्थ अपूर्व हैं.

सरल हिंदी में गद्य शैली में  अनुवाद कर रहा हूँ। 


                      १.


सुन्दर आभूषणों से सज्जित कन्याओ ! 

आप तो विशिष्ट नामी शहर में रहती हैं ,

जहाँ अहीरों की संख्या अधिक हैं।

आज मार्गशीष महीने का पूर्णिमा का दिन है.

. आइये ,अब नहाने जाएँगीं ! 

तेज़ शूल हाथ में धरकर नन्द गोपाल ,

अपूर्व रक्षक का धंधा कर रहे हैं।

सुलोचनी यशोधा के श्याम रंग के सिंह समान बेटा ,

सूर्य -सा तेजोमय चेहरेवाले कन्हैया ,

जो नारायण का अंश है ,

हम पर कृपा कटाक्ष करने सन्नद्ध है ,

जिनका यशोगान करें तो अग -जग हमें आशीषें देगा।

आइये! उनका यशोगान गाते-गाते स्नान करने जाएँगीं.


ஆண்டாள் आण्डाल रचित तिरुप्पावै -१ का गद्यानुवाद। 

मार्ग शीर्ष महीने में हर दिन गाया जाता है।


              २.


विष्णु अवतार क्षेत्र व्रज भूमि में जन्में बालिकाओं !


सांसारिक बंधन छोड़ ,


ईश्वर के चरण प्राप्त करने ,


जो व्रत -पद्धतियाँ  हैं ,उन्हें सुनिए :-


घी ,दूध  हम न लेंगी।


तड़के उठकर नहाएँगीं।


आँखों में काजल नहीं लगाएँगीं।


सर पर फूल नहीं धारण करेंगी।


बुरी बातों को मन में नहीं सोंचेंगीं।


दूसरों पर चुगलखोरी नहीं करेंगी।


साधू ,संतों और ज्ञानियों को


इतना दान -धर्म करेंगी ,


वे खुद कहने लगेंगी दान पर्याप्त है.

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