Saturday, May 29, 2021

सुविचार

 नमस्ते वणक्कम।

मानव का मन

सदा  चंचल ही नहीं

सद्यःफल  की माया में

  ईश्वर  के रूप 

बदल देता है,

नेता बदल देता है

अपने सिद्धांत

 बदल देता है

अपने विचार बदल देता है।

न्याय मार्ग 

बदल देता है।

परिणाम स्वरूप

मानव अपनी

 मानवता

खो देता है।

अपनी एकता

 खो देता है।

 भगवान की भक्ति में

स्वार्थ वश

भिन्न मजहब,

भिन्न रूप

भिन्न भेद

  भिन्न संप्रदाय।

 भगवान एक 

पंथ अनेक।

परिणाम 

  चापलूसी 

बन जाता है।

 भक्ति  स्वार्थ।

भक्ति धंधा।

पंच तत्व सब को

देते समान फल।

हवा  एक समान।

हवा में फैलती बीमारी 

एक समान।

विष किरीट कीटाणु

(कोराना)

हिंदु मुस्लिम ईसाई नहीं देखता।।

 भगवान के विविध रूप,

विविध मार्ग मानव सृष्टि।

  अतः न शांति।।

 न धर्म ।

न सत्य।

 भक्ति बन रहा है

जीविकोपार्जन का साधन।

अतः भक्ति में है 

प्रदूषण।

 स्वरचित स्वचिंतक एस अनंतकृष्णन चेन्नै तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।

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