Saturday, February 27, 2021

मेहनत की रोटी

 नमस्ते वणक्कम।

उत्तरांचल उजाला।
विषय :--मेहनत से रोटी मिले दो वक्त की।
विधा :-अपनी शैली अपनी भावाभिव्यक्ति।
२७-२-2021
मेहनत से रोटी मिले दो वक्त।
पढ़ते ही याद आयी कबीर के दोहे।
वह ज़माना चला गया ,साईं इतना दीजिये।
गीता की याद आयी ,निष्काम सेवा ,
वह भी आज शिक्षित समाज मानने तैयार नहीं।
मेहनत से रोटी मिले दो वक्त की।
पर हर मंदिर में अन्नदान ,
हज़ारों नहीं लाखों माँगकर खानेवाले।
मुफ़्त चीज़ के लिए पात्र -कुपात्र विचार किये
मत देनेवाले मतदाता ,दूसरों के शाप लेकर
भ्रष्टाचारी ,रिश्वतखोर से जीनेवाले ,
मेहनती के रक्त चूसनेवाले आँखों के सामने
ईश्वरीय दंड भोगनेवाले धन है ,पर
बेचैनी नींद की गोली ,
मेहनत से दो रोटी मिले ,
वे सोते हैं आराम से फुट पाथ पर ,
भले ही मच्छर काटें या मक्खियाँ भिनभिनाये
मेहनती की निर्मल हँसी कहीं नहीं .
मेहनत से रोटी मिले दो वक्त ,
वही आराम की जिंदगी जान।
स्वरचित स्वचिंतक एस. अनंतकृष्णन ,चेन्नै
तमिलनाडु का हिंदी प्रेमी प्रचारक।

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