Friday, May 14, 2021

समय

 हिंद देश परिवार दिल्ली इकाई।

14-5--2021.

विषय --समय

विधा --मौलिक रचना मौलिक विधा।

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समय तो चलता रहता है।

 हर पल हमारी उम्र बढ़ती है।

 एक फिल्म गाना है---

कुछ पाकर खोना है,

कुछ खोकर पाना है।

 शैशव ,बचपन, जवानी,

 प्रौढ़, बुढ़ापा,

 यह फिल्म गाना

 सूक्ष्म वेदों की बातों की

  सरलीकरण।

जवानी शादी संतान।

 बुढ़ापा पोता, पोती,

बहु, दामाद,

इतने नाते रिश्तेदार।

 पर जवानी चली गई।

जवानी का भोजन 

 पत्नी की जवानी,

पति की जवानी को चुके।

 पर समय को चुके हैं,

 करोड़ रुपए हैं,

 हमारी उम्र अस्सी।

 वैज्ञानिक साधनों में

 परिवर्तन।

  पर हमारे शारीरिक बल,

  इतना दुर्बल,

  कान में अस्पष्ट ध्वनि।

 आँखों के सामने 

अस्पष्ट दृश्य।

  पैरों का तेज़ कम।

 बोलना अस्पष्ट।

  समय चला गया।

  अंतिम समय आएगा।

  समय खोतै हैं पाना असंभव।

 कबीर का कहना है,

 कल करै तो आज,

आज करै तो अब ।

पल में प्रलय  होएगा।

 सुनामी, कोराना, भूकंप

 दुर्घटना  प्राकृतिक कोप।।

  बुढ़ापा हमें मालूम है।

   मृत्यु है शाश्वत।।

 आछे दिन पाछे गये।

अब हरी से होता क्या?

 भगवान भी 

कुछ नहीं कर सकता।

 शुभस्य शीघ्रम्।

स्वरचित स्वचिंतक एस अनंतकृष्णन चेन्नै तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।

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