Monday, June 28, 2021

भारतीय किसान

 

नमस्ते वणक्कम।

 प्रेम एक भावना 

विधा मौलिक रचना मौलिक विधा।

 २६-६-२०२१.

    शुक्ल जी ने कहा,

    भाव  विशेष परिस्थिति में जाता है।

     प्रेम तो स्थाई भाव। प्र

    सीता की सुंदरता  प्रेम की भावना।।

    दमयंती के सामने  नल रूप देव।।

    दमयंती की अग्नि परीक्षा।।

   असली नल का पता लगाना।।

   हर सुन्दरी के पीछे प्रेम भाव।।

  वह तो प्रेम नहीं ,मोह।।

  रावण को सीता के प्रति प्रेम।।

 मोह नहीं,वह भी प्रेम की 

मर्यादा निमित्त।।

  प्रेम धन के प्रति,

 देश के प्रति,

 कला के प्रति।

 भगवान के प्रति।

 प्रेम भावना संकीर्ण,

 तीसरे को स्थान नहीं।।

  प्रेम में लीन व्यक्ति,

 कबीर की वाणी,

 लाली मेरे लाल की जित देखो तित लाल।

 लाली देखन मैं गरी मैं भी हो गरी लाल।।

 यही प्रेम भावना की चरम सीमा।।

 स्वरचित स्वचिंतक एस अनंतकृष्णन चेन्नै तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक

नमस्ते वणक्कम।

 प्रेम एक भावना 

विधा मौलिक रचना मौलिक विधा।

 २६-६-२०२१.

    शुक्ल जी ने कहा,

    भाव  विशेष परिस्थिति में जाता है।

     प्रेम तो स्थाई भाव। प्र

    सीता की सुंदरता  प्रेम की भावना।।

    दमयंती के सामने  नल रूप देव।।

    दमयंती की अग्नि परीक्षा।।

   असली नल का पता लगाना।।

   हर सुन्दरी के पीछे प्रेम भाव।।

  वह तो प्रेम नहीं ,मोह।।

  रावण को सीता के प्रति प्रेम।।

 मोह नहीं,वह भी प्रेम की 

मर्यादा निमित्त।।

  प्रेम धन के प्रति,

 देश के प्रति,

 कला के प्रति।

 भगवान के प्रति।

 प्रेम भावना संकीर्ण,

 तीसरे को स्थान नहीं।।

  प्रेम में लीन व्यक्ति,

 कबीर की वाणी,

 लाली मेरे लाल की जित देखो तित लाल।

 लाली देखन मैं गरी मैं भी हो गरी लाल।।

 यही प्रेम भावना की चरम सीमा।।

 स्वरचित स्वचिंतक एस अनंतकृष्णन चेन्नै तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक




नमस्ते वणक्कम।

 प्रेम एक भावना 

विधा मौलिक रचना मौलिक विधा।

 २६-६-२०२१.

    शुक्ल जी ने कहा,

    भाव  विशेष परिस्थिति में जाता है।

     प्रेम तो स्थाई भाव। प्र

    सीता की सुंदरता  प्रेम की भावना।।

    दमयंती के सामने  नल रूप देव।।

    दमयंती की अग्नि परीक्षा।।

   असली नल का पता लगाना।।

   हर सुन्दरी के पीछे प्रेम भाव।।

  वह तो प्रेम नहीं ,मोह।।

  रावण को सीता के प्रति प्रेम।।

 मोह नहीं,वह भी प्रेम की 

मर्यादा निमित्त।।

  प्रेम धन के प्रति,

 देश के प्रति,

 कला के प्रति।

 भगवान के प्रति।

 प्रेम भावना संकीर्ण,

 तीसरे को स्थान नहीं।।

  प्रेम में लीन व्यक्ति,

 कबीर की वाणी,

 लाली मेरे लाल की जित देखो तित लाल।

 लाली देखन मैं गरी मैं भी हो गरी लाल।।

 यही प्रेम भावना की चरम सीमा।।

 स्वरचित स्वचिंतक एस अनंतकृष्णन चेन्नै तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक

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