Monday, June 14, 2021

आस्तीन का साँप

 नमस्ते। वणक्कम।

साहि बोध, हरियाणा।

 प्रबंधक संचालक समन्वयक सदस्य पाठक प्रतिभागी आदि सबको प्रणाम।

 विषय आस्तीन का साँप

 विधा

निज शैली निज रचना।

मौलिक रचना तो मौलिक विधा ही मौलिकता लक्षण।

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आस्तीन का साँप का 

भंडा जल्दी फोड़ जाता है।

 एक तो ठगता है न तो

जब मूल नष्ट कर देता है।

 अफ़ज़ल ख़ान ने शिवाजी का

गले लगाया,

 वह तो आस्तीन का साँप।

शिवाजी चतुर, आलिंगन तो किया,

 पर उसके पहले,बघ नखे से

उसे ही चीर डाला।।

आस्तीन की साँप के खुलते ही

 हो जाता सर्वनाश।।

 चुनाव के समय आस्तीन के

 असंख्य साँप निकलते हैं,

 मधुर भाषी, दया सागर, परोपकारी, भ्रष्टाचार का कट्टर विरोधी।

 चुनाव के खत्म होते ही,

ये साँप कहीं बिल में ,

 अगले पाँच साल तक 

नौ दो ग्यारह बन जाते।।

 आधुनिक काल में,

 नाते,रिश्ते, दोस्तों-यारों मे भी

 आस्तीन के साँप असंख्य।

 वे ऐसे लगते,

ईमानदारी अवतारी।

 सतर्क रहना हमारी बारी।।

स्वरचित स्वचिंतक एस अनंतकृष्णन चेन्नै तमिलनाडु हिंदी प्रेमी प्रचारक।

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