Sunday, March 8, 2015

नारी श्रद्धा का पात्र बोली में

महिला दिवस 

महिला  तो सहन शील धरती -सी 

पच्चीस  साल पली प्यार छोड़ आती ससुराल;

मायके भूल पति सेवा में बन जाती बेगार;

भले ही वह  स्नातक हो या स्नातकोत्तर

पति के लिए वह बन जाती  दासी;

दफ्तर जाती; घर का काम करती ;

उसके सुख -दुःख पर न किसी की चिंता;

ए.टी.एम्   कार्ड तक पति के काबू में ,

कमाने का अधिकार ; खर्च करने  का  नहीं ;


थप्पड़ ,झिडकियां, न जाने कितने संकट झेलती ;

त्यागमयी ममता मयी  भारतीय नारी;

सहनशील धरती जैसी;

पति कीसेवा  परमेश्वर की सेवा मान सब सह लेती;

सीता समान अग्नी में कूद पड़ती ;

राम समान निर्दयी पति जंगल में छोड़ आता ;

सोलह साल के होते ही बदमाशी नज़रों का भय ,

सड़क पर चलना मुश्किल;

वह सचमुच देवी  है नर के जीवन में;

पंतजी  --यदि स्वर्ग है तो नारी के उर के ही  भीतर ;

यदि नरक हो तो नारी के उर के ही भीतर;

अन्य कवि -- अर्द्धांगिनी न होती तो गृह -बनजाता शून्य .

नारी की जय.

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