Saturday, March 14, 2015

villuppaattu --धनुष-गीत --भाग -६ हरिश्चंद्र नाटक का अंतिम दृश्य

हरिश्चंद्र नाटक 


स्थान --श्मशान (रात  के अनुकूल -भयानक  संगीत )

पात्र --हरिश्चंद्र ,,चंद्रमती , विश्वामित्र  

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हरिश्चंद्र --अरी स्त्री ! तू  कौन है ? लाश लाई है !  जलाना है तो दे मुहरें .

(चंद्रमती  की ओर देखकर )

निःशुल्क  जलाना राजाज्ञा के विरुद्ध है.
शुल्क : राजा  के लिए  दस मुहरें ;  खर्च  के लिए  पाँच;

मेरे लिए एक गज  की तौली; दो  मुहरें आदि .

बगैर इनके  काम  न होगा.दे ; न तो  ले  चल .
 शव को;

यह  है  क़ानून.

चंद्रमती -(रोती  हुई ):- क़ानून ! राजाज्ञा !लाश जलाने! 

आदमी  जिन्दा है तो क़ानून  जला रहा  है.
मृत्यु  के बाद  भी क़ानून.
अधिकार! क़ानून! राजाज्ञा!  अफसोस !हुज़ूर !
दया की भीख मांगती हूँ !अनाथिन  हूँ  मैं!

बेचारी हूँ ,बेसहारा हूँ ,यह लाश  मेरा पुत्र  है.

रोहित है नाम उसका. इकलौता बेटा लाचारी बेचारी  मैं.


हरिश्चंद्र :--शव जलाने में  दया !असंभव ! विधि की विडम्बना में भी छूट .

एक को छूट दूँगा तो यह  छूट  ही नियम  बन जाएगा! 
यहाँ  इनाम  का  काम  न  होगा.
दे मुहरें !जला ले लाश ! न तो चल हट .

चंद्रमती :-क्या आप में दया नहीं  है ?जरा भी.?  

हरिश्चंद्र :-अरी  स्त्री !मैं  हूँ  राज कर्मचारी !मेरा धर्म राजाज्ञा निभाना !

चंद्रमती : मैं  कहाँ जाऊँ ?किससे  मांगूँ ?अबला हूँ मैं.

हरिश्चंद्र :-क्यों ?तेरे गले में मंगल सूत्र है न ?

चंद्रमती :-(रोती हुई अपने आप )


श्मशान रक्षक को  मेरा मंगल सूत्र  दीख पड़ा .
यह कैसे संभव है ?

सिवा  मेरे पति के  और कोई देख न सकता .
हे  ईश्वर ! यह तो  तेरी लीला  है.

(प्रकट ) हुज़ूर! आप  कौन हैं ?

(क्रमशः )





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