Tuesday, February 9, 2021

जिंदगी बदल गई है வாழ்க்கை மாறிவிட்டது

 साहित्य सागर  दल के प्रशासक

 प्रबंधक संचालक समन्वयक

 सदस्य पाठक सब को नमस्कार। वणक्कम।


९-२-२०२१.

शीर्षक  -- जिंदगी बदल गई।

   परिवर्तन प्रकृति का,

ईश्वर का शाश्वत नियम है।

 शैशव काल से बुढ़ापे तक 

 सोचो, विचार करो, जिंदगी में

 कितने बदलाव।

वजन तीन किलो से ८०  किलो तक।

जो माँ गोद में बिठा कर दूध पिलाती,

वही  जवानी में नौकरी न मिली तो

गालियाँ देती, मामा प्यार से मिठाई खिलाते,

अब लंबी चौड़ी उपदेश देते।

जिंदगी बदलती रहती,

शहरीकरण उद्योगीकरण नगर विस्तार।

पाषाण युग के नंगे आदमी,

अब जीन्स का पेंट फाड़कर पागल सा 

पर वही नवीन फेशन

 हो गया है।

ईंधन के बदले इलेक्ट्रॉनिक कुकर

न धुआँ,न जलन,रसोई बन गयी।

न बाल्टी न रस्सी मोटर पानी।

न पत्थर, न धोने की आवाज वाशिंग मिशन।

भाप की रूलगाडी,न कोयले का धूल न धुआँ।

बिजली से चलती तेज।

 कदम कदम पर जिंदगी बदलती रहती है।

 मरू काले बाल सिर में सफेद,वह भी नदारद।

दाँत सब नकली, जिंदगी बदल गई।

स्वरचित स्वचिंतक एस अनंतकृष्णन चेन्नै ।


















साहित्य सागर  दल के प्रशासक

 प्रबंधक संचालक समन्वयक

 सदस्य पाठक सब को नमस्कार। वणक्कम।


९-२-२०२१.

शीर्षक  -- जिंदगी बदल गई।

   परिवर्तन प्रकृति का,

ईश्वर का शाश्वत नियम है।

 शैशव काल से बुढ़ापे तक 

 सोचो, विचार करो, जिंदगी में

 कितने बदलाव।

वजन तीन किलो से ८०  किलो तक।

जो माँ गोद में बिठा कर दूध पिलाती,

वही  जवानी में नौकरी न मिली तो

गालियाँ देती, मामा प्यार से मिठाई खिलाते,

अब लंबी चौड़ी उपदेश देते।

जिंदगी बदलती रहती,

शहरीकरण उद्योगीकरण नगर विस्तार।

पाषाण युग के नंगे आदमी,

अब जीन्स का पेंट फाड़कर पागल सा 

पर वही नवीन फेशन

 हो गया है।

ईंधन के बदले इलेक्ट्रॉनिक कुकर

न धुआँ,न जलन,रसोई बन गयी।

न बाल्टी न रस्सी मोटर पानी।

न पत्थर, न धोने की आवाज वाशिंग मिशन।

भाप की रूलगाडी,न कोयले का धूल न धुआँ।

बिजली से चलती तेज।

 कदम कदम पर जिंदगी बदलती रहती है।

 मरू काले बाल सिर में सफेद,वह भी नदारद।

दाँत सब नकली, जिंदगी बदल गई।

स्वरचित स्वचिंतक एस अनंतकृष्णन चेन्नै ।

















साहित्य सागर  दल के प्रशासक

 प्रबंधक संचालक समन्वयक

 सदस्य पाठक सब को नमस्कार। वणक्कम।


९-२-२०२१.

