Friday, May 28, 2021

अनादर

 नमस्ते। वणक्कम।

साहित्य बोध।

28-5-2021.

विषय  :अनादर।

विधा

मौलिक रचना मौलिक विधा

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 आदर मिलना कठिन है,

 अनादर मिलना 

अति आसान।

 ईमानदारी सेवा का तो

 अनादर तत्काल।।

 मैं तो अध्यापक ,

 परिक्षा भवन में सख्त।

अंक देने में सख्त।

 जो फीस लेकर 

 प्रश्न पत्र देते,अंक देते,

 नकल करने छोड़ते

 उनका आदर सद्यःफल।।

अनादर ईमानदारी  की।पर प्रशंसा होती  ज़रूर।

 अवकाश प्राप्ति के 

 बिदाई समारोह पर।

 यही कहते  में तो

 हमारी कमाई पर बाधक।।

 शिक्षा छोड़ दीजिए,

सांसद विधायक 

पैसे के बल पर चुने जाते हैं।

  देश भक्त प्रलाप करते हैं।

  दरिद्र रहते हैं, अनावरित।

 आदरित सम्मानित लोग,

  सत्य कर्तव्य धर्म पर 

अधिक बोलते।

यह राजनैतिक बहुरंगी लोग।।

आध्यात्मिक क्षेत्र भोग रहित 

त्याग का क्षेत्र।।

हीरे-जवाहरात अलंकृत भगवान,

  स्वर्ण सिंहसन , मुकुटधारी

 आचार्य भक्तों से कहते,

 त्याग मय जीवन ध्यान कर।

 अनासक्त रह , गुरु दीक्षा दस हज़ार।

 बाह्याडंबर आदरित।

रैदास जैसे फुटपाथ संत

 अनादरित।

 ऐतिहासिक काव्यों में

 जो अनादरित

 वे ही स्थाई सम्मानित।

 पर आर्थिक दृष्टि से अनादरित।।

 चायवाला अनादरित।

 मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री आदरित।

 भगवान भी बाह्यडंबर न तो

 अनावरित जान।

 सीधे सादे कपड़ों का

विद्यासागर अनादरित।

 वे ही बहुमूल्य कपड़ों से आदरित।

 अनावरित सब दिव्य तुल्य।

 आदरित सब शासक।

ताजमहल आदरित।

 मुमताज को शाहजहाँ कैसे

 अपनाया वह अनावरित।।

कुंती आदरित,

कर्ण को बहाना अनावरित।

स्वरचित स्वचिंतक एस अनंतकृष्णन चेन्नै तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।

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