Sunday, June 6, 2021

मुहब्बत हमारी अमर हो गई।

 शीर्षक पसंद है।

नमस्ते। वणक्कम।

निज रचना,निज शैली।

मौलिक रचना मौलिक विधा।

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 मुहब्बत हमारी अमर हो गई।

 मन पसंद सुंदरी,

 भले ही दूसरी की पत्नी हो,

उसके पति को मारकर,

  उसे अपनी बेगम बनाकर

ताज महल बनवाने से

 मेरी मुहब्बत अमर हो गयी।

 पड़ोसी देश की राजकुमारी,

  अति सुन्दर, मैं तो राजा

 मेरी सेना के हजारों सिपाहियों की पत्नियों को 

 विधवा बनाकर,

उनके बच्चों को अनाथ बनाकर  

 मेरी मुहब्बत पद्मावती काव्य बन  अमर हो गई।

 मंत्री मेरे तीन पत्नियाँ,

 असंख्य रखैल मेरी मुहब्बत व

 रखैल की कहानियां अमर हो गई।

 शकुंतला की अंगूठी खोने से

 शाप के कारण भुलक्कड़ बन

  शाप विमोचन याद आना

 मेरी मुहब्बत अमर हो गई।।

 भले ही प्रेम एक पक्ष का हो,

बलात्कार अपनाने से

  धन पद अधिकार के बल

 मुहब्बत  अमर हो गई।।

 लैला मजनू दुखांत कथा अमर हो गई।

 बच्चे आदर्श प्रेम रंक है तो

 रंग हीन हो जाता।।

  किसी कवि ने लिखा,

काश! मैं भी शाहंशाह होता तो

 ताजमहल बनवाता।

 यह अमर महल गरीबों के

 आदर्श प्रेम की हँसी उडा रहाहै।

 स्वरचित स्वचिंतक एस अनंतकृष्णन चेन्नै तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।

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