शीर्षक  -- जिंदगी बदल गई।

   परिवर्तन प्रकृति का,

ईश्वर का शाश्वत नियम है।

 शैशव काल से बुढ़ापे तक 

 सोचो, विचार करो, जिंदगी में

 कितने बदलाव।

वजन तीन किलो से ८०  किलो तक।

जो माँ गोद में बिठा कर दूध पिलाती,

वही  जवानी में नौकरी न मिली तो

गालियाँ देती, मामा प्यार से मिठाई खिलाते,

अब लंबी चौड़ी उपदेश देते।

जिंदगी बदलती रहती,

शहरीकरण उद्योगीकरण नगर विस्तार।

पाषाण युग के नंगे आदमी,

अब जीन्स का पेंट फाड़कर पागल सा 

पर वही नवीन फेशन

 हो गया है।

ईंधन के बदले इलेक्ट्रॉनिक कुकर

न धुआँ,न जलन,रसोई बन गयी।

न बाल्टी न रस्सी मोटर पानी।

न पत्थर, न धोने की आवाज वाशिंग मिशन।

भाप की रूलगाडी,न कोयले का धूल न धुआँ।

बिजली से चलती तेज।

 कदम कदम पर जिंदगी बदलती रहती है।

 मरू काले बाल सिर में सफेद,वह भी नदारद।

दाँत सब नकली, जिंदगी बदल गई।

स्वरचित स्वचिंतक एस अनंतकृष्णन चेन्नै ।








साहित्य सागर  दल के प्रशासक

 प्रबंधक संचालक समन्वयक

 सदस्य पाठक सब को नमस्कार। वणक्कम।


९-२-२०२१.

शीर्षक  -- जिंदगी बदल गई।

   परिवर्तन प्रकृति का,

ईश्वर का शाश्वत नियम है।

 शैशव काल से बुढ़ापे तक 

 सोचो, विचार करो, जिंदगी में

 कितने बदलाव।

वजन तीन किलो से ८०  किलो तक।

जो माँ गोद में बिठा कर दूध पिलाती,

वही  जवानी में नौकरी न मिली तो

गालियाँ देती, मामा प्यार से मिठाई खिलाते,

अब लंबी चौड़ी उपदेश देते।

जिंदगी बदलती रहती,

शहरीकरण उद्योगीकरण नगर विस्तार।

पाषाण युग के नंगे आदमी,

अब जीन्स का पेंट फाड़कर पागल सा 

पर वही नवीन फेशन

 हो गया है।

ईंधन के बदले इलेक्ट्रॉनिक कुकर

न धुआँ,न जलन,रसोई बन गयी।

न बाल्टी न रस्सी मोटर पानी।

न पत्थर, न धोने की आवाज वाशिंग मिशन।

भाप की रूलगाडी,न कोयले का धूल न धुआँ।

बिजली से चलती तेज।

 कदम कदम पर जिंदगी बदलती रहती है।

 मरू काले बाल सिर में सफेद,वह भी नदारद।

दाँत सब नकली, जिंदगी बदल गई।

स्वरचित स्वचिंतक एस अनंतकृष्णन चेन्नै ।

















साहित्य सागर  दल के प्रशासक

 प्रबंधक संचालक समन्वयक

 सदस्य पाठक सब को नमस्कार। वणक्कम।


९-२-२०२१.

शीर्षक  -- जिंदगी बदल गई।

   परिवर्तन प्रकृति का,

ईश्वर का शाश्वत नियम है।

 शैशव काल से बुढ़ापे तक 

 सोचो, विचार करो, जिंदगी में

 कितने बदलाव।

वजन तीन किलो से ८०  किलो तक।

जो माँ गोद में बिठा कर दूध पिलाती,

वही  जवानी में नौकरी न मिली तो

गालियाँ देती, मामा प्यार से मिठाई खिलाते,

अब लंबी चौड़ी उपदेश देते।

जिंदगी बदलती रहती,

शहरीकरण उद्योगीकरण नगर विस्तार।

पाषाण युग के नंगे आदमी,

अब जीन्स का पेंट फाड़कर पागल सा 

पर वही नवीन फेशन

 हो गया है।

ईंधन के बदले इलेक्ट्रॉनिक कुकर

न धुआँ,न जलन,रसोई बन गयी।

न बाल्टी न रस्सी मोटर पानी।

न पत्थर, न धोने की आवाज वाशिंग मिशन।

भाप की रूलगाडी,न कोयले का धूल न धुआँ।

बिजली से चलती तेज।

 कदम कदम पर जिंदगी बदलती रहती है।

 मरू काले बाल सिर में सफेद,वह भी नदारद।

दाँत सब नकली, जिंदगी बदल गई।

स्वरचित स्वचिंतक एस अनंतकृष्णन चेन्नै ।



























 












 





















 












 











 



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