Tuesday, February 16, 2021

सागर

 सागर 

साहित्य संगम संस्थान दिल्ली इकाई।

१६-२-२०२१

विधा अपनी शैली अपनी भावाभिव्यक्ति

सागर से  घेरा  संसार,

 लहरों सा विचार तरंगें।

मानव संसार अति विचित्र।।

संसार सागर की नाव डॉवा डोल।।

भव सागर से ज्यादा जीव सागर यह में।।

 लाखों करोड़ मछुआरे के जीवनाधार।

चमकीले  मोती, रंग-बिरंगे चीपी ।

 छोटे आकार से बड़े आकार के शंख।

सागर तट की हवा स्वर्गीय सुख।

प्रेमियों के मिलन संजीव चित्रपट।

सागर नहीं तो भाप नहीं।

भाप न तो काले बादल,

मेघ गर्जन,बिजली की चमक,

रिमझिम बारिश सदा बहार कैसे?

स्वरचित स्वचिंतक एस अनंतकृष्णन चेन्नै तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।

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